आधुनिक बाजार ने पारंपरिक चीजों पर लगाया ग्रहण - Bamboo Business in Kanker
कांकेर: छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों में रहने वाले लोग हर मोर्चे पर चुनौती का सामना कर रहे हैं. आधुनिक होते बाजार ने पारंपरिक चीजों पर भी ग्रहण लगा दिया है. कभी घरों के, खेतों के और रसोइयों का अहम हिस्सा रहे बांस के सामान अब पूजा-पाठ तक सिमटने लगे हैं. बांस की बनी चीजों की जगह धीरे-धीरे प्लास्टिक के बने सामान लेने लगे हैं. बांस की टोकरियां, झेझरी, पर्रा अब धीरे-धीरे अब कम नजर आते हैं. विरोधाभास ये है कि बांस शिल्प भले ही ड्राइंग रूम सजा रहा हो, होटलों, रेस्त्रां में ग्रामीण परिवेश जैसी फीलिंग देने के काम आ रहा हो. लेकिन हर साल फसल बुवाई व कटाई के समय गुलजार रहने वाला यह बाजार सूना-सूना दिखता है. सीमित खरीदी के बाद इसे बनाने वाले हाथ इस काम से किनारा कर रहे हैं. बांस बस्तर के आदिवासियों की आजीविका के प्रमुख साधनों में से एक है लेकिन प्लास्टिक ने इस पर भी नजर लगा दी है.