भारत में कोरोना से प्रभावित मरीजों की संख्या 271 जा पहुंची है. यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. पांच की मौत भी हो चुकी है. ताजा रिपोर्ट के अनुसार हाल में इटली से आए एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिसे जयपुर के एक अस्पताल ने ठीक करने का दावा किया था.
वैश्विक मौत का आंकड़ा 11,000 से अधिख पहुंच गया है. संक्रमित व्यक्तियों की कुल संख्या 2,76,000 को छू गई है. यह संख्या हर घंटे बढ़ रही है. भारत में प्रभावित मरीजों की कम संख्या को लेकर हमें कोई भ्रम नहीं पालना चाहिए. अगर सामुदायिक संचरण दर में वृद्धि होती है, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर सुनामी जैसा झटका लग सकता है. खासकर तब जबकि कोरोना के लक्षण दिखने के बावजूद लोग अपने आप को आइसोलेट करने में देरी कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत ही सही समय पर राष्ट्र के नाम संबोधन किया और लोगों से आत्म अनुशासन और संकल्प तथा संयम का प्रदर्शन करने की बात कही है. साथ ही साथ देश के कई हिस्सों में संगरोध केंद्र (क्वारेंटाइन सेंटर) स्थापित किए जा रहे हैं. इसमें भारतीय सेना के जवान बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. अभी नौसेना ने विशाखापत्तनम में एक क्वारेंटाइन सेंटर स्थापित किया है. उम्मीद की जा रही है कि यह समग्र राष्ट्रीय प्रयास को बढ़ावा देगी.
इससे पहले चार सेंटर स्थापित किए गए थे. राजस्थान के जयसलमेर और हरियाणा के मानेसर वाले सेंटर को सेना प्रबंधित कर रही है. मुंबई के सेंटर को सेना और हिंडन में एयरफोर्स ऐसे ही सेंटर को प्रबंधित कर रही है.
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अधिक से अधिक क्वारेंटाइन सेंटर और सुविधा केन्द्र तैयार किए जा रहे हैं. जोधपुर, कोलकाता, चेन्नई (सेना द्वारा), डुंडीगल, बेंगलुरु, कानपुर, जोरहाट, गोरखपुर (एयरफोर्स द्वारा) और कोच्चि (नौसेना द्वारा) में केंद्र बनाया जा रहा है.
यह ध्यान देने वाली बात है कि सैन्य संगरोध सुविधाएं शहरों / नोड्स में बनाई जा रही हैं जहां सशस्त्र बल की सुविधाएं मौजूद हैं. यहां पर डब्ल्यूएचओ और संबंधित दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित अनिवार्य संगरोध प्रोटोकॉल सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध हैं. सेना / नौसेना / वायु सेना के मुख्य चिकित्सा कर्मियों के पास एक जटिल चुनौती से निपटने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और कौशल है.
भारत के लिए यह चुनौती जटिल है. अतीत में इस तरह का कोई अनुभव नहीं रहा है, जब इतनी बड़ी संख्या में लोगों को क्वारेंटाइन कर रखा गया हो और सेना उनकी निगरानी कर रही हो. दुर्भाग्य ये है कि इसके बावजूद कुछ लोगों ने स्थापित प्रोटोकॉल को तोड़ा. कुछ लोगों ने विरोध किया. मजबूरन स्थानीय पुलिस को हस्तक्षेप भी करना पड़ा.
यह तो शुरुआती चरण है. अगर तीसरे चरण तक स्थिति पहुंच गई, तो स्थिति क्या होगी, कहना मुश्किल है. जैसा कि इटली, स्पेन और ईरान में देखने को मिल रहा है. हमारी आबादी इतनी बड़ी है, लेकिन उसके मुकाबले टेस्टिंग फैसिलिटी उपलब्ध नहीं है. फिर भी सेना इस कठिन परिस्थिति में अपनी भूमिका निभा रही है.