रायपुर: पूरे विश्व में 18 जून को अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मनाया जाता है. इस दिन को तनाव भरी जीवन में शांति देने के लिए मनाया जाता है. लोगों में तनाव के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. किसी को काम का दबाव, आपसी रिश्तों की खटास या आर्थिक तंगी भी चिंता का कारण बन सकती है. कोरोना काल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन कारण चाहे जो भी हो, असर एक जैसा होता है. तनाव जितना ज्यादा रहेगा, उतना ही हमारे शरीर को कोर्टिसोल हार्मोन (cortisol hormone) से जूझना पड़ेगा. कुछ मामले में तनाव स्थायी हो जाता है और ये स्थिति बहुत बुरी होती है. इससे बचने के लिए अपनी प्राथमिकताओं का मूल्यांकन करें. इसके लिए समय निकालें. तनाव और चिंता का कारण बनने वाली किसी भी चीज को खत्म करने की कोशिश करें.
पिछले डेढ़ साल से पूरे देश में कोरोना ने हाहाकार मचा रखा है. लाखों लोग अब तक प्रदेश में कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं. हजारों लोगों ने जान गंवाई. कोरोना की वजह से बहुतों के कारोबार पर भी असर (effect of corona on business) पड़ा है. कई लोगों का तो व्यापार ही बंद हो चुका है. तो किसी को कारोबार में भारी नुकसान सहना पड़ा है. रोजाना कमाने खाने वाले लोगों पर कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर हुआ है. खासकर बस ड्राइवर (bus driver), कंडक्टर और दिहाड़ी मजदूरों पर अब भी इसका ज्यादा असर देखने को मिल रहा है.
स्ट्रेस का शिकार हुए बस ड्राइवर और कंडक्टर
पिछले डेढ़ साल से प्रदेश में गिनी-चुनी बस ही चल रही है. इस वजह से बस ड्राइवर और कंडक्टरो की हालत खराब हो चुकी है. इन्हें घर चलाना अब मुश्किल होता जा रहा है. इस वजह से ऐसे लोग डिप्रेशन और स्ट्रैस का शिकार हो रहे हैं. जिसके चलते लोग कई घातक कदम भी उठा रहे हैं. पिछले डेढ़ साल से बस नहीं चलने की वजह से 3 बस ड्राइवर ने खुदकुशी (suicide case) कर ली है. जिसमें से 1 रायपुर का ही रहने वाला था. एक बलौदाबाजार का और एक कवर्धा के रहने वाला था. अब तक करीब 10 बस ड्राइवरों ने रोजगार की चिंता की वजह से ऐसा कदम उठाया.
पिछले डेढ़ साल से खाली चल रही बस
कोरोना काल में बस ड्राइवर और कंडक्टर पिछले डेढ़ साल से खाली बैठे हैं. कोरोना की वजह से प्रदेश में किसी भी रूट पर बसों का संचालन नहीं हो रहा है. ऐसे में बस संचालकों की मुश्किलें बढ़ गई है. संचालकों का कहाना है कि 10-20 प्रतिशत यात्रियों के साथ ही बसों का संचालन किया जा रहा है. जिससे पेट्रोल-डीजल का भी खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा है. इस वजह से बस कंडक्टर और ड्राइवरों की रोजी-रोटी छिन चुकी है. आर्थिक स्थिति इनकी इतनी खराब हो चुकी है कि बच्चों के स्कूल में फीस और आम जरूरतों को भी पूरा करना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में परिवार चलाने में काफी मुश्किलें आ रही है.
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ड्राइवरों की मजबूरी
मौजूदा हालातों पर ETV भारत ने बस कर्मचारी संघ (bus workers union) के जिला अध्यक्ष रौशन गोस्वामी से बात की. उन्होंने बताया कि 21 मार्च 2020 से अब तक कोरोना काल का जो समय रहा है, वह बेहद दुखदाई है. इस दौरान बस संचालकों को सरकार की तरफ से किसी तरह कोई सहयोग नहीं मिला है. उनका कहना है कि लगातार तनाव में रहने के चलते उनकी मानसिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे परिवार के साथ आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं. संघ के सदस्य शासन प्रशासन से कई बार मदद के लिए गुहार भी लगा चुके हैं. लेकिन स्थिति अब भी जस की तस है.
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