सूरजपुर: जिले के बिहारपुर-चांदनी इलाके के कई गांवों में तीन से पांच दिन तक होली मनाई जाती है. गांव में पंचांग की तय तिथि से दो दिन पहले होलिका दहन करते हैं. इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि अनहोनी और विपत्तियों से बचने पहले होली मनाते हैं.
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सूरजपुर के ओड़गी ब्लॉक अंतर्गत क्षेत्र के महुली, कछवारी, मोहरसोप और बेदमी गांव में होलिका दहन पंचांग की तिथि के दो दिन पहले किया जाता है. स्थानीय लोगों के अनुसार यह परंपरा गांव में शुरू से ही चली आ रही है. गांव में गढ़वतिया पहाड़ पर मां अष्टभुजी देवी का मंदिर है. जहां 1960 के दशक में गांव के लोग होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा कर रखते थे. उस साल पांच दिन पहले ही रात के समय खुद ही लकड़ियों के ढेर में आग लग गई. तब से ये परंपरा चली आ रही है.
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ग्रामीणों ने बताया कि 'गांव के लोग होली के समय बैगा के पास जाते हैं और होलिका दहन की तिथि पूछते हैं. इस पर बैगा उन्हें पंचांग की तिथि के दो से लेकर पांच दिन पहले की कोई एक तिथि तय कर बता देते हैं. उसी दिन महुली गांव के लोग पहाड़ पर स्थित देवी मां के मंदिर के पास और कछवारी व मोहरसोप के लोग अपने गांव में ही होली मनाते हैं. 1988 में गांव के बैगा के यहां परिवार के सदस्य की मौत होने से पंचांग की होली से दस दिन बाद गांव में होलिका दहन की तिथि तय की. इसके बाद गांव में बीमारी फैल गई. काफी इलाज कराने के बाद भी फायदा नहीं मिलने पर लोगों ने बैगा से बात की. लोगों का मानना है कि बैगा की पूजा के बाद इस बीमारी से पीड़ित लोग अचानक ठीक हो गए. इसके बाद से इस परंपरा को मानने वालों की देवी मां पर आस्था और बढ़ गई. साथ ही होली से पहले ही होली मनाने लगे.