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नवरात्र का प्रथम दिनः मां शैलपुत्री की पूजा में रखे इन विशेष बातों का ध्यान - Worship of Maa Shalaputri

नवरात्र के नौ दिन नौ (Nine days of navratri) माताओं को समर्पित है. पहले दिन यानी कि कलश स्थापना (Kalash sthaapan) के दिन मां शैलपुत्री की पूजा (Worship of Maa Shailputri) की जाती है. इस बार घटस्थापना गुरुवार 7 अक्टूबर (Ghatasthapana Thursday 7 October) को है.

first day of navratri
मां शैलपुत्री

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Published : Oct 3, 2021, 11:44 AM IST

रायपुरःनवरात्र (Navratri) का हर दिन मां दुर्गा के नौ अवतार (Nine Avatars of Maa Durga) को समर्पित होता है. गुरुवार 7 अक्टूबर को कलश स्थापन (Kalash sthaapan) है, जिसे घटस्थापन (Ghatasthapana) भी कहा जाता है. इस दिन मां के प्रथम रूप यानी मां शालपुत्री की पूजा (Worship of Maa Shalaputri) अर्चना की जाती है. मां शैलीपुत्री हिमालय की पुत्री हैं,यही कारण है कि मां के इस स्वरूप को शैलपुत्री का नाम दिया गया. इनकी आराधना से हम सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं. मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए ध्यान मंत्र जपना चाहिए. कहते हैं कि इसके प्रभाव से माता जल्दी ही प्रसन्न होती हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं.

ध्यान मंत्रः-वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

पूजा विधि-सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें. तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें.

मंत्र इस प्रकार है- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

आइए जानते हैं मां शैलपुत्री के बारे में

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है. हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री. इनका वाहन वृषभ यानी कि बैल है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं. इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. यही देवी प्रथम दुर्गा हैं. ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं. इनकी एक मार्मिक कहानी भी है.

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एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं. सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं.शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं. ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है. सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया. बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे.भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव थे. दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे. इससे सती को क्लेश पहुंचा.

वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया. इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया. यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं. पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं. शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ. शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं. इनका महत्व और शक्ति अनंत है.

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