रायपुर:1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है. समाज और नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने और मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ नागरिकों के योगदान को सम्मान देने के लिए इस आयोजन का फैसला संयुक्त राष्ट्र ने 1990 में लिया था. आज के समय में परिवार छोटे होते जा रहे हैं, ऐसे में कई बच्चे ऐसे हैं, जो बड़े होने पर माता-पिता को बोझ समझने लगते हैं और उन्हें जीवन की संध्या में वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं.
अगर आप अपने ही शहर के वृद्धाश्रम में जाएं, तो आपको ऐसे बहुत सारे बुजुर्ग मिल जाएंगे, जिन्हें उनके बच्चों ने जीवन की सांझ में ओल्ड एज होम में अकेला छोड़ दिया है. आज ETV भारत ने कुछ ऐसी ही तस्वीरें अपने दर्शकों के सामने पेश करने की कोशिश की है, जहां वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों ने अपनी जिंदगी के कुछ अच्छे-बुरे किस्से साझा किए.
आज हर शहर में ऐसे वृद्ध आश्रम आपको जरूर मिल जाएंगे, जहां बुजुर्ग अपने बच्चों की बेरुखी का दंश झेलने को मजबूर हैं. लेकिन वो मां-बाप ही हैं, जो इतना होने पर भी अपने बच्चों के बारे में कभी बुरी बात नहीं कहते हैं. वृद्धाश्रम में रहकर भी अपने बच्चों के लिए दुआएं ही मांगते हैं.
वृद्धाश्रम में बुजुर्गों का रखा जाता है विशेष ख्याल
बुजुर्ग महिला आशा प्रचंडे ने बताया कि वह 3 महीने से वृद्ध आश्रम में रह रही हैं और यहां उन्हें किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होती है. उन्हें समय से खाना दिया जाता है. उन्हें समय से दवा दी जाती है. आश्रम में रहने वाले सभी लोगों के मेडिकल चेकअप के लिए डॉक्टर को भी समय-समय पर बुलाया जाता है. उन्होंने बताया कि वृद्धाश्रम में अलग-अलग कार्यक्रम ऑर्गनाइज किए जाते हैं, ताकि बुजुर्गों का मन लगा रहे.
'परिवार में कलह होने की वजह से आए वृद्धाश्रम'
ETV भारत ने बुजुर्गों से वृद्ध आश्रम आने की वजह पूछी, तो ज्यादातर ने बताया कि जब वह अपने बच्चे और बहू के साथ घर में रह रहे थे, तो रोजाना लड़ाई-झगड़े हुआ करते थे. परिवार में बच्चे ही उनके नाम से एक दूसरे को खरी-खोटी सुनाते थे, इसी वजह से ही उन्होंने वृद्धाश्रम जाने का फैसला लिया.