नई दिल्ली: कांग्रेस ने डोकलाम के निकट चीन की ओर से निर्माण किए जाने की दावे वाली एक खबर को लेकर सोमवार को सरकार पर निशाना साधा और सवाल किया. उसने कहा कि चीनी आक्रमकता का मुकाबला करने के लिए क्या कदम उठाए हैं.
कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को सैटेलाइट इमेजरी को लेकर केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की चीन के मामलों में जो चुप्पी है वह बहुत ही रहस्यमयी है. सभी को यह बात समझ नहीं आ रही है कि सरकार और खासतौर पर प्रधानमंत्री क्यों चुप रहते हैं?
पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने दावा किया कि चीन के इस कदम से सिलिगुड़ी कोरिडोर के लिए खतरा पैदा हुआ है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की चुप्पी के कारण चीन की आक्रमकता बढ़ती जा रही है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस खबर को साझा करते हुए ट्वीट किया कि चीन की भू-राजनीतिक रणनीति का मुकाबला मीडिया की रणनीति से नहीं किया जा सकता. यह साधारण सा तथ्य भारत सरकार चला रहे लोगों को समझ आ जाना चाहिए.
खेड़ा ने दावा किया कि उपग्रह के माध्यम से आई तस्वीरों से पता चलता है कि डोकलाम के क्षेत्र में निर्माण कार्य हुआ है औा इससे हर देशप्रेमी भारतीय के लिए चिंता पैदा हुई है.
उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार के पास इस निर्माण के बारे में कोई खूफिया जानकारी थी? अगर हां तो फिर इस आक्रमकता को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए?’’
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि चीनी आक्रामकता को सक्षम करने में सरकार की चुप्पी है. अब एक समाचार आया है कि डोकलाम से 9 किलोमीटर दूर चीन ने कुछ गांव बसा दिये हैं, साथ ही कुछ उपग्रह तस्वीरें भी हैं, जो सभी के सामने आ गयी हैं.
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उन्होंने कहा कि चीन से जुड़े विकास पर सरकार की चुप्पी समझ में नहीं आ रही है. इस तथ्य की कोई स्वीकार्यता नहीं है कि हम अब एक बहु सीमा तनाव में फंस गए हैं? उपग्रह तस्वीरों से यह स्पष्ट होता है कि ये कोई अस्थायी निर्माण नहीं है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, पक्की सड़कें, उनकी नीयत साफ तौर पर नजर आ रही है.
खेड़ा ने आगे कहा कि नेपाल के साथ कई मुद्दे सामने आ चुके हैं. पाकिस्तान की सीमा लद्दाख में चीनी आक्रमण के साथ पहले ही कार्रवाई कर चुकी है. चीन ने सीधे तौर पर आक्रामक रुख दिखाया है.
स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को यह स्वीकार करना चाहिए कि वो अलग-अलग सीमाओं पर चीन को रोकने में नाकाम रही है. लद्दाख की चर्चा बार-बार हुई, सरकार की तरफ से नहीं, तो मीडिया की तरफ से हुई. सरकार ने चर्चा की भी तो अलग-अलग स्वरों में, अलग-अलग तरह से की.