रायपुर: छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के माध्यम से हर साल पहली से दसवीं तक के अनुदान प्राप्त निजी और शासकीय प्राथमिक मिडिल और हाई स्कूल के बच्चों को नि:शुल्क किताबें दी जाती हैं, ताकि पढ़ाई सुचारू रूप से चलती रहे. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के चलते किताबें बच्चों तक नहीं पहुंच पाई हैं. लिहाजा बच्चों को पढ़ाई करने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि वर्तमान में पाठ्यपुस्तक निगम ने सभी सरकारी स्कूलों में पुस्तकें पहुंचाने का दावा किया है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों में अभी तक पुस्तकें नहीं पहुंची हैं. कोरोना संक्रमण के कारण मार्च से ही सभी स्कूल बंद हैं. अनलॉक 4 में केवल 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को खोला गया है.
छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में बिना पुस्तक के पढ़ाई कर रहे बच्चे ! - ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर बिना पुस्तकों के पढ़ाई कैसे होती है?
- शिक्षक बच्चों को कैसे पढ़ाते हैं और बच्चे इस पढ़ाई को कैसे समझते हैं?
- क्या उन्हें जो पढ़ाया जाता, वह समझ में आता है?
इन सारे सवालों के जवाब खोजने ETV भारत की टीम ने अलग-अलग वर्गों से बात की.
ट्यूशन जाने को मजबूर हो रहे बच्चे ऑनलाइन माध्यम से कराई जा रही है पढ़ाई
कोरोना काल के बीच शासकीय और निजी स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो गई है. बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं. लिहाजा बच्चों की शिक्षा में कोई रुकावट न आए, इसके लिए राज्य सरकार ने ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कराने की व्यवस्था कराने के निर्देश दिए हैं. जिसके बाद सभी स्कूल अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग संसाधनों के माध्यम से बच्चों का कोर्स पूरा करवाने में जुटे हुए हैं.
बिना पुस्तक के पढ़ने में हो रही परेशानी शिक्षण सत्र पूरा हो जाने के बाद भी नहीं मिली पुस्तकें
स्कूल प्रबंधन लगातार बच्चों की वर्चुअल क्लास ले रहे हैं. ऑनलाइन इंटरनेट की मदद से बच्चों को स्टडी मटेरियल भी दिया जा रहा है. हालिया स्थिति की बात करें, तो कई स्कूलों में तिमाही परीक्षा भी करा ली गई है और अब वे छमाही परीक्षा लेने की तैयारी में हैं. आज तमाम प्राइवेट स्कूल अगर बच्चों को पढ़ा रहे हैं और उनकी परीक्षाएं भी ले रहे हैं, तो जाहिर है कि वे फीस के रूप में मोटी रकम भी ले रहे होंगे. लेकिन इन सभी हालातों के बीच चौंकाने वाली बात ये है कि सारी पढ़ाई बिना किताबों के ही हो रही है. साल 2020 का आधा शिक्षण सत्र पूरा हो जाने के बाद भी बच्चों को बुक्स नहीं मिली हैं.
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सबसे पहले बच्चों से जानने की कोशिश की गई कि वे कैसे बिना किताबों के पढ़ाई कर रहे हैं और ऑनलाइन उन्हें जो भी पढ़ाया जा रहा है क्या उन्हें सब समझ आ रहा है. स्टूडेंट्स ने बताया कि टीचर्स स्टडी मटेरियल वीडियो या पीडीएफ बनाकर या फिर किसी कागज में लिखकर ऑनलाइन भेज दिया करते हैं. कई बार उन्हें बहुत सारी चीजें नहीं समझ आती और बुक्स नहीं होने की वजह से वे पढ़ाए गए विषयों का रीविजन भी नहीं कर पाते. इसकी वजह से उन्हें पढ़ाई करने में काफी दिक्कत हो रही है.
बिना पुस्तक के पढ़ने में हो रही परेशानी 'ऑनलाइन पढ़ाई में कई तथ्यों को नहीं समझ पाते बच्चे'
कोचिंग पढ़ाने वाली टीचर तनिष्का सिंह का कहना है कि अबतक निजी स्कूलों के बच्चों को पुस्तक नहीं मिली है और वह स्कूलों से ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई के बाद भी उन्हें बहुत सी चीजें समझ में नहीं आती है. इसलिए वे ट्यूशन में आकर उन विषयों को लेकर सवाल करते हैं, जिसे वह बच्चों को समझाती है. उन्होंने बताया कि किताबें नहीं होने से बच्चों को पढ़ाने में भी परेशानी होती है.
