रायपुर : छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की (Parliamentary Advisor to CM Bhupesh Baghel Rajesh Tiwari) है. राजेश तिवारी एआईसीसी के राष्ट्रीय सचिव भी हैं. इस बातचीत के दौरान राजेश तिवारी ने देश और प्रदेश से जुड़े कई विषयों पर अपनी बातें (Special conversation with Rajesh Tiwari ) रखीं. तिवारी ने केन्द्र की सरकार द्वारा 28 जून 2022 को जारी किए गए अधिसूचना क्रमांक 459 को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति को पत्र भेजा है. उन्होंने इस मामले पर भी विस्तार से अपनी राय जाहिर की (Rajesh Tiwari in ETV Bharat Face to Face) है.
जंगलों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है केंद्र सरकार: राजेश तिवारी
ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी (Parliamentary Advisor to CM Bhupesh Baghel Rajesh Tiwari) से कई मुद्दों पर खास बातचीत की है. इस बातचीत में राजेश तिवारी ने केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल खड़े किए. उन्होंने राहुल और सोनिया गांधी के खिलाफ ईडी की पूछताछ और पेसा कानून को लेकर खुलकर (Special conversation with Rajesh Tiwari ) अपनी बातें रखी हैं.
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सवाल : पेसा कानून लागू होने से उन क्षेत्रों में क्या बड़ा बदलाव होगा, जहां पर यह कानून प्रभावी होगा ?
जवाब : जहां का मैं रहने वाला हूं. वह भी शेड्यूल्ड एरिया है. प्रदेश में 32% आबादी जनजाति वर्ग की है. अभी तक इन क्षेत्रों के लिए योजनाएं ऊपर से थोपी जाती थी. अब पेसा कानून के तहत हर समस्या का समाधान ग्राम सभा के माध्यम से वहां के लोग कर पाएंगे. अपने गांव के विकास के लिए भी, वे खुद ही निर्णय ले सकेंगे.
सवाल : केंद्र की सरकार ने जून में एक अधिसूचना जारी की है. क्या है उसमें ? क्या उसमें पेसा कानून के प्रावधानों को बाईपास किया गया है ?
जवाब : यह अधिसूचना केंद्र की सरकार ने 28 जून 2022 को जारी किया है. यह पेसा कानून के प्रावधानों को बाईपास करने के लिए ही बनाया गया है. वनों और वहां रहने वाले लोगों के संरक्षण के लिए, कांग्रेस की सरकार ने दो महत्वपूर्ण कानून बनाए. एक पेसा कानून और दूसरा वन अधिकार कानून इन कानून से वनवासियों को जंगल के संसाधनों के उपयोग का अधिकार दिया गया. लेकिन अभी केंद्र की बीजेपी सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है. उससे इन दोनों कानूनों के प्रावधानों को बाईपास किया गया है. इस कानून के तहत वनों में रहने वाले लोग भी अगर जंगल में जाएंगे, तो वे अपराधी माने जाएंगे. केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा जारी किए गए अधिसूचना में अब परामर्श दात्री समिति बनाई जाएगी. यही समिति तय करेगी कि वनभूमि को निजी संस्थाओं के अधिग्रहित करना है या नहीं. इसमें ग्राम सभा की सहमति की जरूरत नहीं पड़ेगी.
सवाल : द्रौपदी मुर्मू की जीत को लेकर बीजेपी जश्न मना रही है. आप केंद्र के नए कानून को आदिवासी विरोधी बता रहे हैं. क्या राजनीतिक दल इन्हें वोट बैंक मानकर इन्हें साधने के लिए अपनी पार्टी को आदिवासी हितैषी बताने का प्रयास करते हैं ?
जवाब : आदिवासी हितों के सभी कानून कांग्रेस ने बनाए हैं. उन्हें कांग्रेस की सरकार ने अधिकार दिया. उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. अब बीजेपी नेता कहते हैं, कि वे आदिवासियों के हितैषी हैं. मैंने वनवासियों की समस्याओं से जुड़े दस सवाल किए थे. जिनके लिए बीजेपी की सरकारें जिम्मेदार हैं. किसी भी बीजेपी नेता का जवाब नहीं आया. इसके बाद मैंने राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा है कि आप जाते-जाते केंद्र के नए कानून को निरस्त करें. वापस कर दें. क्योंकि शेड्यूल्ड एरिया के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति संरक्षक होते हैं. इनकी अनुमति के बिना कोई भी कानून उन इलाकों में लागू नहीं किया जा सकता. इसीलिए मैंने राष्ट्रपति जी से अनुरोध किया है.