रायपुर: छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान राज्य में पूरी राजनीति धान और किसान के इर्द-गिर्द ही घूमती है. एक बार फिर से केंद्रीय कृषि सुधार बिल को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने हो गए हैं. छत्तीसगढ़ सरकार केंद्रीय कृषि बिल की जगह प्रदेश के किसानों के लिए नया कानून लाने दिवाली से पहले विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने जा रही है. इस सत्र को लेकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि केंद्र सरकार पहले ही देश की सर्वोच्च सदन में इस बिल को पास कर चुकी है. ऐसे में प्रदेश सरकार की ओर से विधानसभा में जाकर नया बिल लाना कितना तर्कसंगत होगा, इसे लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की है.
कांग्रेस कृषि सुधार बिल का देश भर में विरोध कर रही है. छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार है इसलिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी और राज्य सरकार भी लगातार विरोध जता रहे हैं. बीते दिनों सड़क से लेकर राजभवन तक पैदल मार्च कर आपत्ति जताई गई. अब छत्तीसगढ़ में एक नया बिल लाने की तैयारी है. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी है. संसदीय मंत्री रविंद्र चौबे ने तो दावा कर दिया है कि दिवाली के पहले विशेष सत्र का आयोजन किया जाएगा.
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छत्तीसगढ़ की 2 योजना पर पड़ेगा प्रभाव
रविंद्र चौबे का तर्क है कि केंद्र के कानून आने के बाद पूंजीपति ही कृषि उपज के मूल्यों को कंट्रोल करेंगे. इस कानून के आने से छत्तीसगढ़ की दो महत्वपूर्ण योजनाएं प्रभावित होगी, जिनमें 2500 रुपए प्रति क्विंटल धान की खरीदी और राजीव गांधी किसान न्याय योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं. यही कारण है कि इस कानून को छत्तीसगढ़ सरकार लागू नहीं करने का तर्क दे रही है.
केंद्रीय राज्य मंत्री का दावा
छत्तीसगढ़ के संसदीय और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे भले ही केंद्र सरकार की ओर से लाए गए बिल के विरोध में प्रदेश सरकार की ओर से नया बिल लाने की वकालत कर रहे हों, लेकिन केंद्र सरकार के केंद्रीय राज्य मंत्री संजीव कुमार बालियान ने साफ तौर पर कहा है कि देश के सर्वोच्च सदन में पारित किए गए बिल को लेकर छत्तीसगढ़ राज्य का किसी कानून लाने प्रदेश सरकार को ऐसा कोई अधिकार नहीं है. कृषि उत्पाद का इंटरेस्ट मूवमेंट संविधान के सेंट्रल लिस्ट में है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं.