राजनांदगांव: डोंगरगांव ब्लॉक मुख्यालय छुरिया से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम गेरूघाट का आदिवासी बाहुल्य टोला किड़काड़ीटोला आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है. देश की आजादी के 73 सालों के बाद भी मूलभूत सुविधाएं गांव से कोसों दूर हैं. ग्राम गेरूघाट और ग्राम झाड़ीखैरी के पगडंडी मार्ग के बीच बसे आदिवासी बाहुल्य टोला किड़काड़ीटोला के कुल 26 घरों में 22 गोंड़ आदिवासी परिवार, 3 यादव अन्य पिछड़ावर्ग परिवार और 1 महार अनुसूचित जाति परिवार के लोग निवास करते हैं.
गेरूघाट ग्राम पंचायत में मात्र 1 वार्ड और लगभग ढाई सौ की आबादी है. महज ढाई सौ की आबादी वाला यह गांव आज भी विकास की आस में बैठे हुए हैं. किड़काड़ीटोला में समस्याओं का अंबार है. स्थिति ऐसी है कि गांव में सड़क, पुल, बिजली सहित कई तरह की कमी है. इन अभावों की वजह से शिक्षा सहित कई क्षेत्रों पर असर पड़ता है.
सड़क मार्ग का अभाव
आदिवासी किसान और फूटकर सब्जी व्यासायी रहिपाल कोमरे ने कहा कि शासन की मूलभूत सुविधाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए सड़क मार्ग पहला साधन होता है, लेकिन हम सड़क सुविधा से पूरी तरह से वंचित हैं. उन्होंने बताया कि मुख्य ग्राम गेरूघाट से 2 किलोमीटर कच्चे सड़क मार्ग निर्माण किया गया है, जो कि नाला के आते-आते समाप्त हो जाता है. गिट्टी सड़क मार्ग भी मुरमीकरण के अभाव में पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है. बीच-बीच में खतरनाक गड्ढे हो गए हैं, जिस पर चलना बहुत कठिन है. नाला के बाद 1 किलोमीटर तो पगडंडी के सहारे ही गांव तक का सफर करना पड़ता है. किड़काड़ीटोला, गेरूघाट और झाड़ीखैरी के बीच स्थित है. यहां आने-जाने के लिए न तो गेरूघाट के तरफ से, न ही झाड़ीखैरी तरफ से सड़क मार्ग की सुविधा है. गर्मी के दिनों में जैसे-तैसे आवागमन हो जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में कीचड़ से लथपथ इस मार्ग से पैदल चलना भी दूभर हो जाता है. गेरूघाट और झाड़ीखैरी से किड़काड़ीटोला के लिए सड़क मार्ग निर्माण की अति आवश्यकता है.
पुल विहीन नाला विकास में बना रोड़ा
किड़काड़ीटोला के एकलौता वार्ड पंच भुवन लाल मंडावी के मुताबिक गेरूघाट से किड़काड़ीटोला के बीच में नाला पड़ता है, जिसपर पुल का निर्माण नहीं होने से किड़काड़ीटोला मुख्य ग्राम गेरूघाट से पूरी तरह से कटा हुआ है. बरसात के दिनों में चार महीने तक नाले में पानी भरे रहने से आवागमन पूरी तरह से बाधित रहता है. इस मार्ग से आवागमन करने वाले राहगीरों के सायकिल और मोटरसाइकिल को उठाकर नाला पार करना पड़ता है. सायकिल को तो राहगीर आसानी से कंधों पर उठाकर नाला पार कर लेता है, लेकिन मोटरसाइकिल को नाला पार कराने के लिए चार-पांच लोगों की जरूरत पड़ती है. जो कि नाला के पास हमेशा मौजूद नहीं रहते. स्कूली बच्चों को प्राथमिक से हाईस्कूल तक के शिक्षा के लिए इसी नाला मार्ग से गेरूघाट जाना पड़ता है, लेकिन बरसात के दिनों में स्कूल जाना बंद करना पड़ता है. गेरूघाट मुख्य ग्राम के साथ पंचायत मुख्यालय भी है. लोगों को राशन सहित पंचायत संबंधित कार्यों से गेरूघाट जाने के लिए झाड़ीखैरी, नांदियाखुर्द और आमगांव के सड़क मार्ग से जाना पड़ता है, जो 9 किलोमीटर वनमार्ग है. इस तरह से गेरूघाट नाला पर पुल नहीं बनने से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी को 9 किलोमीटर चलकर पूरा करना पड़ता है.
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बच्चों के लिए नहीं है आंगनबाड़ी केन्द्र
गांव के लोक कलाकार बेदराम मंडावी के अनुसार शिक्षा व्यवस्था के नाम पर यह आदिवासी बाहुल्य वनांचल किड़काड़ीटोला के लोग बदनसीबी है. शिक्षा सुविधा के नाम पर प्राथमिक-माध्यमिक शाला की बात तो दूर यहां के नौनिहाल आंगनबाड़ी केन्द्र के दरवाजा भी नहीं देख पाते. यहां के नौनिहाल आंगनबाड़ी केन्द्र की शिक्षा लिए बिना सीधा प्राथमिक शाला में प्रवेश लेते है. इस कारण बच्चों की शैक्षणिक स्तर कमजोर रहता है. आंगनबाड़ी केन्द्र के अभाव में यहां के बच्चों, लड़कियों और गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार से वंचित होना पड़ता है.
सड़कों पर रहता है अंधेरा