नई दिल्ली : स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि दीपावली के दौरान उपयुक्त उपाय नहीं किए गए, तो प्रदूषण कोरोना वायरस के फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इससे फेफड़ों और श्वास नली पर हमला होता है. अगर पटाखों के धुएं के साथ वायरस सिस्टम में प्रवेश करता है, तो खतरा बहुत ही तीव्र होगा. इसकी वजह से दिल्ली सहित कई राज्यों ने पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि पुराने रोगी और जिन्हें सांस की समस्या है, उनको पटाखों के धुएं से बचना चाहिए.
व्यापक प्रसार के लिए अनुकूल
आम तौर पर, पटाखे से होने वाले प्रदूषण से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं. हम जानते हैं कि हर साल दीपावली के बाद प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यह उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करेगा जो कोविड के शिकार हुए और हाल ही में रिकवर हुए हैं. ठंड का मौसम और प्रदूषण उन लोगों को भी प्रभावित करता है, जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं. भारत में नवंबर में अभी तक 85,53,657 कोरोना के शिकार हुए हैं. जिसमें 79,13,373 लोग ठीक हुए हैं. वर्तमान में 5,09,673 का इलाज चल रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मरीज जो आईसीयू में हैं, उन्हें पटाखे के धुएं के कारण तीव्र समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
अमेरिका, ब्रिटेन और इटली में अध्ययन
कारोना से हुई मृत्यु के मामलों मे इटली पहले स्थान पर है. अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाला है कि उत्तरी इटली में जहां मध्य और दक्षिण इटली के क्षेत्रों की तुलना में प्रदूषण अधिक है, वहां मौतों की संख्या अधिक है. प्रदूषक तत्वों के निरंतर संपर्क में रहने के कारण प्रदूषण सीधे रक्त धमनियों में जाता है और वहां सूजन हो जाएगी. अगर कोविड इससे जुड़ जाता है, तो खतरा और बढ़ जाता है और मौत अवश्यंभावी हो जाती है. यहां तक कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया था.
न्यूयॉर्क शहर में, अधिकांश लोग मारे गए. यहां जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है. कोरोना से संबंधित मौतों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि बहुत ही खतरनाक धूल के कण (सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर - एसपीएम -2.5) एक माइक्रोग्राम प्रति नैनो क्यूबिक मीटर तक भी बढ़ जाते हैं, तो मृत्यु दर 8 प्रतिशत बढ़ जाएगी. इसी तरह उन जगहों पर जहां हवा की गुणवत्ता के मानक सबसे कम थे, कोविड की मौतें अधिक हैं. ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि प्रदूषण के कारण कोविड की तीव्रता बढ़ रही है.