रायपुर:कोरोना संक्रमण का असर शिक्षा पर पड़ा है. छात्रों की पढ़ाई और परीक्षाएं दोनों प्रभावित रहीं. हाल ही में छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल (chhattisgarh board of secondary education) ने 12वीं बोर्ड की परीक्षा 'एग्जाम फ्रॉम होम' (exam from home) के पैर्टन पर लिया है. जिसमें छात्रों को घर बैठे परीक्षा देने का मौका मिला. हालांकि एग्जाम फॉर्म होम पैटर्न को लेकर छात्रों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा. ETV भारत ने परीक्षा के आयोजन को लेकर छात्रों और शिक्षाविदों से बातचीत की.
परीक्षा केंद्र में आंसर शीट जमा करती हुईं छात्राएं 'सेंटर की जगह घर पर परीक्षा देना कठिन'
12 वीं कामर्स संकाय की छात्रा राखी यादव ने बताया कि 'एग्जाम फ्रॉम होम' पैटर्न में परीक्षा देने में थोड़ी परेशानी हुई. उन्होंने बताया कि पहली बार ऐसा हुआ कि घर पर कॉपी ले जाने को मिली. जबकि पहले सेंटर में ही परीक्षा ली जाती थी. राखी ने बताया कि एग्जाम सेंटर की तुलना में घर पर परीक्षा देना कठिन है. इस दौरान प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में काफी समय लगा. उन्होंने कहा कि अच्छे से एग्जाम हॉल में बैठकर परीक्षा देते तो उसका ज्यादा फायदा मिलता.
'एग्जाम फ्रॉम होम पैटर्न का भरपूर फायदा उठाया'
आर्ट्स संकाय की छात्रा शिफा तबस्सुम ने बताया कि इस साल जो 12वीं की परीक्षा हुई है. इसका सभी लोगों ने इसका फायदा भरपूर उठाया है. घर पर ही सभी ने परीक्षा दी. तबस्सुम ने बताया कि यदि परीक्षा स्कूल में आयोजित की जाती तो अच्छा रहता. यह पता चलता कि हमने कितनी मेहनत की है. हमारा प्रतिशत पता चलता. उन्होंने बताया कि आगे कॉलेज में चलकर हमें बहुत परेशानी आएगी. जिसको हमने पढ़ा नहीं है और आगे हम से पढ़ेंगे तो दिक्कत तो आनी ही है.
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'इस पैटर्न से टॉपर छात्रों का नुकसान'
बायोलॉजी संकाय की छात्रा खुशबू साहू ने बताया कि परीक्षा आसानी से हो गई. बहुत से प्रश्न मिल जाते थे और जो प्रश्न नहीं मिल रहे थे उसे आपस में डिस्कशन कर दोस्तों के साथ ढूंढते थे. खुशबू ने बताया कि इस तरह की परीक्षा में कोई फायदा नहीं है. जो बच्चे अच्छे से पढ़ने वाले हैं, टॉपर हैं उन्हें भी ज्यादा नुकसान हैं. कोरोना संक्रमण के चलते स्थिति बनी है ऐसे में हमें बेसिक चीजों की जानकारी भी नहीं हो पाई है. आगे चलकर हमें दिक्कतें होंगी.
'परीक्षा रोक दी जाती तो अच्छा होता'
एक छात्रा ने बताया कि एग्जाम हॉल में हम जो परीक्षा देते हैं. हमें जो चीजें याद रहती है. उसे हम लिखते हैं, लेकिन एग्जाम फ्रॉम होम पैटर्न में पूरा प्रश्न पत्र ही हल कर दिया. जो नहीं बना वो दोस्तों और इंटरनेट की मदद से हल किया. हालांकि इसमें थोड़ी परेशानी हुई. रात 2 बजे तक हम आंसर लिखते थे. छात्राओं का कहना है कि यह पैटर्न बेहद गलत है. इससे हमारा ही नुकसान हो रहा है. बहुत से परिजन हैं जो खुश हो रहे हैं कि उनके बच्चे 90% से ज्यादा प्रतिशत ला रहे हैं, लेकिन इससे हमारा ही नुकसान हो रहा है. आगे चलकर हमारे फ्यूचर का नुकसान होगा. यदि परीक्षा रोक दी जाती तो अच्छा होता.
