नई दिल्ली: वर्तमान लोकसभा के अंतिम सत्र (बजट सत्र) के दौरान विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक और तीन तलाक संबंधी विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं किये जा सकने के कारण इनका निष्प्रभावी होना तय है.
दोनों विधेयक लोकसभा से पारित हो चुके हैं लेकिन उच्च सदन में बजट सत्र के दौरान कार्यवाही लगातार बाधित रहने के कारण इन्हें राज्यसभा में पारित नहीं किया जा सका. तीन जून को इस लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर ये दोनों विधेयक निष्प्रभावी हो जायेंगे.
लोकसभा में भंग होने पर निष्प्रभावी
संसदीय नियमों के अनुसार राज्यसभा में पेश किये गये विधेयक लंबित होने की स्थिति में लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी नहीं होते हैं. वहीं लोकसभा से पारित विधेयक यदि राज्यसभा में पारित नहीं हो पाते हैं तो वह लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी हो जाते हैं. नागरिकता विधेयक और तीन तलाक विधेयक के कुछ प्रावधानों का विपक्षी दल राज्यसभा में विरोध कर रहे हैं. उच्च सदन में सत्तापक्ष का बहुमत नहीं होने के कारण दोनों विधेयक लंबित हैं.
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नागरिकता विधेयक के संसद में पारित ना होने पर विपक्षी दलों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है और खुशी भी जाहिर की.
मणिपुर के समाजिक कार्यकर्ता ने भी इस बिल को स्थानीय हितों के खिलाफ करार दिया.
कृषक मुक्ति संग्राम समिति के अध्यक्ष अखिल गोगोई ने इस बिल को कठोर (draconian) करार दिया.
बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (BPF) के वरिष्ठ नेता तथा राज्यसभा सांसद विश्वजीत दैमारे ने भी बाल पास न होने पर खुशी जाहिर की.
कांग्रेस नेता रिपुन बोरा ने पार्टी नेतृत्व का आभार जताते हुए बिल पास न होने को खुद की नैतिक जीत करार दिया. उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट रहा.
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड ए संगमा ने विधेयक पारित न होने पर खुशी जाहिर की.
असम गण परिषद के अतुल बोरा ने बिल पारित न होने पर खुशी जताई. उन्होंने इसे असम के लोगों की जीत करार दिया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भुवनेश्वर कलिता ने बिल पारित न होने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि असम के स्थानीय हित में कांग्रेस शुरू से ही इसके खिलाफ थी.
क्या है नागरिकता विधेयक
नागरिकता विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आये वहां के अल्पसंख्यक (हिंदू, जैन, इसाई, सिख, बौद्ध और पारसी) शरणार्थियों को सात साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया है. मौजूदा प्रावधानों के तहत यह समय सीमा 12 साल है.
असम सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध
इन देशों के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को निर्धारित समय सीमा तक भारत में रहने के बाद बिना किसी दस्तावेजी सबूत के नागरिकता देने का प्रावधान है. यह विधेयक गत आठ जनवरी को शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किया गया था. इसका असम सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध किया जा रहा है.
तीन तलाक अध्यादेश
इसी प्रकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश के तहत ‘तीन तलाक’ को अपराध घोषित करने के प्रावधान का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. इसमें तीन तलाक बोलकर पत्नी को तलाक देने वाले पति को जेल की सजा का प्रावधान किया गया है.
दोबारा अध्यादेश लागू करना पड़ा
तीन तलाक को अवैध घोषित कर इसे प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को सरकार अध्यादेश के जरिये दो बार लागू कर चुकी है. इस अध्यादेश को विधेयक के रूप में पिछले साल सितंबर में पेश किया गया था जिसे लोकसभा से दिसंबर में मंजूरी मिली थी लेकिन इस विधेयक के राज्यसभा में लंबित होने के कारण सरकार को दोबारा अध्यादेश लागू करना पड़ा.