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जानें, क्या भारत दवाओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन पाएगा !

एक संसदीय रिपोर्ट के अनुसार चीनी दवा क्षेत्र पर भारत की निर्भरता 23 प्रतिशत बढ़ गई है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने दवाइयों और दवाओं के लिए कच्चे माल के लिए चीन पर इसके अतिरेक के बारे में सरकार को चेतावनी दी है. प्रभावी रूप से सीमा अतिक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देने के बाद भारत ने चीनी उत्पादों पर भी कड़ा रुख अपनाया है, लेकिन जीवन रक्षक एपीआई पर प्रतिबंध इतना सरल नहीं हो सकता है जितना कि खिलौने पर प्रतिबंध करना है. एक संसदीय पैनल ने चुनौती की गहन जांच की और व्यापक सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की.

जानें, क्या भारत दवाओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन पाएगा
जानें, क्या भारत दवाओं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन पाएगा

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Published : Jul 29, 2020, 10:22 PM IST

हैदराबाद : आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दृष्टि के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की. इस मिशन का उद्देश भारत को फार्मेसी की दुनिया में ऊपर लाना है. भारत अभी भी सक्रिय दवा सामग्री (pharmaceutical ingredients) (एपीआई) और मध्यवर्ती दवाओं का 84 फीसदी हिस्सा आयात कर रहा है.

इन आवश्यकताओं का 60 फीसदी से अधिक अकेले चीन से आता है. दो दशक पहले तक भारत घरेलू स्तर पर एपीआई का निर्माण करता था, जब से चीन भारी मात्रा में निर्माण करने लगा है और सस्ते दामों पर बेचने लगा है तब से स्थानीय निर्माताओं ने सस्ते आयात की ओर रुख किया. यहां तक ​​कि एस्पिरिन और क्रोकिन जैसी काउंटर दवाओं पर भी घरेलू दवा कंपनियां चीन पर निर्भर हैं.

एक संसदीय रिपोर्ट के अनुसार चीनी दवा क्षेत्र पर भारत की निर्भरता 23 प्रतिशत बढ़ गई है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने दवाइयों और दवाओं के लिए कच्चे माल के लिए चीन पर इसके अतिरेक के बारे में सरकार को चेतावनी दी है. प्रभावी रूप से सीमा अतिक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देने के बाद भारत ने चीनी उत्पादों पर भी कड़ा रुख अपनाया है, लेकिन जीवन रक्षक एपीआई पर प्रतिबंध इतना सरल नहीं हो सकता है जितना कि खिलौने पर प्रतिबंध करना है. एक संसदीय पैनल ने चुनौती की गहन जांच की और व्यापक सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की.

रिपोर्ट ने एपीआई उत्पादन में आत्मनिर्भरता के महत्व पर जोर दिया गया. इसके अलावा, पैनल ने जेनेरिक दवाओं को स्टॉक करने और दवाओं पर वास्तविक सीमा शुल्क को कम करने की दृढ़ता से सलाह दी. सरकार को घरेलू चिकित्सा विनिर्माण को पुनर्जीवित करना चाहिए और थोक दवा इकाइयों की स्थापना करनी चाहिए.

दो साल पहले पेइचिंग में प्रदूषण फैलाने वाली फर्मों के खिलाफ कार्रवाई शुरू होने से भारत में एक तरह का संकट पैदा हो गया है, जिससे विटामिन सी कैप्सूल की कमी हो गई है.

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने 2015 को एपीआई का वर्ष घोषित किया था. इसका उद्देश्य एपीआई क्षेत्र के लिए मेक इन इंडिया के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बेहतर और अधिक समन्वित प्रयासों को बढ़ावा देना था.

2013 में, तत्कालीन यूपीए सरकार ने वीएम कटोच के तहत एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया. इसका उद्देश्य थोक दवाओं के महत्व और चीन पर भारतीय दवा बाजार की व्यापकता का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना था.

समिति ने बल्क ड्रग पार्क स्थापित करने का प्रस्ताव रखा और इस निर्भरता को कम करने के लिए आवश्यक रियायतों के पैकेज की रूपरेखा तैयार की.

इसके अलावा इसने सिफारिश की कि सरकार प्रदूषण मुक्त समूहों के विकास और रखरखाव में सहयोग करे और आगे के शोध को प्रोत्साहित करे.

दुर्भाग्य से भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां शोध को आधिकारिक स्वीकृति की आवश्यकता है.

उद्योग के सूत्रों के अनुसार, अतीत में छह पेनिसिलिन जी उत्पादन संयंत्र थे. सरकारी सहायता की कमी के कारण, सभी चीन में स्थानांतरित हो गए. इससे बचने के लिए केंद्र सरकार ने मार्च में थोक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों और निर्यात के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 13,760 करोड़ के पैकेज को मंजूरी दी. आत्मनिर्भरता हासिल करने के साथ-साथ चीन पर निर्भरता में रणनीतिक कमी भारत के लिए सबसे न्यायसंगत कदम होगा.

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