रायपुर:रत्नों को धारण करना बहुत महत्वपूर्ण होता है. रत्न ग्रहों के प्रभाव को परिवर्तित करने, बदलने, घटाने, बढ़ाने में पूरी तरह सक्षम हैं. कई रत्नों का प्रभाव तो तत्काल दिखाई पड़ता है. माणिक का प्रभाव, नीलम का प्रभाव, हीरे का प्रभाव और गोमेद का प्रभाव तत्काल दिखता है. बाकी रत्न भी अपना प्रभाव दिखाते हैं.
ये हैं रत्न धारण करने के नियम:रत्न धारण करने से ग्रहों की ताकत बढ़ जाती है. अगर कोई ग्रह कुंडली में 1 डिग्री का है, तो रत्न के कारण उसकी शक्ति 6 डिग्री हो जाती है. इस तरह से लगभग 5 डिग्री का प्रभाव रत्न बढ़ा ही देते हैं. लेकिन रत्नों को धारण करने के लिए खास प्रक्रिया होती है. रत्न की प्राण प्रतिष्ठा कर विधिवत मंत्रोच्चार के साथ उसकी पूजा-अर्चना करने के बाद ही धारण किया जाना चाहिए, तभी उसका फल मिलता है.
इसलिए जरूरी है रत्नों की प्राण प्रतिष्ठा:ज्योतिष महेंद्र कुमार ठाकुर कहते हैं कि "बिना प्राण प्रतिष्ठा के रत्न धारण करना लाभकारी नहीं होता. बिना प्राण प्रतिष्ठा के रत्न धारण करने पर नुकसान ही होता है. रत्न धारण करने की अवधि भी निश्चित होनी चाहिए. ग्रह की महादशा, अंतर्दशा और गोचर में ग्रहों की स्थिति के आधार पर रत्न का चुनाव किया जाना चाहिए. उसे 3 साल के अंदर प्राण प्रतिष्ठा की जानी चाहिए. ताकि रत्न प्रभावी बना रहे. रत्न धारण के समय यह भी देखा जाना चाहिए कि कहीं उसके शत्रु ग्रह की दशा तो नहीं आ रही है, गोचर में उनका शत्रु ग्रह प्रभावशाली हो रहा है, जो कुंडली के लिए राजयोग देने वाला है. ऐसी स्थिति में जिस रत्न को जातक धारण करता है, वह रत्न तो नुकसान नहीं करता लेकिन राजयोग देने वाले शत्रु ग्रह का प्रभाव क्षीण हो जाता है."