रांची : आदिवासी बहुल झारखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था यहां की महिलाओं के कंधों पर टीकी हुई है. कल तक शहर, कस्बा और गांव के बाजारों में यहां की महिलाएं हड़िया (मिट्टी से बना बर्तन) बेचती दिखती थीं. अब इनके हाथों बने प्रोडक्ट्स दुनिया के कोने-कोने में पहुंचेंगे. झारखंड ग्रामीण विकास विभाग के अधीन झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के सहयोग से 2 लाख 62 हजार स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं, जिनसे 32 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं.
नौ माह की ट्रेनिंग के बाद 1.09 लाख महिलाएं उद्यमी के रूप में 37 प्रोडक्ट्स बनाकर अपनी पहचान बना चुकी हैं. व्यवस्थित बाजार नहीं मिलने के बावजूद इनका टर्न ओवर 39 करोड़ के आस-पास है, जिसे 2023-24 तक एक हजार करोड़ तक पहुंचाने की दिशा में काम शुरू हो चुका है. इसमे सहयोग मिलेगा फ्लिपकार्ट, अमेजन और रिलायंस मार्ट का.
जेएसएलपीएस ने दीदियों द्वारा बनाए जा रहे प्रोडक्ट्स को ब्रांड में कनवर्ट कर दिया है. इसे नाम दिया गया है पलाश. अहम बात यह है कि जेएसएलपीएस के सहयोग के अलग-अलग बैंकों के मार्फत इन स्वयं सहायता समूहों को करीब 2,100 करोड़ का ऋण मिल चुका है. सबसे सुखद बात यह है कि रिपेमेंट रेट 98.9 प्रतिशत है. यानी ऋण मिलते ही महिलाएं इस कोशिश में जुट जाती हैं कि कैसे मुनाफा कमाते हुए बैंकों को पैसे चुकाए जाएं.
क्या-क्या बना रही हैं दीदियां
अचार, यह ऐसा व्यंजन है जिसे सुनते ही मुंह में पानी भर आता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि झारखंड में कुछ ऐसे अचार बनते हैं जो कहीं नहीं मिलते. मसलन, महुआ, ओल और करइल (नये बांस के जड़ से बना) का अचार. इन दिनों ग्रीन टी का चलन बढ़ा है, लेकिन झारखंड की मोरिंगा टी (सहजन के पत्ते से बना) कई मायनों में बेहद कारगर है. शूगर के मरीज के लिए इसे रामबाण कहा जाता है.
रसूखदार लोग इनदिनों 200 से 300 रुपये प्रति किलो खरीदकर ब्राउन राइस खाते हैं, लेकिन झारखंड में इसी ब्राउन राइस को गोड़ा चावल कहा जाता है. यह महज 30 से 40 रुपये किलो मिलता है. इसके अलावा औषधीय गुणों से भरे कई तरह के साबुन, छीलके वाला अरहर दाल, मड़ुआ का आटा, जामुन का सिरका और करंज का शहद लोगों का खूब भा रहा है.
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महिला उद्यमी शोभा दीदी के जज्बे को सलाम
रांची से 10 किलोमीटर दूर नामकुम प्रखंड में एक गांव है कुटियातु. यहां की शोभा दीदी गांव की अन्य महिलाओं के सहयोग से लक्ष्मी श्री महिला समिति के नाम से कई प्रोडक्ट्स तैयार करती हैं. इनकी समिति द्वारा बनाए गए करंज का शहद, जामुन का सिरका और अलग-अलग तरह के अचार की डिमांड बढ़ने लगी है. इन्होंने 2008 में 28 हजार का लोन लिया था, जिसे डेढ़ साल में वापस कर चुकी हैं. शुरुआत में रांची और दिल्ली में लगने वाले मेलों में जाकर अपना प्रोडक्ट्स बेचती थीं. इसके बाद बाजार मिलना मुश्किल होता था. कई दौर ऐसे आए जब इन्हें लगा कि काम करना मुश्किल है, लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी.
अब दीदियों के प्रोडक्ट्स को पलाश ब्रांड का नाम मिलने से सेल बढ़ गया है. जेएसएलपीएस ने सचिवालयों में डिस्प्ले काउंटर लगा दिया है. जहां बड़े अफसर भी सामान खरीद रहे हैं.
लॉकडाउन का असर और व्यवस्थागत दिक्कतें
शोभा दीदी सिर्फ आठवीं तक पढ़ी हैं, लेकिन अपनी मेहनत की बदौलत चार पहिया वाहन खरीद चुकी हैं. कहती हैं कि लॉकडाउन के कारण मार्च से अगस्त माह तक काम बंद रहा. अब फिर शुरू हुआ है. डब्बा खरीदने से लेकर, प्रिंट कराने और कच्चा माल खरीदने के लिए खुद बाजार, गांव और जंगल जाना पड़ता है. SHG में एक पुरुष को जोड़ने की छूट मिलती, तो काम और आसान हो जाता. कहती हैं कि 2019 में 1 लाख 70 हजार का सेल हुआ था, मुनाफा 70 प्रतिशत हुआ. बस एक काउंटर मिल जाता तो बिक्री बढ़ जाती, लेकिन इन्हें नहीं मालूम कि पलाश प्रोडक्ट्स को फ्लिपकार्ट और अमेजन का साथ मिलने वाला है.
जेएसएलपीएस की तैयारी
जेएसएलपीएस के एसपीएम नीतीश कुमार सिन्हा ने बताया कि झारखंड के लोग बकरी पालन करते हैं. बकरी के दूध की खूब डिमांड है. जल्द ही इसे टेट्रा पैक के जरिए बाजार में लाया जाएगा. मोरिंगा टी यानी औषधीय गुणों से भरपूर सहजन के पत्ते की चाय और शुद्ध सरसों का तेल भी बाजार में उपलब्ध होगा. जल्द ही शहर के स्तर पर पलाश ब्रांड का काउंटर भी खोला जाएगा. उन्होंने बताया कि महिलाओं का समूह उद्यमिता से जुड़ा है, तो दूसरा कृषि उत्पाद से. जेएसएलपीएस की ट्रेनिंग के आधार पर कृषि से जुड़ी महिलाएं गुणवत्ता युक्त फसल उपजाती हैं. उसी से महिला उद्यमी अपना उत्पाद तैयार करती हैं.
अमेजन और फ्लिपकार्ट की ओर से एक साल तक मुफ्त में स्टोरेज और डिलिवरी की व्यवस्था मिलेगी. इससे दीदियों द्वारा बनाया गए पलाश प्रोडक्ट्स दुनिया के कोने-कोने में पहुंचेगा. उम्मीद है कि 2023-24 तक पलाश ब्रांड का टर्न ओवर 1 हजार करोड़ हो जाएगा. फिर समझ सकते हैं कि झारखंड का गांवों की तस्वीर कैसी होगी. जरूरत है दीदियों के मेहनत को सम्मान देने की. कोरोना ने बहुत कुछ सीखा दिया है.