रायपुर : भारत सरकार ने सन 1973 में दुर्लभ प्रजातियों के शेरों को बचाने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी. छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक वनों में बाघों की प्रजातियां पहले से ही मौजूद थी. जरूरत थी तो बस उन्हें उन्हीं के प्राकृतिक परिवेश में रखने एवं उचित संरक्षण प्रदान करने की. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 4 टाइगर रिजर्व हैं. जहां पर बाघ संरक्षित हैं.
सीतानदी-उदंती टाइगर रिजर्व :सीतानदी-उदंती टाइगर (Sitanadi Udanti Tiger Reserve) रिजर्व वर्ष 2008-09 में अस्तित्व में आया. जिसमें दो अलग-अलग रिजर्व (उदंती और सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य) को एक साथ मिलाया गया. यह छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में है. उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व का नाम उदंती अभ्यारण एवं सीतानदी अभ्यारण में प्रवाहित होने वाली नदी उदंती एवं सीतानदी के नाम पर रखा गया है. उदंती-सीतानदी बाघ संरक्षित क्षेत्र छत्तीसगढ़ में बाघों के लिए संरक्षित आवास क्षेत्र है. उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में मुख्यत: साल,मिश्रित वन एवं पहाड़ी क्षेत्रों पर बांस वन है. इसके अलावा कुछ क्षेत्रों पर सागौन के प्राकृतिक वन हैं,जिसमें मुख्यत: बीजा, शीशम, तिन्सा, साज, खम्हार, हल्दू, मुड़ी, कुल्लू, कर्रा, सेन्हा, अमलतास की प्रजाति पायी जाती हैं.
अचानकमार टाइगर रिजर्व :अचानकमार टाइगर रिजर्व सतपुड़ा के 552 वर्ग किमी के क्षेत्र में बसा है. मैकाल पर्वत श्रेणियों के विशाल पहाडि़यों के बीच बांस, सागौन और अन्य वनस्पतियां यहां मनमोहक दृश्य पैदा करती हैं. इस अभ्यारण्य की स्थापना 1975 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 के तहत की गई. इसके बाद 2007 में इसे बायोस्फीयर घोषित किया गया. 2009 में इसे टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित किया गया. इस अभ्यारण्य में वैसे तो कई प्रकार के जीव-जन्तु पाए जाते हैं, लेकिन यहां बाघों की संख्या सर्वाधिक है. यहां तेंदुआ, बंगाल टाइगर और जंगली भैंसों जैसे असंख्य लुप्तप्राय प्रजातियां रहती हैं. अन्य जानवरों में चीतल, धारीदार लकड़बग्घा, कैनीस, आलस भालू, ढोले, सांभर हिरण, नील गाय, भारतीय चार सींग वाले मृग और चिंकारा भी शामिल हैं. पूरे जंगल में साल, साजा, बीजा और बांस के पेड़ भारी संख्या में पाये जाते हैं.