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निकट भविष्य में संभव नहीं भारत व यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता : विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच मुक्त व्यापार और निवेश समझौता हो पाना मुश्किल दिखाई देता है. हालांकि दोनों पक्षों के बीच इस बारे में एक नई उच्च स्तरीय बातचीत की शुरुआत की गई है. भारत और वियतनाम दोनों ही यूरोपीय बाजार में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहे थे. इस बीच पिछले माह वियतनाम ने यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर भारत को दौड़ में पीछे छोड़ दिया.

india us trade agreement
भारत ईयू मुक्त व्यापार समझौता

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Published : Jul 17, 2020, 8:13 PM IST

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने 15 जुलाई को भारत-यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन में वर्चुअल बैठक की थी. इस बैठक में दोनों पक्षों ने राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों के अलावा व्यापार, निवेश और आर्थिक सहयोग की समीक्षा भी की थी.

विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) विकास स्वरूप ने शिखर सम्मेलन के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि सम्मेलन के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक था व्यापार और निवेश संबंधों पर उच्च स्तरीय वार्ता की स्थापना करना, जो सभी व्यापार और बाजार के मुद्दों के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला लिंकेज पर चर्चा करेंगे. स्वरूप ने कहा कि दोनों पक्षों के नेताओं ने भारत और यूरोपीय संघ के बीच कोविड के बाद की आर्थिक सुधार प्राथमिकताओं के संदर्भ में आपूर्ति श्रृंखला लिंकेज के विविधीकरण, व्यापार और निवेश संबंधों के लिए पूरी क्षमता को साकार करने पर जोर दिया और दोनों पक्षों में व्यापार से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की.

उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने की प्राथमिकता पर जोर दिया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत सरकार विनियामक वातावरण को उदार बनाने के साथ-साथ व्यापार करने में आसानी को बेहतर बनाने के प्रयासों को जारी रखेगी.

विकास स्वरूप के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में अवसरों का उपयोग करने के लिए यूरोपीय व्यवसायों को आमंत्रित किया और संदेश दिया कि आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य भारत में घरेलू उत्पादन को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जोड़ना है.

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारी साथी है और भारत 2018 में यूरोपीय संघ का नवां बड़ा व्यापारी साथी रहा है. 2018-19 में भारत और यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 115.6 बिलियन डॉलर था, जबकि भारत का निर्यात 57.17 बिलियन डॉलर और आयात 58.42 बिलियन डॉलर था. भारत यूरोपीय संघ से चौथा सबसे बड़ा सेवा निर्यातक भी है और यूरोपीय संघ से सेवा निर्यात के लिए छठा सबसे बड़ा गंतव्य है.

यूरोपीय संघ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत है. अप्रैल 2000 से जून 2018 की अवधि में भारत की इक्विटी में यूरोपीय संघ के देशों से 90.7 बिलियन डॉलर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया, जो भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग 24 प्रतिशत है. एक निवेश सुविधा तंत्र यूरोपीय संघ से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है और सुविधा प्रदान करता है. यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक ने नई दिल्ली में अपना कार्यालय मार्च 2017 में खोला है, जिसके द्वारा भारत की कई योजनाओं के लिए ऋण उपलब्ध कराया गया. यूरोपीय संघ देशों में भारत ने 50 बिलियन यूरो निवेश किए हैं.

इन सबके बावजूद दोनों पक्षों में मुक्त व्यापार समझौता नहीं हुआ है, जिसे व्यापक व्यापार और निवेश समझौता कहा जाता है. इस समझौते पर चर्चा 2007 में शुरू की गई थी, लेकिन वार्ता के करीब एक दर्जन दौर के बाद यह 2013 से स्थगित है.

जानकारों का कहना है कि भारत द्वारा सभी देशों के साथ अपनी द्विपक्षीय निवेश संधियों (बीआईटी) का त्याग करने के बाद यूरोपीय देशों के निवेश अब संरक्षित नहीं हैं. दिसंबर 2015 में नई दिल्ली द्वारा जारी नए बीआईटी मॉडल के बाद भारत ने सभी द्विपक्षीय निवेश संधियों को समाप्त कर दिया है.

इसके बाद सभी 28 देशों ने निवेश संरक्षण संबंधित समझौतों की जिम्मेदारी यूरोपीय संघ पर छोड़ दी है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारी संबंधों के बारे में ब्रेक्सिट व बहुआयामी आर्थिक संबंधों में परिवर्तनों के कारण निवेश संरक्षण के बारे में अनिश्चितता बनी है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय ने कहा कि डेटा सुरक्षा सहित ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, वाइन और डेयरी उत्पादों के आयात जैसे मुद्दों की वजह से भारत-यूरोपीय संघ के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता अटका हुआ है. सहाय कहते हैं 'निर्यातकों के संगठन होने की वजह से हम मुक्त व्यापार समझौते के पक्ष में हैं, लेकिन मूल बात इस पर निर्भर है कि कौन किसको कितनी छूट देता है. दोनों पक्षों को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.'

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज के चेयरपर्सन गुलशन सचदेवा के अनुसार यह देखते हुए कि ब्रिटेन भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहा है, इसके यूरोपीय संघ से बाहर निकलने से भारत को द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते के लिए अलग तरीके से संपर्क करने की आवश्यकता होगी. सचदेवा ने कहा कि यूरोपीय संघ के साथ ब्रिटेन किस तरह के व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेगा इस पर भी बड़ा आधार है. इसके बाद यूरोप और यूरोपीय अर्थव्यवस्था में शरणार्थी मुद्दा भी सामने आएगा. उन्होंने कहा कि 15 जुलाई के शिखर सम्मेलन के बाद व्यापार और निवेश संबंधों पर उच्चस्तरीय वार्ता की स्थापना की गई है, लेकिन यह केवल द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते पर वार्ता को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया पर चर्चा करेगा, जिसके कारण निकट भविष्य में समझौते के वास्तविक बनने की संभावना नहीं है.

सहाय ने यह भी कहा कि जून में यूरोपीय संघ के साथ वियतनाम ने जो मुक्त व्यापार समझौता किया है, उसने भी भारत की स्थिति को कमजोर बना दिया है.

यूरोपीय संघ और वियतनाम मुक्त व्यापार समझौता सिंगापुर के बाद यूरोपीय संघ और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के बीच दूसरा मुक्त व्यापार समझौता है. सहाय ने कहा, 'भारत और वियतनाम दोनों ही यूरोपीय बाजार में पहुंच बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. 'अब, वियतनाम मुक्त व्यापार समझौते की पुष्टि करने के साथ यूरोपीय बाजार तक पहुंच पाएगा. कपडे़, जूते, चमड़े के सामान, फर्नीचर, समुद्री उत्पादों और कुछ कृषि उत्पादों के मामले में अब वियतनाम को टैरिफ लाभ मिलेगा.'

(अरुनिम भुयान)

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