गुवाहाटी:31 अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (नेशनल सिटिजन रजिस्टर) का प्रकाशन होगा. इससे यह मालूम हो जाएगा कि पिछले साल के मसौदे से बाहर हुए 40 लाख लोगों में से कितने इस एनआरसी लिस्ट में जगह बना पाते हैं और कितने नहीं.
असम के स्थायी निवासियों में कई लोग ऐसे हैं, जो NRC के लिए आवेदन नहीं भर सके थे. एनआरसी लिस्ट में पत्नी का नाम ना आने से करीमगंज के सोनैरपार गांव में प्रीति भूषण दत्ता नाम के एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली.
ऐसे ही बंती पुर गांव के रहीम अली ने इस डर से आत्महत्या कर ली कि उनके बच्चों का नाम NRC की सूची में नहीं आया तो उनको जेल भेज दिया जाएगा. रहीम अली की पत्नी हलिमुन नेस्सा ने बताया कि रहीम कहा करते थे कि उनके पास न्यायालय में केस लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. और उनके बच्चों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
आज आएगी NRC की अंतिम सूची, असमंजस में लोग उन्होंने कहा कि उनको नहीं पता कि वह क्या करेंगी अगर शनिवार को प्रकाशित होने वाली सूची में उनके बच्चों का नाम नहीं आया.
सरकार की NRC के आलोचकों का मानना है कि इससे लाखों लोग बेघर हो जाएंगे और वह किसी देश के नहीं रह जाएंगे.
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार NRC जैसा नागरिकता प्लान पूरे देश में लागू करना चाहती है.
गौरतलब है कि जून में प्रकाशित रजिस्ट्री के ड्राफ्ट में असम में रहने वाले 32 लाख लोगों में से लगभग चार लाख लोगों का नाम नहीं शामिल था.
खबर है कि कुछ भाग गए और कुछ ने बरपेटा के रहने वाले अली की तरह आत्महत्या कर ली. जानकारी के लिए बता दें कि बरपेटा गुवाहाटी से 130 किमी उत्तरपश्चिम में एक गांव है.
असम के हरे भरे पहाड़ी क्षेत्र ने हमेशा से पड़ोसी बांग्लादेश से कामगारों को आकर्षित किया . कामगार अंग्रेजों के जमाने के असम के चाय के बागानों में काम करने के लिए आते रहे हैं.
NRC के समर्थकों का कहना है कि लगातार विदेशियों की संख्या बढ़ने से असम की राजनीति में स्थानीय लोगों की जगह विदेशियों का दबदबा है.
आपको बता दें कि NRC के खिलाफ प्रदर्शन में कांदाकरपारा गांव में पुलिस की कार्रवाई में चार प्रदर्शनकारियों की जान चली गई थी.
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जो लोग देश में गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं उनको व्यवस्था के समक्ष अपनी भारतीय नागरिका को सिद्ध करना होगा. NRC के आलोचकों का मानना है कि NRC के जरिए लाखों मुस्लिमों को बांग्लादेश भेजने की कोशिश है, जिनमें से कई गैरकानूनी तरीके से देश में घुसे थे.
हालांकि NRC के समर्थकों का मानना है कि यह असम के स्वदेशी लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनका धर्म क्या है.
समुज्जल भट्टाचार्य जो गुवाहाटी में गैरकानूनी अप्रवासन के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा हैं, उनका कहना है कि यह हिन्दु या मुस्लिम का सवाल नहीं है.
आपको बता दें कि जो लोग ट्रीब्यूनल के सामने अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाएंगे उनको विदेशी मान लिया जाएगा. उनको 120 दिनों को समय दिया जाएगा जिसमें वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता है, कोई याचिका नही दाखिल की जाती है तो जिला मजिस्ट्रेट न्यायाधिकरण को नागरिकता छीनने के लिए एक रेफरल देते हैं.
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि जिनकी नागरिकता छिन जाती है तो उसके बाद उनके साथ क्या होगा. क्योंकि भारत का बांग्लादेश के साथ नागरिकों को वापस भेजने को लेकर कोई समझौता नहीं है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और असम राज्य की आलोचना करते हुए कहा कि हजारों लोग जो वर्षों से विदेशी घोषित किए गए थे गायब हो गए. वहीं असम की जेलों में लगभग 1,000 अन्य लोग बंद हैं.
51 वर्षिय हिंदू मंजुरी भौमिक को डर है कि अगर उनको विदेशी घोषित कर दिया गया तो उनके दो बेटों का क्या होगा. भौमिक पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं. 1991 में शादी के बाद वह असम आ गईं थी. उनको संदिग्ध मतदाता होने का नोटिस आया था. लिहाजा भौमिक ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पहचान पत्र की कापियां और कलकत्ता विश्वविद्याल की डिग्री तक जमा की है.
जानकारी के लिए बता दें, वर्ष 1948 में पाकिस्तान, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से शरणार्थियों के लिए आधिकारिक कटऑफ की तारीख तय की गई थी. इसे बाद में 1951 कर दिया गया था और फिर 1971 तक बढ़ा दिया था.
गुवाहाटी के रहने वाले पूर्व सैनिक मोहम्मद सनाउल्लाह कहते हैं, मुझे आश्चर्य होता है कि मैनें 30 साल देश की सेवा की और अब देश की नागरिकता के लिए भीख मांगनी पड़ रही है.
उन्होंने कहा, मुसलमानों को निशाना बनाया जाने की बात झूठ है और इसे बांग्लादेशी फैला रहे हैं. असम का जनसांख्यिकीय पैटर्न बदल गया है और असम और पूर्वोत्तर के लोगों की पहचान, भाषा, संस्कृति के लिए खतरा है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक टीम ने कहा कि NRC देश में धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ा सकता है.
बता दें कि एनआरसी का प्रकाशन भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक माह के भीतर होना है.