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सबसे खूनी संघर्ष माने जाने वाले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए कई युद्ध

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Published : Sep 2, 2020, 9:24 AM IST

Updated : Sep 2, 2020, 11:30 AM IST

द्वितीय विश्व युद्ध समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया. इस दौरान कई अन्य युद्ध लड़े गए. यह 1939 से 1945 तक 30 से ज्यादा देशों की थल-जल-वायु सेनाओं के बीच लड़ा गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और भी कई युद्ध हुए. आइए इन युद्धों पर नजर डालते हैं...

second WORLD WAR
द्वितीय विश्व युद्ध

हैदराबाद : इतिहास का सबसे खूनी संघर्ष माने जाने वाले द्वितीय विश्व युद्ध समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया. इस दौरान कई अन्य युद्ध लड़े गए. यह 1939 से 1945 तक 30 से ज्यादा देशों की थल-जल-वायु सेनाओं के बीच लड़ा गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और भी कई युद्ध हुए.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए अन्य युद्ध

स्टेलिनग्राद की लड़ाई - अगस्त 1942 से फरवरी 1943

स्टेलिनग्राद की लड़ाई द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे बड़ा टकराव था, जिसमें लाल सेना (रूसी सेना) ने नाजी सेना (जर्मन सेना) को बुरी तरह से परास्त किया था. जर्मनी और उसके सहयोगियों ने दक्षिणी रूस में स्टेलिनग्राद (अब वोल्गोग्राड) शहर पर कब्जा करने के लिए सोवियत संघ से युद्ध किया था. यह इतिहास के खूनी युद्धों में से एक था. जर्मनी के सैनिकों ने अपनी पूरी ताकत से शहर को तबाह कर दिया था लेकिन स्टेलिनग्राद में रूस के सैनिकों से हार गए थे. इसके बाद जर्मन हाई कमांड को अपने नुकसान को बदलने के लिए पश्चिमी मोर्चे से विशाल सैन्य बलों को वापस लेना पड़ा था. इस दौरान लाखों लोगों की मौत हुई थी.

मिडवे की लड़ाई - जून 1942

मिडवे जापानी नौसेना के लिए एक भयावह हार थी, जिससे जापान पूरी तरह से कभी नहीं उबर पाया. इसका ज्यादातर श्रेय उन कोडब्रेकर्स को जाता है, जिन्होंने अमेरिकी बलों को घात करने की जापानी योजना का खुलासा किया था. इस दौरान अमेरिकी सेना को विभाजित करने की जापानी योजना भी विफल रही. इसके बाद अमेरिका ने जापानी वाहकों पर एक बड़ा हवाई हमला किया. टीबीएफ एवेंजर टौरपीडो बॉम्बरों को जापानी जीरो द्वारा बाधित किया गया था और नष्ट कर दिया गया था, लेकिन बाद में अमेरिका ने जवाबी हमला किया. यह जवाबी हमला तब हुआ जब जापानी विमान डेक पर ईंधन भर रहे थे. जापान के खिलाफ युद्ध के दौरान, तीन जापानी वाहक नष्ट हो गए थे.

डी-डे - 6 जून 1944

6 जून 1944 को फ्रांस के नॉरमंडी पर नाजियों के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोला गया. यहीं से दूसरे विश्व युद्ध के अंत की शुरुआत हुई. सैनिकों ने जर्मन सेना के खिलाफ अब तक के सबसे बड़े सैन्य ऑपरेशन में भाग लिया. सैनिकों ने उत्तरी फ्रांस के नॉरमंडी शहर के तटीय इलाके पर गुपचुप तरीके से समुद्र के रास्ते घुसपैठ की. यह भूभाग जर्मनी के कब्जे में था. नॉरमंडी पर पहले हवाई हमला किया गया. तट पर कब्जा कर लेने के बाद युद्धपोत और जहाज वहां पहुंचे. पूरे इलाके को हजारों टैंकों से घेर लिया गया था. यह सफलता की एक बड़ी वजह यह थी क्योंकि जर्मन सेना इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी. इस दौरान मित्र राष्ट्रों के लगभग दो हजार सैनिक मारे गए थे. इसके बाद एक हफ्ते के अंदर मित्र राष्ट्रों ने नॉरमंडी में तीन लाख से अधिक सैनिकों को तैनात कर दिया था.

