जैव ईंधन (बायो फ्यूल) के उत्पाद में भारत, दुनिया के विकसित देशों से मुकाबला कर रहा है. भारत ने पहले ही, जेट्रोफा के पौधे से बायो फ्यूल बना लिया है और अब देश के वैज्ञानिक, खाने के तेल से डीजल बनाने की तरफ कार्य कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में हम, देश में जैव ईंधन को लेकर किये जा रहे प्रयासों के बारे में बात करेंगे.
भारतीय पेट्रोलियम अनुसंधान संस्थान (आईआईपी), जो पहले जेट्रोफा के पौधे से जैव ईंधन बना चुका है. अब, खाना पकाने के तेल से डीजल बनाने पर काम कर रहा है. पिछले महीने, कोलकाता में हुए, इंटरनेशनल साइंस फेस्ट में, आईआईपी के वैज्ञानिकों ने इस बारे में प्रदर्शन किया.
ताजा खाने के तेल को मेथनॉल और कुछ केमिकल मिलाकर, डीजल में बदला जा सकता है. आईआईपी में कई सालों से जेट्रोफा से जैव ईंधन बनाया जा रहा है. कई राज्यों में किसानों ने जेट्रोफा की खेती करनी शुरू कर दी है. भारतीय किसान अब जेट्रोफा को तेजी से उगाने के लिये, इजरायल की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे है. वहीं, केंद्र सरकार की मदद से, अब देश भर में ईथनॉल को ईंधन की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा है.
इसके साथ ही, खाना बनाने के तेल से जैव ईंधन बनाने की कोशिशें जारी हैं. आईआईपी द्वारा, जेट्रोफा से बनाये गये जैवईंधन को, दो स्ट्रोक इंजन को चलाने में कामयाबी से इस्तेमाल किया जा चुका है. महाराष्ट्र परिवहन विभाग के कुछ वाहन भी इस तेल का इस्तेमाल करते हैं.
इन सभी कामयाबियों के बावजूद, देश में व्यवसायिक तौर पर जैव ईंधन का उत्पाद शुरू नहीं हो सका है. खाने के तेल से डीजल बनाने की तरफ भी तेजी से काम हो रहा है. वहीं, जेट्रोफा से बने 330 किलो ईंधन से हाल ही में एक हवाई जहाज ने भी उड़ान भरी है.
स्पाइसजेट के इस विमान नें, 2018 में देहारदून से दिल्ली का सफर 45 मिनट में पूरा किया. 2019 की गणतंत्र दिवस परेड के दौरान, वायु सेना के एन-32 हवाई जहाज भी जेट्रोफा से बने ईंधन से उड़े थे. जेट्रोफा के पौधे में 40% तेल होता है.
इसे हवाई जहाज के सामान्य तेल में मिलाकर उड़ान भरी गई थी. छत्तीसगड़ के नकस्ल प्रभावित इलाकों में, 500 किसान जेट्रोफा की खेती कर रहा हैं.जैव ईंधन के उत्पाद के लिये, करीब 400 किस्म के बीजों का इस्तेमाल होता है. केरोसीन पर आधारित ईंधन से उड़ान भरने पर पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है. पर्यावरण में हो रहे बदलावों की 4.9% जिम्मेदारी हवाई जहाजों की है.
आईआईपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रंजन रे के अनुसार, जैवईंधन के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है. भारत में इस्तमेाल होने वाले लड़ाकू विमान, सालाना, 60-70 लाख टन हवाई ईंधन की खपत करते हैं. इसमे से, आधे की पूर्ति जैव ईंधन से होती है, और इसमें एक तिहाई खाने के तेल के इस्तेमाल से न केवल, हवाई ईंधन की कीमत कम होगी, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी.