रायपुर: छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव ने इस पद से इस्तीफा देकर प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है. सिंहदेव के इस्तीफे को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं भी तेज हो गई है. राजनीति के जानकार इस घटनाक्रम को प्रशासनिक नाराजगी से ज्यादा राजनीतिक संदेश देने वाला मानते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक कृष्णा दास इस्तीफे के प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक मायने:प्रदेश की राजनीति में 16 जुलाई को तब भूचाल सा मच गया. जब प्रदेश के कद्दावर मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग से इस्तीफा दे दिया. चार पेज के अपने इस्तीफे में सिंहदेव ने अपनी पीड़ा को सार्वजनिक रूप से जाहिर किया. मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में उन्होंने विभागीय कार्यों में उपेक्षा सहित कई अड़चनों का जिक्र किया था. राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार कृष्णादास मानते हैं कि, सिंहदेव की ओर से उठाए गए कदम के प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक मायने निकल रहे हैं. साढ़े तीन साल में सिंहदेव अपने आपको पार्टी और सत्ता से उपेक्षित महसूस कर रहे थे. इस बात का जिक्र उन्होंने पार्टी के कई फोरम में किया. पार्टी हाईकमान के संज्ञान में भी उन्होंने इन बातों को रखा.
"सरकार बनने के बाद से मायूस थे सिंहदेव":कृष्णादास का कहना है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में टीएस सिंहदेव घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे. उन्होंने पार्टी के घोषणा पत्र में किसानों से जुड़ी कई बिंदुओं को शामिल किया था. जिसका फायदा कांग्रेस पार्टी को चुनाव में हुआ. उनकी इस रणनीति की वजह से 15 साल की बीजेपी सरकार ताश के पत्ते की तरह ढह गई. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सिंहदेव को उम्मीद थी कि पार्टी में उनका कद बरकरार रहेगा. लेकिन पिछले साढ़े तीन सालों में उन पर व्यक्तिगत प्रहार किए गए. यह भी प्रयास किया गया कि उनका कद हर जगह छोटा किया जाए. इन सभी घटनाक्रमों से वे काफी आहत थे.
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इन घटनाक्रमों ने सिंहदेव को किया नाराज:वरिष्ठ पत्रकार कृष्णादास आगे कहते हैं कि सिंहदेव के ही गृह नगर इलाके सरगुजा क्षेत्र के कांग्रेसी विधायकों ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कई अलग अलग विषयों को लेकर सिंहदेव को घेरने की कोशिश होती रही. एक कांग्रेसी विधायक बृहस्पति सिंह ने तो हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा डाला. जिसके बाद सिंहदेव ने नाराजगी व्यक्त करते हुए सदन की कार्यवाही से अपने आप को अलग रखा. विधायक द्वारा खेद प्रकट करने के बाद ही वे सदन की कार्यवाही में शामिल हुए. इन सब घटनाक्रमों ने सिंहदेव को अंदर से झकझोर दिया. ये बातें उनके लिए और ज्यादा मायने रखती हैं. जिनकी खुद की पारिवारिक पृष्ठभूमि राज परिवार और ब्यूरोक्रेटिक फैमिली से हो. कृष्णादास कहते हैं टीएस सिंहदेव लंबे समय से जिन बातों को लेकर वेदना सह रहे थे मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र उसका ही अंतिम परिणाम है.
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सिंहदेव को इन बातों की थी पीड़ा
- प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद टीएस सिंहदेव को उम्मीद थी कि पार्टी आलाकमान प्रदेश की बागडोर उन्हें सौंप सकती है.
- आलाकमान ने आम सहमति बनाकर भूपेश बघेल को बनाया प्रदेश का मुख्यमंत्री.
- भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिंहदेव को उम्मीद थी कि पार्टी ढाई ढाई साल के फॉर्मूले को लागू कर प्रदेश का नेतृत्व उन्हें सौंप सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
- कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों ने ढाई ढाई साल के फॉर्मूले को किया रिजेक्ट. हाईकमान को बघेल के पक्ष में सौंपा पत्र.
- कांग्रेस के विधायक बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव पर अपनी हत्या करवाने की साजिश रचने का आरोप लगाया था. जिससे सिंहदेव काफी नाराज थे.
- टीएस सिंहदेव के पास पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की भी जिम्मेदारी है. लेकिन इन विभागों के कार्यों में मंत्री के निर्देशों का पालन न होने से सिंहदेव रूष्ट थे.