मास्को की लड़ाई - अक्टूबर 1941 से जनवरी 1942

मास्को पर 10 लाख से ज्यादा जर्मन सैनिकों ने हमला किया था. हिटलर ने सैनिकों को आदेश दिया था कि शहर पर कब्जा करने के बजाय उसे तबाह कर दिया जाए. जर्मन सैनिकों ने 15 नवंबर 1941 तक शहर के 18 मील के दायरे में लड़ाई लड़ी. इसके बाद रूसी प्रतिरोध से लड़ाई धीमी हो गई. तापमान में भारी गिरावट के बाद जर्मनी की सैनिकों के लिए अपनाई गई आपूर्ति श्रृंखला विफल होने लगी जिसको देखते हुए रूसी मार्शल जुकोव ने साइबेरियाई डिवीजनों में पलटवार किया. रूसी सैनिकों की कार्रवाई के बाद जनवरी तक जर्मन के सैनिकों को 100 मील से अधिक पीछे धकेल दिया गया था. इस दौरान कई रूसी सैनिक हताहत हुए.

कुर्स्क की लड़ाई - जुलाई से अगस्त 1943 तक

कुर्स्क के युद्ध को सबसे बड़ा टैंक युद्ध माना जाता है. कुर्स्क में, नाजियों ने रूसी सेनाओं को घेरकर नष्ट करने का लक्ष्य रखा. मित्र देशों के कोडब्रेकर्स की चेतावनी के बाद रूसियों को जर्मन हमले से बचने के लिए काफी समय मिल गया. इस दौरान रूसी सैनिकों ने रक्षात्मक रेखाओं का निर्माण कर लिया. जर्मनी ने रूस के महत्वपूर्ण शहर कुर्स्क पर अधिकार ने लिए अपने बीएफ109 लड़ाकू विमानों को भेजा, तो रूसी याक-1 की तुलना में बेहद शक्तिशाली थे. जैसे ही जर्मन आक्रमण रुका, मार्शल जुकोव ने पलटवार शुरू किया. इस युद्ध में जर्मनी की करारी हार हुई.

बर्लिन की लड़ाई - अप्रैल से मई 1945

बर्लिन की लड़ाई सबसे खूनी युद्धों में गिनी जाती है. पूर्ववर्ती सोवियत संघ की रेड आर्मी ने बर्लिन के बाहरी इलाके में प्रवेश कर लिया था. रेड आर्मी ने बर्लिन को पूरी तरह से घेर लिया. फिर चौतरफा कब्जे की लड़ाई शुरू हुई. टैंकों में रूसियों को फायदा था इसलिए सोवियत संघ के सैनिकों ने पूरी ताकत के साथ बर्लिन पर जमीन से लेकर हवाई गोले बरसाना शुरू कर दिए. इस युद्ध में हजारों सैनिकों सहित नागरिकों की मौत हुई. एडॉल्फ हिटलर ने जंग में अपनी हार स्वीकार की थी और आत्मसमर्पण करने की बजाय आत्महत्या कर ली. बर्लिन युद्ध की समाप्ति के बाद जर्मनी ने यूरोप के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था.

फिलीपीन सागर की लड़ाई - जून 1944

प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी बल शक्तिशाली हो रहा था, इस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध की अंतिम महान वाहक लड़ाईयों में से एक फिलीपीन सागर की लड़ाई लड़ी गई. यह युद्ध जापानी के खिलाफ लड़ा गया. अमेरिका और जापान की नौसेना के बीच यह युद्ध हुआ था जिसमें अमेरिका के पास ज्यादा लड़ाकू वाहक थे. इस युद्ध को 'ग्रेट मारियानास टर्की शूट' नाम भी दिया गया था.