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कई बच्चों के पास नहीं है मोबाइल
निजी स्कूल की टीचर श्वेता वासनिक का कहना है कि अभी ऑनलाइन क्लासेस चलाई जा रही है, जिसमें शिक्षक विषय से संबंधित वीडियो बनाकर ऑनलाइन बच्चों तक भेज देते हैं. लेकिन कई बच्चों के पास मोबाइल न होने की वजह से वे उन वीडियो को देख नहीं पाते हैं और समझ नहीं पाते हैं. वर्चुअल क्लासेस को लेकर भी उनका कहना था कि आज भी कई बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है. जिसकी वजह से भी कई बच्चे अबतक पढ़ाई से वंचित हैं.
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श्वेता ने बताया कि बच्चों के पास बुक्स नहीं होने से हो रही परेशानी को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने स्कूल के बच्चों से ही कहा है कि अपने से छोटी क्लास के बच्चों को अपनी पूरानी किताबें दे दें, जिससे उन्हें पढ़ाई करने में परेशानी न हो. लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें अभी तक बुक्स नहीं मिली है और उनके पास मोबाइल भी नहीं है. ऐसे में उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है.
'बार-बार लॉकडाउन लगने से नहीं पहुंच पाई पुस्तकें'
शिक्षा विभाग के मुताबिक वे ज्यादा से ज्यादा निजी और सरकारी स्कूलों में पुस्तकें मुहैया करा रहे हैं. रायपुर में लगभग 1 हजार 575 निजी और 1 हजार 207 सरकारी स्कूल संचालित हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग पुस्तकें उपलब्ध करा रहा है. जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के सहायक संचालक यशवंत वर्मा का कहना है कि सभी शासकीय स्कूलों में पुस्तकें भेज दी गई हैं. निजी स्कूलों में पुस्तक भेजी जा रही हैं. हालांकि पुस्तक वितरण में हो रही देरी के लिए उन्होंने कोरोना संक्रमण के मद्देनजर बार-बार किए जा रहे लॉकडाउन को बताया है. उन्होंने कहा कि राजधानी रायपुर में लगभग साढ़े चार लाख बच्चों को पुस्तक बांटा जा चुका है.
'छात्रों के साथ अन्याय कर रही है राज्य सरकार'
इस संबंध में भाजपा के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने ने राज्य सरकार को घरते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार शिक्षा को लेकर उदासीन रवैया अपना रही है. सरकार की उदासीनता के चलते ही शिक्षक आज सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं और बच्चों को शिक्षा से दूर रखा जा रहा है. उपासने ने कहा कि यह सरकार छात्रों के साथ अन्याय कर रही है. फीस को लेकर लगातार बच्चों के अभिभावकों और स्कूल संचालकों के बीच विवाद की स्थिति बनी हुई है. जिसे लेकर सरकार अबतक बीच का रास्ता नहीं निकाल सकी है.
'लॉकडाउन की वजह से पुस्तकें पहुंचाने में हुई देरी'
पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा की कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बीच भी लगातार पाठ्य पुस्तक निगम के कर्मचारी पुस्तकों का वितरण कर रहे हैं. सबसे पहले शासकीय स्कूलों में पुस्तकों की सप्लाई की गई. उसके बाद अनुदान प्राप्त स्कूलों में पुस्तकें भेजी गई और अब निजी स्कूलों में पुस्तक भेजने की प्रक्रिया चल रही है.
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शैलेष ने बताया कि निजी स्कूल में पुस्तक देरी से मिलने की एक और वजह थी कि शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों को पुस्तकों की राशि भी दी जाती है. ऐसे में उन्हें दोबारा भुगतान ना हो यह सुनिश्चित करने में थोड़ी देर हुई, लेकिन अब लगातार पुस्तक मित्रों का काम जारी है.
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राजधानी रायपुर में पाठ्य पुस्तक निगम के पुस्तक वितरण का यह हाल है, तो प्रदेश के दूसरे जिलो में पुस्तक वितरण की क्या स्थिति होगी. क्योंकि उन जिलों में भी रायपुर से ही पुस्तकें भेजी जाती है. सरकार ने विभिन्न माध्यमों से बच्चों की पढ़ाई संपन्न कराने की व्यवस्था की है. लेकिन सबसे बड़ी चूक यह रही कि बच्चों को पढ़ने के लिए पुस्तक देना ही भूल गए. आधा शैक्षणिक सत्र भी निकल गया, परीक्षाएं हो गईं और अब जाकर पाठ्य पुस्तक निगम पुस्तकें बांट रहा है.