सुकमा: शिक्षक को पोस्ट ऑफिस से स्पीड पोस्ट करना मंहगा पड़ गया. शिक्षक ने जिला मुख्यालय के पोस्ट ऑफिस से 24 दिन पहले अपने बेटे को कुछ महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट को कोयंबटूर के लिए स्पीड पोस्ट किया था. जो 24 दिन बाद भी उसके बेटे के पास नहीं पहुंचा है. बाद में जब शिक्षक ने मामले में शिकायत दर्ज कराई तो डाक विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.
ऐसा रहा डाक सेवा का हाल, तो लोग क्यों करेंगे उपयोग डाक विभाग की लापरवाही से परेशान शिक्षक अपने स्तर पर खोजबीन शुरू कर दुर्ग के बस डिपो से अपने बेटे के डॉक्यूमेंट के साथ ही स्पीड पोस्ट से भरे 5 बोरे को खोज निकाला और जिला मुख्यालय के डाक विभाग को सौंप दिया.
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दरअसल, शिक्षक प्रफुल्ल डेनियल के बेटे को किसी जरूरी काम के लिए स्कूल और कॉलेज के ऑरिजनल मार्कशीट की तत्काल जरूरत थी. जिसपर उन्होंने 29 जुलाई को पोस्ट ऑफिस से कोयंबटूर भेजने के लिए ऑरिजनल मार्कशीट को स्पीड पोस्ट किया था. 10 से 12 दिनों के बाद भी बेटे को मार्कशीट नहीं मिलने पर उन्होंने पोस्ट ऑफिस जाकर पूछताछ की, जहां पोस्ट ऑफिस के जगदलपुर स्थित संभागीय कार्यालय से उन्हों कोई जानकारी नहीं मिली. इसके बाद 12 अगस्त को उन्होंने मामले की ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई. 14 अगस्त को उन्हें डाक विभाग की ओर से मामले को जांच में लिए जाने की जानकारी मिली.
विभाग को नहीं थी बस दुर्घटना की जानकारी
जानकारी के मुताबिक पोस्ट ऑफिस से 38 स्पीड पोस्ट बोरे में भरकर सुकमा से दुर्ग जाने वाली पायल बस से भेजे गए थे. अगले दिन सुबह धमतरी के पास बस दुर्घटना की शिकार हो गई थी. जिसकी विभाग को जानकारी ही नहीं थी.
विभाग से उम्मीद टूटने के बाद खुद ही खोज निकाला
शिक्षक अपने स्तर पर पोस्ट ऑफिस से पार्सल और बैग नंबर लेकर खुद ही ट्रैक करना शुरू कर दिए. जिसपर उन्हें जानकारी मिली कि जिस बस से स्पीड पोस्ट रायपुर भेजा गया था, 30 जुलाई की सुबह धमतरी के पास वो बस हादसे का शिकार हो गई थी. इसके बाद उन्होंने दुर्ग बस डिपो से हादसे की शिकार हुई बस के बारे में जानकारी जुटाई. 21 अगस्त को जानकारी मिली कि बस डिपो में ही खड़ी है. उसकी डिक्की में बैग भी रखा हुआ है. शिक्षक के दोस्तों ने बैग बस से निकाला और दुर्ग से सुकमा आने वाली बस से भेज दिया.
रौब झाड़ने लगे अधिकारी
प्रफुल्ल डेनियल अपने साथी शिक्षक संतोष के साथ 5 बोरे लेकर जिला मुख्यालय स्थित पोस्ट ऑफिस पहुंचे. डाक से भरे बोरे उन्होंने डाक निरीक्षक परमेश्वर कुर्रे को सौंप दिया. निरीक्षक ने पहले उन्हें पार्सल देने से इनकार करते हुए इसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कही. बाद में शिक्षक के दबाव पर उनसे आवेदन और दस रुपये का शुल्क लेकर पार्सल लौटा दिया.