लूजॉन की लड़ाई - जनवरी से अगस्त 1945

जापान ने 1942 में फिलीपीन के सबसे बड़े द्वीप लुजॉन को कब्जे में ले लिया था. जनरल डगलस मैकार्थुर ने फिलीपींस वापस जाने को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना और 1945 में आक्रमण बल की कमान संभाली. जापानी सैनिकों के खिलाफ यह लड़ाई थी. इस युद्ध में 10 हजार अमेरिकी सैनिकों और दो लाख जापानी सैनिकों की मौत हुई.

खार्कोव की दूसरी लड़ाई - मई 1942

रूस ने जर्मन सेनाओं पर पलटवार करने के लिए 700 विमानों को तैयार किया. यह हमला उस वक्त नाकाम हो गया जब जर्मन सेना ने 900 से अधिक विमानों के साथ हमला बोल दिया. जर्मन सेना ने रूस की सेना को घेर लिया था जिसके बाद बड़ी संख्या में रूसी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया. जर्मन सैनिकों की तुलना में 10 गुना ज्यादा रूसी सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे.

कोरल सागर की लड़ाई - मई 1942

पर्ल हार्बर पर आक्रमण के बाद जापानियों का लक्ष्य न्यू गिनी और सोलोमन द्वीप पर आक्रमण करना था. यह पहली नौसेना की लड़ाई थी जो पूरी तरह से विमान वाहक के आधार पर लड़ी गई. लड़ाकू विमानों ने जहाजों पर हमला किया. युद्ध के दौरान दोनों पक्षों अपने दुश्मन को खोजने के लिए संघर्ष कर रहे थे. दोनों पक्ष इस बारे में अस्पष्ट थे कि उन्होंने किसके जहाज पर (खुद के जहाज पर या दुश्मन के जहाज पर) हमला किया है. अमेरिकी वाहक यूएसएस लेक्सिंगटन में आग लगना इस युद्ध में अमेरिका को हुआ सबसे बड़ा नुकसान था.

अटलांटिक की लड़ाई 1940-1943

अटलांटिक की लड़ाई में जर्मन नौसेना की यू-बोटों ने जर्मन वायुसेना के साथ मिलकर कामयाबी के साथ मित्र राष्ट्रों के व्यापारिक बेड़ों पर नाकेबंदी की और बड़ी संख्या में उन्हें डुबाकर मित्र राष्ट्रों का बहुत नुकसान किया था. यू-बोट के कमांडरों ने पनडुब्बी की रक्षात्मक स्क्रीन के भीतर टॉरपीडो हमलों को अंजाम दिया और जब कई पनडुब्बियों ने एक ही बार में हमला किया, तो रक्षकों को पीछे हटने का बहुत कम मौका मिला. अंत में, अटलांटिक की लड़ाई अंततः तकनीक द्वारा जीती गई. युद्ध के अंत तक 3,000 से अधिक व्यापारी जहाज और लगभग 800 यू-बोट डूब चुके थे.

लेयटे गल्फ की लड़ाई - अक्टूबर 1944

इतिहास की सबसे बड़ी नौसेना लड़ाईयों में से एक है लेयटे गल्फ की लड़ाई. यह युद्ध जापानी सेना और अमेरिकी सेना के बीच पानी में लड़ा गया. अमेरिका के सैनिकों ने दक्षिण पूर्व एशिया में कब्जे वाले देशों से जापान को अलग करने के उद्देश्य से एक रणनीति के हिस्से के रूप में लेयेट द्वीप पर हमला किया.

ब्रॉडी की लड़ाई - जून 1941

सोवियत रूस पर हमला करने की हिटलर की योजना को ऑपरेशन बारब्रोसा नाम दिया गया. हिटलर का मानना ​​था कि ब्लिट्जक्रेग अजेय था और पश्चिमी यूक्रेन में ब्रॉडी की लड़ाई उसे सही साबित करेगी. इस युद्ध में जर्मनी ने गोला-बारूद की आपूर्ति रोक दी थी, संचार बाधित कर दिया था. युद्ध में रूसी सैनिकों की हार हुई थी.

