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विशेष लेख : हमारे कॉलेज, विश्वविद्यालयों को क्या कर रहा है परेशान?

उच्च शिक्षा पर हुए 2018-19 के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि भारत में उच्च शिक्षण संस्थाओं का विश्व में सबसे बड़ा नेटवर्क है. इनमे 993 विश्वविद्यालय, 39,931 कॉलेज, 10,721 अन्य संस्थान शामिल हैं. दाखिले का औसत, 18-23 साल के बच्चों में 26% और 18-22 साल के बच्चों में 30% है. पढ़ाई के लिए तैयार हर एक लाख की आबादी पर देश में 28 कॉलेज हैं.

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Published : Dec 24, 2019, 12:05 AM IST

higher education in india
प्रतीकात्मक फोटो

टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई) वर्ल्ड यूनिवर्सिटीज इंसाइट लिमिटेड, 2010 से सालाना टीएचई वर्ल्ड विश्वविद्यालयों की रैंकिंग निकालती हैं, जिसमे विश्व के विश्वविद्यालयों को रैंकिंग दी जाती है. इसके लिए पढ़ाई, रिसर्च, साइटेशन, अंतरराष्ट्रीय नजरिया और इंडस्ट्री आय के पैमानों का इस्तेमाल होता है. विश्वविद्यलयों का यह डेटा विश्वभर में सरकारों, विश्वविद्यालयों, छात्रों और अन्य लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है.

टीएचई वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 में 92 देशों के 136 विश्वविद्यालय शामिल हैं. 95.4 अंकों के साथ, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय पहले स्थान पर है. इसके बाद कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी 94.5 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर है. अमेरिका से सभी अच्छे संस्थान टॉप 100 में शामिल हैं. ब्रिटेन के भी कई संस्थान टॉप 100 में शामिल हैं. विश्व के बेहतरीन विश्वविद्यालयों की सूची में, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, स्विट्जरर्लैंड, बेल्जियम, जापान, हांगकांग, जर्मनी, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, फिंनलैंड, चीन , फ्रांस के संस्थान भी शामिल हैं. चीन और ऑस्ट्रेलिया विश्व स्तर के बेहतरीन संस्थानों की सूची में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

लेकिन भारत से कोई भी संस्थान टॉप 300 में भी नही है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस 2015 से 250-300 की श्रेणी में था, लेकिन 2020 में यह 300-350 की श्रेणी में लुढ़क गया है. दूसरे शब्दों में, 2012 से यह पहली बार है कि भारत से कोई भी संस्थान विश्व के टॉप 300 संस्थानों में शामिल नही है. जहां एकतरफ चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस जैसे देश अपनी रैंकिंग को लगातार बेहतर करने मे लगे हैं, वहीं भारत की रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है. हालांकि पिछले साल के 49 संस्थानों की तुलना में इस साल भारत के 56 संस्थान इस सूची में शामिल हैं. लेकिन इनमे से कोई भी टॉप 200 में तक जगह नही बना सका है. यह जानना जरूरी है कि किन कारणों से भारत से कोई भी विश्वविद्यालय टॉप 200 में अपने लिए जगह नहीं बना सकी है.

रैंकिंग का तरीका
इस रैंकिंग के लिए एक कड़ी और लंबी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है. हर संस्थान के लिए पहले से श्रेणीगत पैमानों की तुलना की जाती है. पांच क्षेत्रों में 13 पैमानों पर यह तुलना की जाती है. इन सभी पैमानों पर हर संस्थान को अंक देकर रैंकिंग निकाली जाती है.

रैंकिंग का तरीका

विश्वविद्यालय के लिए पात्रता के मूल नियम
मुख्यतौर पर, जो भी विश्वविद्यालय इस रैंकिंग में शामिल होना चाहते हैं, उसे अन्य शर्तों के अलाव निम्नलिखित पैमानों को पूरा करना होता है:

  • पिछले पांच वर्षों में 1000 से ज्यादा प्रकाशन और किसी एक साल में 150 से ज्यादा प्रकाशन.
  • अंडर ग्रैजुएट स्तर की पढ़ाई, केवल पीजी की पढ़ाई कराने वाले संस्थान इस लिस्ट में नही आते हैं.
  • किसी एक ही विषय पर सारा ध्यान न होना.
  • कोई भी दो क्रिटिकल वेल्यू शून्य न हों. इनमे शैक्षिक स्टाफ, अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक स्टाफ, अनुसंधान स्टाफ, छात्र, अंतर्राष्ट्रीय स्टाफ, अंडर ग्रैज्युएट डिग्री, पीएचडी डिग्री, संस्थान की आय, अनुसंधान की आय, आदि शामिल हैं.

