हैदराबाद : ऊर्जा के क्षेत्र को लेकर मुख्य रूप से दो विषय हैं. ये हैं डिकार्बोनाइजेशन और बिजली का समान रूप से वितरण. जीवाश्म ईंधन के हानिकारक प्रभावों और लगातार बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से पृथ्वी को बचाने की वैश्विक खोज का यह एक हिस्सा है.
भारत अभी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बिजली पहुंचाने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है. यह स्थिति तब है जबकि अभी भी 20 करोड़ लोगों तक बिजली पहुंचानी है. दूसरी ओर आबादी भी लगातार बढ़ रही है. लिहाजा बिजली की खपत भी लगातार बढ़ती जा रही है. दूसरी ओर विकास के कारण भी बिजली की डिमांड बढ़ी है. भारत अभी भी बिजली की मांग को पूरी करने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है.
अगर भारत को जीडीपी में उत्सर्जन के योगदान को कम करना है, तो उसे क्रांतिकारी स्तर पर कदम उठाने होंगे. इस दशक के अंत तक भारत ने अपनी जरूरत का 40 फीसदी बिजली रेन्वेवल सोर्स से पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. यह पेरिस समझौते की रूपरेखा के अनुरूप है. जाहिर है, इस क्षमता को तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कर सकें.
भारत में प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है. ऐसा न मानें कि दुनिया के दूसरे देश प्रदूषण को बढ़ाने में पीछे हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का स्तर पिछले तीस सालों में 50 फीसदी तक बढ़ चुका है. जीवाश्म ईंधनों के जलाए जाने से कार्बन उत्सर्जन के बढ़ने की गति 62 फीसदी तक हो चुकी है. हम अस्वस्थकर हालात में जीने के लिए अभिशप्त हैं. अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा जन स्वास्थ्य पर खर्च कर रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेती है. भारत में प्रदूषण मौत की तीसरी बड़ी वजह है. भारत में हर साल 42 लाख लोग इसकी वजह से मरते हैं. दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 21 शहर भारत के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अधिकांश शहर वायु गुणवत्ता के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हैं.
वायु में औसतन 2.5 पीएम का संकेद्रण भारत में 50.08 है. उत्तर प्रदेश के औद्योगिक इलाकों जैसे मुरादाबाद, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा में वायु गुणवत्ता का स्तर बहुत ही खराब है. एयर क्वालिटी इंडेक्स वहां के हालात बताते हैं. गुवाहाटी, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, मेरठ, सिलीगुड़ी, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर भी प्रदूषण की चपेट में हैं. वायु गुणवत्ता सही नहीं है.
देश की राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सबसे निम्न किस्म का है. सरकार ने पराली जलाने, ट्रैफिक पर नियंत्रण लगाने और पटाखों पर बैन लगाकर कुछ हद तक इसे कम करने की कोशिश की है. दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत आपातकाल में उपयोग किए जा रहे डीजल जेनरेशन पर भी पाबंदियां लगाई हैं. पराली जलाने से बचने के लिए ऑर्गेनिक कंपोस्टिंग का विकल्प दिया गया है. इसके लिए विशेष तौर पर एक कैप्सूल तैयार किया गया है. इसके बावजूद घरेलू, औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोग के कारण कार्बन उत्सर्जन का लेवल काफी ज्यादा है. जाहिर है, इस पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है.
प्रदूषण का जैव विविधता पर भी काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता है. जलाशयों में यूट्रोफिकेशन की शिकायत रहती है. नदियों में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक जमा हो जाती है. इसकी वजह से यहां पर प्रदूषण बढ़ता है. शैवाल नदी को आच्छादित कर लेता है. शैवाल के अधिक रूप में जमा होने की वजह से नदी में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. ऐसे में नदियों में रहने वाली मछलियों और जल प्राणी के लिए जीना मुश्किल हो जाता है. यह तो एक छोटा सा उदाहरण है, जिसके जरिए आप समझ सकते हैं कि वायु प्रदूषण का कितना गंभीर असर पड़ता है. इसकी क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है. प्रकृति और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है.
नीति निर्धारकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती जीवाश्म ईंधन का विकल्प खोजना है. स्वच्छ ऊर्जा किसी तरह से पैदा की जा सकती है. जीवाश्म ईंधन न सिर्फ प्रदूषण बढ़ाता है, बल्कि इसकी मात्रा भी सीमित है.