रायपुरः हिंदू धर्म में विवाह को 16 संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि विवाह सिर्फ दो लोगों का नहीं बल्कि दो परिवारों के बीच होता है. ऐसे में विवाह के दौरान कई बातों का ध्यान रखा जाता है कि कहीं कुछ गलत या अपशगुन ना हो जाए. विवाह के दौरान पूजा के समय हल्दी, कुमकुम, फूल माला, नारियल, लोटा, पान, कसेली जैसे आदि चीजों का इस्तेमाल काफी होता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ विवाह में झाड़ू का भी इस्तेमाल किया जाता है. आमतौर पर झाड़ू का इस्तेमाल पंडित विवाह में नहीं करते. लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के मारवाड़ इलाके के विवाह में केरसुणी झाड़ू का विशेष महत्व होता है.
विदाई के समय कन्या को दिया जाता है केरसुणी झाड़ू
ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान ज्योतिष पंडित विनीत शर्मा बताते हैं कि विवाह का जो संस्कार(Wedding special 2021) है. वह 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है. केरसुनी झाड़ू एकमात्र झाड़ू है, जिसे विवाह में कन्या को दिया जाता है. झाड़ू, छलनी, सुई, बरनी यह सारी चीजें शादी के दौरान दुल्हन को विदाई के समय नहीं दी जाती है. लेकिन इकलौता केरसुनी झाड़ू ऐसा है, जिसे विदाई के समय कन्या को दिया जाता (Mother Lakshmi resides in the kerasuni broom)है.
Wedding special 2021: बेटी के ब्याह के बाद विदाई के वक्त इन खास बातों का रखें विशेष ध्यान
महाराष्ट्रीयन शादी में इसका उपयोग किया जाता है.
दरअसल, केरसुणी झाड़ू को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है. ज्यादातर महाराष्ट्रीयन शादी में इसका उपयोग करते हैं. इसके अलावा गुजरात और राजस्थान के मारवाड़ इलाके में इसका इस्तेमाल किया जाता है. शादी के समय जब खलबत्ता और लोहा का प्रयोग कर हल्दी को पीसा जाता है. उसके पूर्व पूजन में केरसुणी झाड़ू को माता लक्ष्मी के पास रख कर इस की पूजा की जाती है. इसके बाद जब विवाह के समय में दूल्हा बारात लेकर कन्या के यहां प्रवेश करता है और शिवजी की पूजा होती है. उस समय केरसुणी झाड़ू का प्रयोग होता है. इसके उपरांत जब माता लक्ष्मी की पूजा होती है तो माता लक्ष्मी के साथ नए केरसुणी झाड़ू को प्रतीकात्मक रूप में रखा जाता है. इसके बाद जो विदाई का क्रम होता है, उसमें अनेक जगह पर अनेक मान्यताओं के अनुसार केरसुणी झाड़ू कन्या को दिया जाता है कि जिस घर वह जा रही हैं वहां पर केरसुणी झाड़ू को स्थापित करे. इससे घर में समृद्धि, ऐश्वर्य, धन, संपन्नता आए.
माता लक्ष्मी से साथ पूजा जाता है ये झाड़ू
जब भी के केरसुणी झाड़ू का पूजन किया जाता है, इसे लक्ष्मी माता के पास में रखा जाता है. खासकर दिवाली के दिन झाड़ू को नया खरीद कर इसकी पूजा की जाती है. कुमकुम, सिंदूर,हल्दी आदि से झाड़ू का अभिषेक किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि रात्रि में इसका उपयोग नहीं किया जाता. दिन के समय इससे सफाई की जाती है. यह परंपरा काफी पुरानी है. यह सनातन परंपरा है यह काफी पहले से चलती आ रही है. रूप चौदस, दिवाली के पर्व में इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. जब लक्ष्मी माता की पूजा की जाती है. इसके साथ-साथ अनेक जगहों पर जब अगहन की पूजा होती है. तो उस समय भी झाड़ू को माता लक्ष्मी के समक्ष में रखा जाता है, इसे कुमकुम, हल्दी, चंदन, परिमल, सिंदूर डालकर के पूजन किया जाता है. क्योंकि इसे लक्ष्मी माता का अवतार माना जाता है. यह विवाह का प्रतीक है और इसमें मान्यता है कि जो आने वाली वधू है. वह घर में लक्ष्मी को लेकर आएगी.