डाटा स्रोत
इन श्रेणियों में तुलना के लिए डाटा निम्नलिखित स्रोतों से एकत्र किया जाता है;

स्वत: दिया गया डाटा : रैंकिंग के लिए 11 विषयों से संबंधित डाटा संस्थानों को टीएची के पोर्टल पर दाखिल करना होता है.

बाइबलोमेट्रिक डाटा : इस बार की रैंकिंग के लिए, 2014-2019 के बीच, एलिस्वेयर स्कोप्स द्वारा जारी 23,400 से ज्यादा लेखों का प्रयोग किया गया है.

साइटेशन डाटा : जितनी बार संस्थान द्वारा प्रकाशित काम का जिक्र, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्कॉलर अपने लेख में करते हैं, उसे साइटेशन कहा जाता है. यह डाटा इस बात को बताता है कि, किस मौजूदा अनुसंधान को अन्य लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है. मौजूदा सत्र में, 12.8 मिलियन लेखों की 77.4 मिलियन साइटेशनों की जांच की गई है. इनमे, पिछले पांच सालों में, लेख, लेखों के रिव्यू, कांफ्रेंस, किताबों के चैप्टर, प्रकाशित किताबें आदि को शामिल किया गया है.

एफडब्ल्यूसीआई स्कोर : एलिस्वेयर द्वारा दिया गया, प्रति विषय और ओवरऑल फील्ड वेह्टेड साइटेशन इंपैक्ट स्कोर भी इस काम में इस्तेमाल किया जाता है. इस स्कोर से इस बात की तुलना होती है कि, किसा संथान के लेखों को मिली साइटेशन उसी तरह के अन्य प्रकाशनों की तुलना में कितनी हैं.

शैक्षिक प्रतिष्ठा सर्वे : एलिस्वेयर द्वारा अनियमित शैक्षणिक सैंपल लेकर सालाना सर्वे किया जाता है. इसके अंतर्गत, पढ़ाई के लिए 15 और अनुसंधान के लिए 15 संस्थानों को विश्वभर से नामांकित किया जाता है. किसी भी संस्थान को मिलने वाले पढ़ाई और अनुसंधान के स्कोर हर श्रेणी में उस संस्थान को विश्वभर के स्कॉलर और रिसपोंडेंट के सर्वे से मिले जवाबों को दर्शाते हैं. इस सर्वे में किसी भी संस्थान को मिले मेंशन से शैक्षिक प्रतिष्ठा स्कोर तय होता है. किसी भी विश्वविद्यालय के कुल स्कोर की गणना सर्वे के डाटा को एग्रीगेट कर के निकाला जाता है.

इसलिए, किसी भी संस्थान के बेसिक डाटा को स्वायत तरह से एकत्रित डाटा से मिलाया जाता है. इनमे 10,000 स्कॉलर्रों का सालाना प्रतिष्ठा सर्वे, 13 मिलियन अनुसंधान प्रकाशन, इन प्रकाशनों की 77 मिलियन साइटेशन शामिल हैं. श्रेणियों पर ध्यान देने से यह बात साफ होती है कि, पढ़ाई, अनुसंधान और साइटेशन मिलाकर कुल अंको का 90% होते हैं और इनमे भी सिर्फ साइटेशन को 30% हिस्सा मिलता है. यानि अपनी रैंकिंग बेहतर करने के लिए विश्वविद्यालयों को अनुसंधान पर खास ध्यान देने की जरूरत है.

शिक्षक है मुख्य कुंजी
शिक्षा प्रणाली में शिक्षक सबसे अहम किरदार शिक्षकों का है. या यूं कहें कि किसी भी संस्थान में शिक्षा का स्तर, वहां मौजूद शिशकों के स्तर पर सीधे-सीधे निर्भर करता है. शिक्षक की क्वालिटी उसके अनुभव या और शैक्षिक योग्यता से मापी जा सकती है. शिक्षकों की उपलब्द्धता, छात्र-शिक्षक अनुपात से मापा जाता है. ये अनुपात जितना ज्यादा है, इसका मतलब एक शिक्षक पर उतने ज्यादा छात्र हैं, जिसका सीधा भार शिक्षक पर देखा जा सकता है. यानि अगर शिक्षक के ऊपर ज्यादा छात्रों का बोझ है तो यह तय है कि, छात्रों को भी क्वालिटी शिक्षा नही मिल सकेगी. इसके साथ ही जिन शिक्षकों पर ज्यादा छात्रों का बोझ होता है, वो अपने संस्थान में कोृ-कर्रिक्यूलर गतिविधियों में हिस्सा नही ले पाते हैं.

भारत में ग्रॉस एनरोलमेंट अनुपात (जीईआर) जहां 2014-15 में 24.3 था, वो अब बढ़कर 2018-19 में 26.3 हो गया है. छात्र-शिक्षक अनुपात भी इस समय में 22 से बढ़कर 29 हो गया है. अंतर्राष्ट्रीय तुलना में, छात्र-शिक्षक अनुपात में भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है. इनमे अमरीका, चीन, ब्रिटेन, ब्राजील, कनाडा, रूस, स्वीडन आदि शामिल हैं. विश्व के बेहतरीन शैक्षिक संस्थानों में छात्र-शिक्षकों का अनुपात सिंगल डिजिट तक में है.

भारत में छात्र-शिक्षक अनुपात के ऊंचे होने के पीछे, शैक्षिक संस्थानों में बेहतर शिक्षकों की भारी कमी कारण है. इस विषय में 2018 में संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में यूजीसी के अंतर्गत आने वाले शैक्षिक संस्थानों में 30% पद खाली पड़े हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि देश की युनिवर्सिटियों में करीब पांच लाख शिक्षकों की कमी है. इस कमी के पीछे कई कारण हैं. जिनमे सरकारी नियुक्तियां करने में सरकारी तंत्र की ढिलाई, बेहतर शिक्षकों की कमी, उच्च शैक्षिक संस्थानों में फंड की कमी, निजि संस्थानों द्वारा इस क्षेत्र में खर्चा करने में कंजूसी शामिल हैं. उच्च शैक्षिक संस्थानों में ये हालात लगातार खराब हो रहे हैं, क्योंकि छात्रों के दाखिले में इजाफा हो रहा है पर शिक्षकों की नियुक्ति इसके अनुपात में नहीं बड़ रही है.

वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में तो अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति और भी ज्यादा मुश्किल है. इसके पीछे इन इलाकों में संसाधनों की कमी और उम्मीदवारों के ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए अनिच्छा प्रमुख कारण है. शिक्षकों की इस कमी से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर एडहॉक शिक्षकों को रखा जाता है. शैक्षिक संस्थानों में बड़े पैमाने पर खाली पड़े शिक्षकों के पदों को देखते हुए, हाल ही में भारत सरकार ने सरकारी उच्च शैक्षिक संस्थानों को अपने यहां खाली पदों पर जल्द से जल्द नियुक्तियां करने के आदेश दिए हैं. इसके पीछे सरकार के कई लक्ष्य हैं, पर इनमे सबसे प्रमुख है, देश के उच्च शैक्षिक संस्थानों को विश्वस्तरीय मुकाबले के लिए तैयार करना.

अनुसंघान
टीएचई की रैंकिंग मुख्यतौपर विश्वविद्यालय स्तर पर अनुसंधान पर दिए जा रहे जोर को दर्शाती है. भारत के किसी भी शैक्षिक संस्थान के इस लिस्ट में टॉप 100-200 में न होने के पीछे उनके अनुसंधान की गुणवत्ता में कमी कारण है. अनुसंधान की गुणवत्ता को साइटेशन इंडेक्स और इंपैक्ट स्कोर से मापा जाता है. अगर कोई संस्थान अपने लिए अच्छी रैंकिंग चाहता है तो यह जरूरी है कि वहां अच्छे अध्यापक हों जो बेहतरीन अनुसंधान करने में मददगार साबित हों.

