सूरजपुर: जिले में बांस से सामान बनाने का काम कई दशकों से किया जा रहा है. बसोर समाज के लोग परंपरागत रूप से बांस की चीजें बनाने और इसे बेचने का काम करते हैं. बांस से बनी चीजों को मार्केट नहीं मिलने के कारण इन्हें आर्थिक दिक्कत तो हो ही रही है. इसके साथ ही इस समाज के पढ़े-लिखे लोगों को कहीं रोजगार भी नहीं मिल पा रहा है. इनके नाम के आगे लिखे 'बसोर' के कारण इन्हें ना ही कहीं रोजगार मिल रहा है और ना ही शासन की दूसरी योजनाओं का लाभ मिल रहा है.
सुरजपुर जिले का बृजनगर, खुंटापारा, कल्याणपुर और सोनवाही गांव आज भी पूरे संभाग में बांस से बने सामान की आपूर्ति के लिए मशहूर हैं. बसौर जाति पीढ़ी दर पीढ़ी बांस के सामान और बर्तन बनाकर जीवन यापन कर रही है. बांस का काम करने वाले इस समुदाय की जाति तूरी थी. लेकिन बांस का काम करने की वजह से इनकी जाति का नाम बसोर पड़ गया. अब यही जाति इनके लिए मुसीबत साबित हो रही है. सरकारी रिकॉर्ड में बसोर नाम की कोई भी जाति दर्ज नहीं है. जिसकी वजह से इन लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है. साथ ही इस समुदाय के शिक्षित लोगों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है. जिससे रोजगार और दूसरी सरकारी योजनाओं से भी वंचित है.
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सूरजपुर की बसोर जाति को नहीं मिल रहा रोजगार (Problem of Basor caste of Surajpur)
बांस का काम करने वाले गेंदा राम बताते हैं कि 'पूर्वज तूरी जाति लिखते थे. लेकिन 40 साल पहले व्यवसाय का लाभ लेने के लिए बसोर लिखवाया गया. जिससे सरकारी आंकड़े में तूरी और वर्तमान में बसोर लिखने के कारण जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण समाज के शिक्षित युवाओं को भी रोजगार नहीं मिल रहा है. फॉर्म भरने के दौरान जाति के कॉलम में वे अपनी जाति नहीं भर पाते हैं. जिससे रोजगार नहीं मिल रहा है'.
सूरजपुर में बांस महंगा