ब्रिटेन की लड़ाई - जुलाई से अक्टूबर 1940

1940 के अंत तक ब्रिटेन के सामने जर्मन आक्रमण का खतरा बढ़ रहा था. यह आक्रमण हवाई हमले के साथ ही सफल होता. इसके बाद वायु सेनाओं का विरोध करते हुए पहला बड़ा अभियान चलाया गया. चार महीने तक जर्मन ने ब्रिटिश एयरफील्ड, रडार स्टेशन और विमान कारखानों पर हमले किए.

सेडान की लड़ाई - मई 1940

जब पोलैंड के नाजी आक्रमण के बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, तो कईयों को उम्मीद थी कि यह पहले विश्व युद्ध का प्रतिशोध होगा. मई 1940 में जर्मनी ने 'ब्लिट्जक्रेग' (lightning war) नामक एक नई रणनीति शुरू की. भारी तोपखाने को नष्ट करते हुए, जर्मन सैनिकों ने सेडान में फ्रांस के सैनिकों पर हमला कर दिया. इस युद्ध में फ्रांस की हार हुई थी.

बल्ज की लड़ाई - दिसंबर 1944 से जनवरी 1945

जून 1944 के डी-डे आक्रमण के बाद, मित्र राष्ट्र नॉरमंडी से बाहर निकल गए और फ्रांस और बेल्जियम की ओर तेजी से जाने लगे. जर्मन सेना ने उन पर आक्रमण किया. अमेरिकी सेना के 19 हजार से ज्यादा सैनिक इसमें घायल हुए. इसके बाद जर्मनों की आपूर्ति सीमित होने लगी. ईंधन और गोला-बारूद खत्म होने लगे. इस युद्ध में जर्मनी की हार हुई.

मोंटे कैसिनो की लड़ाई - जनवरी से मई 1944

अंजियो के बाद, जर्मन लोगों ने इटली में शीतकालीन रेखा के रूप में जानी जाने वाली रक्षात्मक जगहों जैसे - बंकर, कांटेदार तार और खदान पर कब्जा कर लिया.

अंजियो की लड़ाई - जनवरी से जून 1944

मित्र राष्ट्रों ने गुस्ताव लाइन पर दबाव बनाए रखने के लिए अपनी बाद की चालों की योजना बनाना शुरू की और इस तरह जर्मनों से अंजियो का युद्ध लड़ा. 1943 में मित्र राष्ट्रों ने इटली पर आक्रमण किया. अक्रमण के लिए मित्र राष्ट्रों ने अपने बलों को विभाजित कर दिया. हालांकि इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों की हार हुई.

इवो ​​जिमा की लड़ाई - फरवरी से मार्च 1945

इवो ​​जिमा की लड़ाई, एक बड़ी लड़ाई थी जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका समुद्री कोरों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना से इवो जिमा द्वीप पर कब्जा कर लिया था. अमेरिकी आक्रमण, नामित ऑपरेशन डिटेचमेंट, जापानी मुख्य द्वीपों पर हमलों के लिए एक स्टेजिंग क्षेत्र प्रदान करने के लिए, तीन जापानी नियंत्रित एयरफील्ड (दक्षिण क्षेत्र और केंद्रीय क्षेत्र समेत) सहित पूरे द्वीप पर कब्जा करने का लक्ष्य था. द्वीप पर आईजेए पदों को बंकरों, छिपे हुए तोपखाने की स्थिति, और 18 किमी भूमिगत सुरंगों के घने नेटवर्क के साथ भारी दृढ़ता से मजबूत किया गया था. इस युद्ध में जापानी सेना ने मजबूत प्रतिरोध किया लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया.

क्रीट की लड़ाई - मई 1941

जर्मन सेना ने क्रीट द्वीप पर हवाई हमला किया था. जर्मनी के आक्रमण के दौरान पैराट्रूपर्स का इस्तेमाल किया था. क्रीट का ब्रिटिश और यूनानी सेनाओं द्वारा बचाव किया गया था. हालांकि, मित्र राष्ट्रों के बीच संचार विफलताओं के चलते जर्मन सेना ने हवाई क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और फिर समुद्री क्षेत्र में कब्जा कर लिया. मित्र राष्ट्रों ने दो सप्ताह की लड़ाई के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था.

Last Updated : Sep 2, 2020, 11:30 AM IST

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