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संकष्टी चतुर्थी व्रत : अश्वनी नक्षत्र ब्रह्म योग में होगी विनायक की पूजा, जानिये पूजन विधि... - sankashti chaturthi in ashwani nakshatra brahma yoga

विनायक चतुर्थी संत चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी का पावन पर्व रविवार 6 मार्च को मनाया जाएगा. ऐसे करें पूजा विधि....

संकष्टी चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी

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Published : Mar 5, 2022, 5:16 PM IST

रायपुर: विनायक चतुर्थी संत चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी का पावन पर्व रविवार 6 मार्च को मनाया जाएगा. अश्वनी नक्षत्र ब्रह्म योग और विशकुंभ करण के प्रभाव में मेष राशि के चंद्रमा में पड़ रहा है. मेष राशि के स्वामी मंगल माने गए हैं. मेष राशि एक अग्नि प्रधान राशि हैं. विनायक चतुर्थी गणेश की साधना उपासना का महत्वपूर्ण पर्व है. गणेश भगवान प्रथम पूज्य माने गए हैं. गणेश जी बुद्धि सुमति ज्ञान और वाणी के देवता माने गए हैं. गणेश भक्तों को सद्बुद्धि चेतना मेधावान बनाते हैं.

संकष्टी चतुर्थी का व्रत ऐसे मनाये

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आज के दिन पढ़ने वाले विद्यार्थियों को विशेष रूप से गणेश जी की पूजा अर्चना और आरती करनी चाहिए. सामान्य जन फलाहार एकासना के साथ उपवास करें. प्रातकाल बेला में स्नान आदि से निवृत होकर लाल कपड़े में गणेश जी को सम्मान पूर्वक आसन में बैठाकर आचमन कर शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए. अष्ट चंदन, रक्त चंदन, गोपी चंदन, मलयाचल चंदन और अबीर गुलाल सिंदूर बंधन से गणेश का अभिषेक करना चाहिए. गणेश को दूर्वा की माला बहुत प्रिय है. दुर्वा से गणेश जी का अभिषेक करना चाहिए.

विभिन्न ऋतु फल मोदक के लड्डू, मगज का लड्डू, बेसन के लड्डू आदि का भोग भगवान गणेश को लगाया जाता है. आज के शुभ दिन गणेश का श्रृंगार करते समय केले के पत्ते से लंबोदर महाराज को सजाना चाहिए. लंबोदर महाराज को केले के पत्ते में ही आसन देने का विधान है. इसके अतिरिक्त जनेऊ, पुष्पों की माला, घास की माला, चंदन की माला, भगवान विघ्नहर्ता को चढ़ाए जाते हैं. यह व्रत करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं. इस व्रत का पालन करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं. बुद्धि चेतना का विकास होता है. व्यक्ति मेधावी बनता है और पुरुषार्थ की ओर प्रेरित होता है.

इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और ज्वालामुखी योग का निर्माण हो रहा है. यह चतुर्थी संत चतुर्थी भी कहलाती है. आज के शुभ दिन बुध ग्रह का कुंभ राशि में आगमन हो रहा है. यह चतुर्थी संतान की कामना पूर्ण करती हैं. किसी भी नवीन कार्य को गतिशीलता प्रदान करने के लिए आज का व्रत करना शुभ होता है. आज के दिन गणेश सहस्त्रनाम, शिव सहस्त्रनाम, गणेश चालीसा, अथर्व शीर्ष और गणेश की आरती श्रद्धा और भक्ति से गाई जाती है.

आज के दिन गणेश जी की आरती का गायन करते समय मन को प्रसन्न चित्त एवं हर्षित रखना चाहिए. कलुषित विचारों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए. पूरी सकारात्मकता और उत्साह के साथ इस व्रत का पालन किया जाता है. रात को चंद्र दर्शन के बाद ही इस व्रत को तोड़ने का विधान है. दूध, ऋतु, फल और मोहनभोग आदि के द्वारा भी गणेश को भोग लगाया जाता है. आज के दिन घर में बनने वाली प्रथम थाली भगवान गणेश जी को प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है.

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