भारत मे बेहतर स्तर के अनुसंधान और तकनीकी संस्थान हैं. इनमे केंद्र और राज्य सरकारों से मदद प्राप्त और निजि संस्थान शामिल हैं. लेकिन अनुसंधान क्वालिटि के इंडेक्स पर, 5 में से भारत केवल 0.42 अंक ले पाता है. वहीं इस मामले में अमरीका और चीन का स्कोर 3.88 और 2.38 है. अनुसंधान के क्षेत्र में भारत में काफी कम निवेश होता है. 2018 में यह देश की जीडीपी का 0.69% था. वहीं अमरीका में यह 2.8%, चीन में 2.1%, इज्रायल में 4.3%, और दक्षिण कोरिया में 4.2% है. भारत में अनुसंधान में हो रहा निवेश, 2008 जीडीपी का 0.84% था, जो 2018 आते आते 0.69% ही रह गया. हर लाख की आबादी पर भारत में 15 रिसर्चर हैं, वहीं इनकी संख्या चीन में 111, अमरीका में 423, और इज्रायल में 825 है. शायद इन्ही कारणों की वजह से भारत बड़ी संख्या में न तो पेटेंट हासिल कर सका और न ही अच्छे प्रकाशन निकाल सका. वर्ल्ड इंटिलेक्च्युल प्रापर्टी संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में भारत ने 46,582 पैटेंट के लिए अर्रजियां दीं, वहीं चीन ने 13,81,584 और अमरीका ने 6,06,956 अर्जियां दाखिल की. हांलाकि प्रकाशनों के स्तर पर भारत का पांचवा स्थान है, साइटेशन इंपेक्ट के मामले में भारत का स्थान 11वां ही है. विश्व के टॉप 10 जर्नलों में से भारत के महज 15.8% ही हैं, वहीं ब्रिटेन के 37.3%, अमरीका के 36.2%, जर्मनी के 33.4%, चीन के 27.6% शामिल है. ये भारत में अच्छी क्वालिटी के प्रकाशनों की कम संख्या को दर्शाता है.

टीएचई के फॉर्मेट में पर्फर्मेंस इंडिकेटर पर गौर करें तो, जो संस्थान पढ़ाई और अनुसंधान में बेहतर स्कोर करता है उसे विश्व में पढ़ाई और अनुसंधान के लिए बेहतर संस्थानों में गिना जायेगा. स्टाफ, छात्रों और अनुसंघान भी अनुसंधान की तीव्रता और विश्व में उसकी लोकप्रियता पर निर्भर करता है. संस्थान को उद्योग से फंडिंग इस बात पर भी निर्भर करती है कि वो संस्थान उद्योगों को सहायता पहुंचाने वाले कितने अनुसंधान करता है.

उच्च शिक्षा में बेहतर क्वालिटी और कामयाबी के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने उच्च सिक्षा के लिए कार्य योजना बनाने के लिए दस दलों का गठन किया है. इन दलों ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है. इनमे उच्च शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए कदम और उन्हे पूरा करने के लिए आने वाले खर्च, समय, और निरीक्षण प्रणाली का ब्यौरा दिया गया है. इन रिपोर्टों को, 2019-2024 के बीच में लागू करने के लिए एक पांच साल की कार्य योजना में शामिल किया गया है. इस कार्य योजना का शीर्षक है, 'एज्युकेशन क्वालिटी अपग्रेडेशन एंड इंक्लूशन प्रोग्राम'.
भारत के सामने उसके भौगोलिक विभिन्नता का फायदा उठाने की चुनौती है. सभी को शिक्षा मुहैया कराने के साथ साथ, केंद्र और राज्य सरकारों को, शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने के लिए भी युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है. सरकार को ऐसे संस्थानों का निर्माण करना भी सुनिश्चित करना होगा, जिनके मानक देशभर के संस्थानों के लिए मानकों का काम करें.

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