हैदराबाद :कोविड 19 महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए दो समस्याएं पैदा की हैं, आर्थिक मंदी की मार और स्वास्थ्य-सामाजिक सुरक्षा के लिए निवेश की जरूरत. दोनों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसे अक्सर राजकोषीय मानदंडों से साधने की कोशिश की जाती है. केंद्रीय बजट ने भी बीच का रास्ता चुना है. भारत में स्वास्थ्य एक गंभीर समस्या है.
कोविड 19 से जो हालात बने हैं उन्होंने स्वास्थ्य प्रणालियों की खामियों को दूर करने के लिए स्वास्थ्य पर ज्यादा सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया है. चाहे वह विकसित राज्य हो या विकास की ओर आगे बढ़ रहा राज्य हो, सभी ने इस महामारी की मार देखी है. स्वास्थ्य प्रणालियों की खामियों के कारण भी ये ज्यादा रहा.
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, आयुष और स्वास्थ्य अनुसंधान पर व्यय
वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, स्वास्थ्य अनुसंधान और आयुष मंत्रालय के लिए 76,901 करोड़ का प्रावधान किया है, जो पिछले वर्ष के बजट अनुमान से 11% अधिक है. यह पिछले चार वर्षों में सबसे अधिक वृद्धि है, हालांकि कुल सरकारी खर्च में इसकी हिस्सेदारी 2.21 प्रतिशत ही है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए 71,268 करोड़ रुपये दिए गए हैं जो पिछले बजट से 9% ही ज्यादा हैं.
आयुष के लिए 2970 करोड़, स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए 2663 करोड़ दिए गए हैं. बजट में कुल सरकारी खर्चों में मात्र 2.21% की बढ़ोतरी निश्चित रूप से काफी नहीं है. कुल व्यय में से 63% का व्यय होता है जो न केवल प्रतिगामी है बल्कि लाखों लोगों को गरीबी की ओर धकेलता है.
बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश जरूरी
स्वास्थ्य के लिए घोषित की गई पीएम आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना की घोषणा सराहनीय है. यह भारत के विकास और आत्मनिर्भर बनाने के छह स्तंभों में से एक है. ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के लिए 64,180 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना, वायु और समुद्री बंदरगाहों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों का संचालन और रोगों के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय केंद्र को मजबूत बनाया जाएगा.