रायपुर :राजधानी का पुलिस परेड ग्राउंड देश की आजादी का साक्षी है. इस मैदान ने अंग्रेजों की गुलामी के दौरान ढलते सूरज और आजादी की पहली किरण को बड़े ही करीब से देखा है. इतिहासकारों की मानें तो इस ग्राउंड को अंग्रेजों के समय फौजी छावनी के नाम से जाना जाता था और यहीं क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी.
आजादी के आंदोलनों का साक्षी है मैदान बाद में फिरंगियों की सेना और वीर क्रांतिकारियों के बीच इस मैदान पर लगभग 6 घंटे तक जमकर संघर्ष हुआ, जिसके बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा दिया था. यही वजह है कि इस मैदान को 'क्रांति छावनी' के नाम से भी जाना जाता है.
ग्राउंड का इतिहास
इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया. 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया था, इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया था.
अंग्रेजों से बचने में सफल हुए हनुमान सिंह
इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच जमकर गोलीबारी हुई लेकिन बाद में क्रांतिकारियों के पास गोलियां खत्म हो गई. गोलियां खत्म होने के कारण हनुमान सिंह के 17 सिपाही पकड़े गए. इस बीच हनुमान सिंह किसी तरह बचकर निकल गए थे.
सूली पर चढ़ा दिए गए 17 सिपाही
वहीं आंदोलन करने वाले 17 सिपाहियों को 22 जनवरी 1858 को वर्तमान जेल के सामने फांसी पर लटका दिया गया. इसके साथ ही रविंद्रनाथ का कहना है कि इस मैदान का नाम बदलकर क्रांति मैदान रख देना चाहिए, ताकि राज्य के युवा इससे प्रेरणा ले सकें
'क्रांति मैदान रखा जाए ग्राउंड का नाम'
रविंद्रनाथ यह भी कहना है कि आजादी की क्रांति के स्मरण को बनाए रखने के लिए इस पुलिस परेड ग्राउंड का नामकरण 'क्रांति मैदान' के नाम पर किया जाना चाहिए, जिससे युवाओं को प्रेरणा मिल सके.
हंसते-हंसते सूली पर चढ़े ये क्रांतिकारी
इतिहासकारों की मानें तो मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह इस विद्रोह के नेता थे. उनके साथ 17 सैनिक जिन्हें फांसी दी गई थी उसमें गाजी खान ,अब्दुल हयात, मुल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मातादीन, बल्ली दुबे ,ठाकुर सिंह, अकबर हुसैन, लल्ला सिंह, बुद्धू, परमानंद, शोभाराम, नसर मोहम्मद, शिव गोविंद, देवादीन और दुर्गा प्रसाद के नाम शामिल थे.