छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

3 गांव में पहले ही मना ली जाती है 'होली' अनोखी है यहां की परंपरा

महुली, कछवारी और मोहरसोप गांव में अनोखी होली खेली जाती है. इस गांव के लोग अनहोनी और विपत्तियों से बचने के लिए 3 दिन पहले होली मना लेते हैं.

3 गांव में पहले ही मना ली जाती है 'होली'
3 गांव में पहले ही मना ली जाती है 'होली'

By

Published : Mar 8, 2020, 6:39 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 7:19 PM IST

सूरजपुर: महुली, कछवारी और मोहरसोप गांव में अनहोनी और विपत्तियों से बचने के लिए 3 दिन पहले ही होली मना ली जाती है. इस गांव में अनोखी होली एक सप्ताह तक खेली जाती है.

3 गांव में पहले ही मना ली जाती है 'होली

बता दें कि सूरजपुर जिले के बिहारपुर-चांदनी क्षेत्र के 3 गांव में पंचांग की निर्धारित तिथि से 3 से 5 दिन पहले ही होलिका दहन कर दिया जाता है. इसके बाद होली का त्योहार शुरू हो जाता है.

तिथि से पहले किया जाता है होलिका दहन

इसके पीछे लोगों की मान्यता यह है कि अनहोनी और विपत्तियों से बचने के लिए होली पहले मना लेते हैं. यह पिछले 60 वर्षों से चला आ रहा है. जानकारी के अनुसार जिले के महुली, कछवारी और मोहरसोप गांव में पंचांग की तिथि के दो से पांच दिन पहले होलिका दहन किया जाता है.

गढ़वतिया पहाड़ पर मां अष्टभुजी देवी का मंदिर है

इस मामले में गांव के पूर्व सरपंच रनसाय ने बताया कि 'यह परंपरा गांव में शुरू से ही चली आ रही है. गांव में गढ़वतिया पहाड़ पर मां अष्टभुजी देवी का मंदिर है. 1960 के दशक में गांव के लोग होलिका दहन के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करके रखते थे और पांच दिन पहले रात में अचानक ही होलिका में आग लग जाती थी. ग्रामीणों का मानना है कि यह क्रम 1917 से चला आ रहा है. इसके बाद से ही गांव के लोग इस परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं'.

9 मार्च की रात होलिका दहन किया जाएगा

वहीं गांव के लोगों ने बताया कि 'लोग होली के समय बैगा के पास जाते हैं और होलिका दहन की तिथि पूछते हैं. इस पर बैगा उन्हें पंचांग की तिथि के दो से लेकर पांच दिन पहले की कोई एक तिथि निर्धारित कर बता देते हैं. इसके बाद ग्रामीण उस दिन होली मनाते हैं. इस साल यहां होलिका दहन 7 मार्च को किया गया है, जबकि भारतीय पंचांग के अनुसार 9 मार्च की रात होलिका दहन किया जाएगा'.

कालरा की फैली थी बीमारी

वहीं स्थानीय निवासी पप्पू जायसवाल ने बताया कि '1996 में गांव के बैगा के यहां परिवार के सदस्य की मृत्यु हो गई थी, जिस कारण पंचांग की होली से दस दिन बाद गांव में होलिका दहन की तिथि निर्धारित की गई, जिसके बाद गांव में कालरा की बीमारी फैल गई. काफी इलाज कराने के बाद भी कोई फायदा न मिलने पर लोगों ने बैगा से बात की. लोगों का मानना है कि बैगा की पूजा-अर्चना के बाद इस बीमारी से पीड़ित लोग अचानक ठीक हो गए. इसके बाद से इस परंपरा को मानने वालों की देवी मां के प्रति आस्था और बढ़ गई'.

Last Updated : Mar 8, 2020, 7:19 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details