रायपुर/जबलपुर/होशंगाबाद/सीहोर/पुरी : कोरोना महामारी से बचने और इम्यून पावर बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियों से बने काढ़ा को कारगर माना जा रहा है. काली मिर्च, सोंठ, दालचीनी, हल्दी, इलायची, लौंग सहित 3-4 जड़ी-बूटियों को मिलाकर काढ़ा बनाया जाता है. कोरोना से बचने इस संजीवनी उपाय को ध्यान में रखते हुए मूर्तिकार शिवचरण ने भी लोगों को काढ़ा पीने का संदेश देते हुए काढ़ा वाले गणपति बनाया है.
3 फीट की है जड़ी-बूटी वाले गणेश जी की प्रतिमा
गणपति की इस मूर्ति को बनाने में मूर्तिकार को एक महीने का समय लग गया. मूर्तिकार शिवचरण ने बताया कि 3 फीट की गणेश की इस मूर्ति को बनाने में किसी भी तरह के रंगों का कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया गया है. सिर्फ काढ़ा बनाने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली जड़ी-बूटियों से ही इस हर्बल गणपति को बनाया गया है. पहली बार ऐसी मूर्ति बनाई गई है. इसके अलावा छोटी मूर्तियां भी बनाई गई है, जिनको बनाने में मौली(धागा), लकड़ी, धान और मसालों का इस्तेमाल किया गया है.
छत्तीसगढ़ में हर्बल गणेश प्रतिमा का निर्माण गणपति बनाने में लगने वाली सामग्री
⦁ गजानन के सिर को बनाने में आधा किलो दालचीनी का उपयोग किया गया है.
⦁ धोती पांच किलो सोंठ से बनाई गई है.
⦁ पगड़ी बनाने के लिए आधा किलो हल्दी और एक पाव लौंग लिया गया है.
⦁ माला बनाने के लिए एक पाव जावित्री और जायफल का उपयोग किया गया है.
⦁ आशीर्वाद वाले हाथ बनाने के लिए 50 ग्राम मुलेठी लिया गया है.
⦁ कान बनाने में भी दालचीनी का उपयोग किया गया है.
⦁ पूरे शरीर में ढाई किलो गिलोय का इस्तेमाल किया गया है.
मूर्तिकार ने बताया कि महामारी की वजह से शासन-प्रशासन के आदेश के मुताबिक गणेश की बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना पर प्रतिबंध लगाया गया है. अब लोग गणपति की मूर्ति को लेकर खास तरह की चॉइस रख रहे हैं. इस बार शिवचरण ने 20 प्रतिमाएं बनाई हैं, जो पहले से बहुत अलग हैं.
मध्यप्रदेश के जबलपुर में गणेश पूजा
यशोदा के नंदलाल तो आपने सुना ही होगा, लेकिन हम आज आपको बताएंगे कि यशोदा के सुपारी गणेश जिसे बनाती हैं जबलपुर के अधारताल के पास एक छोटी सी कुटिया में रहने वाली 72 साल की यशोदा प्रजापति. सुपारी के गणेश बनाने वाली यशोदा प्रजापति का तर्क वह धर्म के साथ साथ पर्यावरण को बचाने की कोशिश कर रही हैं.
मध्य प्रदेश के जबलपुर में बनाई गई हैं विशेष गणेश प्रतिमाएं आत्मनिर्भरता की मिशाल
यशोदा प्रजापति की उम्र 72 वर्ष हैं इस उम्र में भी वे आत्मनिर्भर हैं और अपनी कला के जरिए अपना जीवन यापन करती हैं, यशोदा प्रजापति सुपारी का इस्तेमाल करके गणेश प्रतिमाएं बनाती हैं, जो कि विसर्जन करने में भी आसान होती हैं और पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाती.
धार्मिक संस्था से मिली प्रेरणा
यशोदा एक धार्मिक संस्था से जुड़ी थीं वहां उन्होंने सुपारी की इन गणेश प्रतिमाओं को देखा, इसके बाद उन्होंने इन्हें बनाने का फैसला किया और इन्होंने पहले से देखी हुई प्रतिमाओं से भी बेहतर सुंदर आकृति के गणेश बनाना शुरू कर दिए. यशोदा एक अच्छी कलाकार हैं लेकिन इन्हें व्यापार करना नहीं आता इसलिए लागत मूल्य से थोड़ा सा पैसा और जोड़कर 100 सवा सौ रुपए में इन मूर्तियों को बेच देती हैं. इससे पैसा जरूर कम मिलता है लेकिन यशोदा का गुजर बसर हो जाता है.
