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सरकार वादा करके भूल गई, 3 साल से शहीद बेटे की अस्थियां लेकर भटक रही मां

नक्सली हमले में अपने लाल को खोने के बाद 3 साल से थैले में उसकी अस्थियां संभाले सांवली बाई सिस्टम का हर सितम सह रही हैं. सांवली बाई शहीद हेमंत महिलकर की मां हैं, जो 3 साल पहले एक नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. सरकार ने उनसे स्मारक बनाने का वादा किया था लेकिन अब तक वो सिर्फ इंतजार ही कर रही हैं.

सिस्टम का सितम
सिस्टम का सितम

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Published : Feb 27, 2020, 4:04 PM IST

Updated : Feb 27, 2020, 5:01 PM IST

राजनांदगांव:बीते 3 साल से राजनांदगांव की बुजुर्ग सांवली बाई अपने शहीद बेटे हेमंत महिलकर को सम्मान दिलाने के लिए सरकार और सिस्टम से मांग कर रही हैं. लेकिन इस बूढ़ी मां की पुकार कोई नहीं सुन रहा. 3 साल पहले बीजापुर नक्सली हमले में हेमंत महिलकर शहीद हो गए थे. घटना 3 मार्च 2017 की है. जब चेटली चितौडीपारा इलाके में सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था. जहां निर्माण कार्य में लगे लोगों को सुरक्षा देने फोर्स की टीम निकली जिसमें हेमंत भी शामिल था. इस दौरान जंगल में घात लगाकर नक्सलियों ने जवानों पर हमला कर दिया. इस मुठभेड़ में हेमंत महिलकर शहीद हो गए.

शहीद बेटे के लिए सम्मान की लड़ाई लड़ रही बूढ़ी मां

इस घटना के बाद सरकार के नुमाइंदों ने वादा किया था कि शहीद हेमंत के नाम पर एक स्मारक बनाया जाएगा और स्कूल का नाम भी हेमंत के नाम पर रखा जाएगा. लेकिन आज तक न तो उस वादे की याद नेताओं को आई और न ही सिस्टम ने कभी इनकी सुध ली.

बेटे की अस्थियां लिए बैठी मां

संभाल कर रखी हैं शहीद की अस्थियां

डोंगरगांव ब्लॉक के ग्राम पंचायत सोनेसरार निवासी सांवली बाई ने सरकार के वादे पर ऐतबार कर अपने शहीद बेटे हेमंत महिलकर की अस्थियों को एक गठरी में संजोकर रखा है. वो चाहती हैं कि स्मारक बन जाए तो वे अपने शहीद बेटे की अस्थियां वहां रख दें. आज तीन साल बाद भी उस मां का इंतजार खत्म नहीं हुआ. बीते 36 महीने में सरकार और सिस्टम के पास 36 मिनट भी शहीद के परिवारवालों की बात सुनने के लिए नहीं है. बोलते-बोलते इस मां का गला रुंध जाता है और आंखें डबडबा जाती हैं. लेकिन सरकार और सिस्टम पर कोई फर्क नहीं पड़ता

शहीद की यादें

स्कूल का हो नामकरण बने स्मारक
अपने लाल को देश पर न्योछावर करने वाली इस बूढ़ी मां का सिर्फ एक ही सपना है कि उसके शहीद बेटे के नाम पर सोनेसरार गांव को नई पहचान मिल जाए. जिसके लिए वह दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं. और गठरी में अपने बेटे की अस्थियां को संभाल कर रखा है. शासन- प्रशासन के नियमों के मुताबिक जिस गांव का जवान शहीद होता है, उस गांव के स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखा जाता है. साथ ही गांव में शहीद का एक स्मारक भी बनाया जाता है. तीन साल से यह मां इंतजार कर रही है कि उसके शहीद बेटे के नाम पर स्मारक बने ताकि वह उसकी अस्थियां उस स्मारक में डाल सके. वह हर दिन इस आस में गुजारती है कि उसके शहीद बेटे के सम्मान में स्मारक बनने का काम शुरू होगा. बीतते वक्त के साथ अब इस बूढ़ी मां का सब्र टूटता जा रहा है.

शहीद की यादें
Last Updated : Feb 27, 2020, 5:01 PM IST

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