नई दिल्ली : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि सांस रोकने से कोविड 19 संक्रमण होने का खतरा बढ़ सकता है. अनुसंधानकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का एक मॉडल तैयार किया कि कैसे वायरस वाली छोटी बूंद के प्रवाह की दर फेफड़ों में इसके जमा होना निर्धारित करती है. अध्ययन के निष्कर्षों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्रिका 'फिजिक्स ऑफ फ्लुएड्स' में भी प्रकाशित किया गया है.
अनुसंधानकर्ताओं के इस दल के अनुसार उन्होंने एक प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का मॉडल तैयार किया और पाया कि सांस लेने की कम आवृत्ति वायरस की उपस्थिति के समय को बढ़ाती है. जिससे इसके जमा होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके परिणामस्वरूप संक्रमण होता है. इसके अलावा, फेफड़े की संरचना का किसी व्यक्ति के कोविड 19 के प्रति संवेदनशीलता पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. आईआईटी-मद्रास के 'डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड मैकेनिक्स' के प्रोफेसर महेश पंचागानुला ने कहा कि हमारे अध्ययन से यह पता चला है कि कण कैसे गहरे फेफड़ों में पहुंचते हैं और कैसे वहां जमा होते हैं.
वायरस के जमने की बढ़ जाती है संभावना
प्रो महेश वी. पंचागनुला की टीम ने गहरी समझ हासिल करने के लिए काम किया कि वायरस के साथ छोटी बूंद के प्रवाह की दर फेफड़ों में वायरस के जमाव को कैसे निर्धारित करती है. अपने शोध में टीम ने बताया कि सांस को रोककर रखने और कम सांस लेने की दर से फेफड़ों में वायरस के जमाव की संभावना बढ़ सकती है. श्वसन संक्रमण के लिए बेहतर चिकित्सा और दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अध्ययन किया गया था. समूह के पिछले काम ने भी एयरोसोल में अलग-अलग व्यक्ति से व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण परिवर्तनशीलता पर प्रकाश डाला है. एक कारण यह बताता है कि कुछ लोग दूसरों की तुलना में हवाई बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. टीम के अन्य सदस्यों में आईआईटी मद्रास के अनुसंधानकर्ता अर्नब कुमार मलिक और सौमल्या मुखर्जी शामिल थे.
प्रोफेसर महेश पंचागानुला ने विस्तार से बताया