रायपुर : प्रदेश में छोटे-बड़े मिलाकर हजारों उद्योग स्थापित हैं. इसमें काम करने वाले लाखों श्रमिक किसी न किसी हादसे की वजह से काल के गाल में समां जाते हैं, वाबजूद इसके सिस्टम की नींद है कि टूटने का नाम नहीं ले रही है. हर दिन यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. इसके बावजूद अब तक किसी भी बड़े उद्योग या उसके प्रबंधन के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई . उद्योगों में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जा रही है.
बालको चिमनी हादसे से लेकर अभनपुर नवभारत एक्सप्लोजिव्स विस्फोट, बलौदाबाजार अंबुजा सीमेंट फैक्ट्री विस्फोट, भिलाई स्टील प्लांट में गैस रिसाव में कई मजदूरों की जान गई. यह हादसे औद्योगिक सुरक्षा से लेकर श्रम कानूनों के पालन तक की हकीकत बयां करती है. लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं.
बिना आईएसआई मार्क के हेलमेट
न जाने ऐसी कितने औद्योगिक हादसे हैं, जिसमें सैकड़ों श्रमिकों को जान से हाथ धोने के साथ ही अंपंग होने तक का दंश झेलना पड़ा है. मजदूर संगठन से जुड़े सदस्य राज का कहना है कि कई फैक्ट्रियों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, यहां तक कि जो हेलमेट श्रमिकों को सुरक्षा के लिए दिए जाते हैं, वह भी बिना आईएसआई मार्क के होते हैं. औद्योगिक हादसों में श्रमिक घायल हो रहे हैं, उनकी मौत हो रही है. बावजूद इसके उद्योग प्रबंधन के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इसकी प्रमुख वजह श्रमिकों का एकजुट न होना बताया.
मुआवजा देकर मामला रफा-दफा
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुष्दकर का कहना है कि उद्योगों में होने वाले हादसों के बाद केस रफा-दफा होने की सूरत में मामला बिगड़ जाता है. इसके लिए रेलवे की तरह ही श्रम विभाग की भी अलग के पुलिस यूनिट होनी चाहिए, जो घटना होने की सूरत में मौके पर जाकर जांच पड़ताल करे. कानूनी प्रक्रिया को अपनाते हुए हादसों वाले उद्योग के खिलाफ कार्रवाई हो. पुष्दकर ने कहा कि घटनाओं के बाद श्रमिकों और उनके परिजन को मुआवजा देकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है, ऐसे में उन्हें न्याय नहीं मिलता है.