गणेश पूजा से पहले सुदर्शन पटनायक ने बनाई बालू से बनाई गणेश प्रतिमा पर्यावरण अनुकूल
यशोदा का कहना है उनकी गणेश प्रतिमाएं पर्यावरण के नजरिए से बहुत अनुकूल हैं, इनमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए. छोटी-छोटी सुंदर प्रतिमाएं पूरी तरह से प्राकृतिक सामानों से बनी होती हैं इसलिए इन से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, जबकि बाकी गणेश प्रतिमाएं जिन सामानों से बनती हैं वह कहीं ना कहीं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है. यशोदा का कहना है कि नवग्रह की पूजा में भी 9 सुपारियों का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए यह गणेश पूजा के साथ-साथ नवग्रह की पूजा भी है.
एमपी के होशंगाबाद में गणेशोत्सव
कोरोना काल के चलते स्कूलों को बंद कर दिया गया है. स्कूल में बच्चों के जाने पर रोक है. ऐसे में फ्री बैठे दिव्यांग और निशक्त बच्चे गणेश प्रतिमा बनाकर अपना हुनर दिखा रहे हैं. ये बच्चे घर पर ही तरह-तरह की गणेश मूर्तियां बना रहे हैं. इसमें बच्चों के साथ पेरेंट्स भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. प्रतिमा बनाने के लिए सामग्री संस्था द्वारा उपलब्ध कराई गई है. ये मूर्तियां पूरी तरह प्राकृतिक रंगों से बनीं हैं. ये इको फ्रेंडली मूर्तियां नर्मदा नदी को प्रदूषित होने से बचाएंगी.
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में गणेश पूजा की गतिविधियां भविष्य निशक्त विशेष विद्यालय होशंगाबाद द्वारा पिछले 10 सालों से स्कूल में ही गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कराया जा रहा था. लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते आर्थिक रूप से नुकसान के बाद भी गणेश प्रतिमाएं बनाई जा रही हैं. जो कि बिना किसी कीमत तय किए लोगों को स्वेच्छा राशि पर वितरित की जाती हैं.
प्राकृतिक रंगों से इको फ्रेंडली गणेश का निर्माण
बच्चे प्रकृति के प्रति समर्पण और स्वच्छता का संदेश देने के लिए इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का ही निर्माण कर रहे हैं. जिसमें पूर्णता प्राकृतिक रंगों, मिट्टी, वनस्पति का भी उपयोग किया गया है. गणेश प्रतिमाओं में बीजों को भी डाला गया है, जोकि पर्यावरण के लिए फायदेमंद है. वहीं प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिसका जलीय जीवों पर भी खराब असर नहीं होगा.
स्कूल के अध्यक्ष योगेश शर्मा ने बताया कि मिट्टी के गणेश बनाने में समय अधिक लगता है. लेकिन ये पर्यावरण के लिए वरदान रहती हैं. इस बार कोरोना वायरस के चलते बच्चे स्कूल नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में घर पर ही बढ़-चढ़कर बच्चे प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं, जिनमें परिजनों द्वारा भी मदद की जा रही है.
सीहोर में चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश
जिला मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर देश भर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है. चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं.
इनमें से एक सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उज्जैन में स्थित अवंतिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित है. यहां साल भर लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं.
मध्य प्रदेश के सीहोर में भी गणेश पूजा का उत्साह मंदिर से जुड़े लोगों के मुताबिक मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया था. शालिवाहन शक राजा भोज कृष्णा राय तथा गोंड राजा नवल ने मंदिर की व्यवस्थाओं में सहयोग किया, इसके साथ ही नानाजी पेशवा बिठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी.
मन्नत के लिए दीवार पर बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक
मान्यता के मुताबिक श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूर्ण होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं. चिंतामन गणेश मंदिर पर हर साल गणेश चतुर्थी के दौरान 10 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भगवान गणेश के दर्शन करते हैं. लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से मेला नहीं लगेगा. सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर ही भक्त दर्शन कर सकेंगे.
2000 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
सीवन नदी के कमल पुष्प से बने हैं. प्राचीन चिंतामन गणेश को लेकर प्रामणिक इतिहास है कि इस मंदिर का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है. सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रकट हुए, भगवान गणेश को रथ में बैठाकर ले जा रहे थे, जब सुबह हुई जो कमल पुष्प जमीन में धंस गया और रात में यही कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा. जिसके बाद प्रतिमा जमीन में धंसने लगी. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यह प्रतिमा जमीन में आदि धंसी हुई है.
गणेश चतुर्थी के दिन होता है भंडारा
यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर उसे सीधा करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बहुत साल पहले यहां पर एक बीमारी फैल गई थी और यहां पर एक भक्त ने बीमारी खत्म करने के लिए मंदिर में भंडारा कराने का संकल्प लिया था.
मन्नत पूरी होने के बाद क्षेत्र में बीमारी खत्म हो गई. उसके बाद से ही गणेश चतुर्थी के दिन यहां पर हर साल भंडारा किया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के चलते सीमित स्तर पर ही यहां भंडारा किया जाएगा.
इसके अलावा ओडिशा के पुरी में सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने रेत की कलाकृति बनाकर गणेशोत्सव का संदेश दिया.