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'परीक्षा आयोजन का कदम सराहनीय'
राजधानी स्थित जे दानी गर्ल्स स्कूल के प्राचार्य विजय खंडेलवाल ने बताया कि अभी समय सामान्य नहीं है. परिस्थितियां ऐसे बन गई हैं कि स्कूल-कॉलेज नहीं खुल सकते हैं. पिछले साल से ही ऑनलाइन क्लास चली है. ऑनलाइन क्लासेस उन्हीं बच्चों ने अटेंड की है जिनके पास मोबाइल है. जो बच्चे गरीब परिवार से हैं वे ऑनलाइन क्लासेस अटेंड नहीं कर पाए, लेकिन वे भी शिक्षकों से संपर्क कर अपनी परेशानियों को हल कर लेते थे. उन्होंने कहा कि इस कोरोना संक्रमण के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार ने बच्चों की परीक्षाएं आयोजित कराईं. पेपर पूर्व में ही छप चुके थे तो बच्चों को घर ले जाने के लिए दिया गया. इसी बहाने बच्चों ने घरों में पुस्तकें खोली हैं. उनके प्रश्न ढूंढे हैं और लिखे हैं. निश्चित रूप से बच्चों ने 5 दिन मेहनत तो की है. खंडेलवाल ने परीक्षा आयोजन को लेकर सरकार के कदम को अच्छा बताया है.
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'परीक्षा की जगह कुछ और करना बेहतर था'
कोरोना काल में परीक्षा के आयोजन को लेकर शिक्षाविद नागेंद्र दुबे ने कहा कि, जिस तरह से कोरोना काल में पढ़ाई हुई और परीक्षा ली गई. यह अच्छा नहीं है. भविष्य को लेकर भी यह ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि परीक्षा कैंसिल हो जाना या परीक्षा अनिवार्य हो जाना यह दोनों बातें शिक्षा के लिए उचित नहीं है. कोई छात्र जो घर में बैठा है उसे आप घर में ही उत्तर पुस्तिका और प्रश्न पत्र दे देते हैं. इस अधार पर उसे प्रतिशत दे दिया जाए तो यह छात्र हित में नहीं है. इस तरह से परीक्षा देना और आगे के भविष्य को लेकर छात्रों में गंभीरता खत्म हो जाती है. दुबे ने कहा कि कोरोना काल में शिक्षा व्यवस्था में सुधारने के लिए सरकार को अच्छा मौका मिला था. इससे बच्चों को कुछ नया सीखने का अवसर दिया जाए, जिससे बच्चे कुछ सीख सकें. इससे राज्य सरकारें वंचित हो गई. उन्होंने कहा कि शिक्षा का मतलब होता है कुछ नया सीखना, किताबें हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. वह अनुभव से लिखी जाती है. किताबों के अलावा बाहर से चीजें सीखी जाती है. इसको कोविड काल में एक अच्छा अवसर था, जिससे बच्चों को सामाजिक रूप से, पारिवारिक रूप से जोड़ा जा सकता था. इस महामारी के दौरान उन्हें एक्टिविटी परीक्षा के रूप में भी दी जा सकती थी.
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क्या है एग्जाम फ्रॉम होम पैटर्न ?
छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने जिस तरह दसवीं की परीक्षा आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर ली गई. उसी तरह से 12वीं की परीक्षा भी 'एग्जाम फ्रॉम होम' पैटर्न से ली गई. छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 12वीं बोर्ड परीक्षा 'एग्जाम फ्रॉम होम' (exam from home) के पैटर्न पर आयोजित किया. 1 जून से 5 जून तक प्रशासन के बनाए गए नजदीकी सेंटरों पर पहुंचकर प्रश्न पत्र और उत्तर पुस्तिका को लेकर घर पर ही रहकर हल करने की छूट दी गई. वहीं 6 जून से 10 जून तक आंसर शीट को जमा करने का समय दिया गया है. जिस तरह छात्रों ने परीक्षा दी है. ऐसे में उन्हें खुद पता है कि इस परीक्षा से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है. आगे चलकर उन्हें परेशानी होने वाली है. कोरोना ने जहां सभी चीजें प्रभावित की है ऐसे में अब छात्रों के भविष्य के सामने भी परेशानियां खड़ी दिखाई दे रही है. पढ़ाई और परीक्षा के क्षेत्र में सरकार को नई योजनाएं और नया पैटर्न शुरू करने की जरूरत है.