Reservation Bill Politics In Chhattisgarh : राष्ट्रपति दौरे के दौरान आरक्षण का मुद्दा हो सकता है गर्म, सीएम भूपेश बिल को लेकर कर सकते हैं चर्चा, राजभवन में लंबित है बिल - reservation amendment bill
Reservation Bill Politics In Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दौरे में एक बार आरक्षण का मुद्दा गर्मा सकता है. क्योंकि सीएम भूपेश बघेल दो दिनों तक राष्ट्रपति के साथ ही है. लिहाजा ये मुमकिन है कि इस दौरान आरक्षण बिल को लेकर उनकी चर्चा राष्ट्रपति के साथ हो. कांग्रेस का मानना है कि यदि राष्ट्रपति ने हरी झंडी दे दी, तो राज्यपाल इस बिल पर साइन कर देंगे.
राष्ट्रपति दौरे के दौरान आरक्षण का मुद्दा हो सकता है गर्म
आरक्षण बिल पर राष्ट्रपति से सीएम भूपेश कर सकते हैं चर्चा
रायपुर :राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मूछत्तीसगढ़ दौरे पर हैं. इस दौरान एक बार फिर आरक्षण बिल को लेकर सियासत गर्म हो सकती है. क्योंकि छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल दो दिनों तक राष्ट्रपति और राज्यपाल के साथ ही रहेंगे. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम भूपेश बघेल आरक्षण संशोधन बिल पर हस्ताक्षर को लेकर राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों से ही चर्चा कर सकते हैं. क्योंकि आरक्षण संशोधन बिल को लेकर कई बार निवेदन राज्यपाल से किया जा चुका है. लेकिन अब तक इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं हुए. ऐसे में राष्ट्रपति के सामने भी सीएम भूपेश बघेल आरक्षण बिल को लेकर अपनी बात रख सकते हैं.
आरक्षण बिल पर राष्ट्रपति से सीएम कर सकते हैं चर्चा: पर अब हस्ताक्षर नहीं होने की वजह कांग्रेस बीजेपी को मानती है. कांग्रेस कई बार आरोप चुकी है कि राज्यपाल किसी दबाव की वजह से बिल पर साइन नहीं कर रहे हैं. जबकि बिल को लेकर कानूनविद् की राय ली जा चुकी है. अब जब राष्ट्रपति छत्तीसगढ़ में ही है, तो सीएम भूपेश बघेल खुद आरक्षण बिल को लेकर अपनी बात रख सकते हैं. कांग्रेस का मानना है कि यदि राष्ट्रपति एक बार राज्यपाल को आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए कह देंगी, तो हर वर्ग का भला हो जाएगा.
''32 फीसदी आदिवासी समाज, 27 फीसदी ओबीसी, 13 फीसदी एससी और 4 फीसदी गरीब अनारक्षित वर्ग के लिए प्रावधान किया गया है.पिछले कई महीने से राजभवन में लंबित है.यदि राष्ट्रपति एक बार राज्यपाल को निर्देश कर देंगे तो छत्तीसगढ़ के सर्व समाज का भला हो जाएगा.''सुशील आनंद शुक्ला, मीडिया प्रभारी कांग्रेस
कांग्रेस के बयान पर बीजेपी ने बोला हमला: वहीं बीजेपी ने कांग्रेस के बयान को ओछी मानसिकता से प्रेरित बताया है. बीजेपी की मानें, तो जिन लोगों ने आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में स्टे लगवाया. उन्हें कांग्रेस ने लालबत्ती देकर सम्मानित किया है. बीजेपी ने भी विधानसभा में आरक्षण बिल का समर्थन किया था. उस दौरान कुछ मांगें रखी थी. जिस आधार पर इसको बनाया है, उसे टेबल किया जाए, लेकिन टेबल नहीं किया गया था.
''राष्ट्रपति और राज्यपाल को अपनी गंदी राजनीति के अंतर्गत नहीं खींचना चाहिए, यह सम्मानित पद है, इस राजनीति से दूर रखना चाहिए.'' निशिकांत पाण्डेय, प्रवक्ता बीजेपी
दोनों दल आरक्षण मुद्दे को भुनाने में जुटे: वहीं इस पूरे मामले में राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा का कहना है कि राष्ट्रपति का दौरा गैर राजनीतिक है. लेकिन आरक्षण का मुद्दा ऐसा है कि दोनों ही दल चुनाव से पहले इसे भुनाना चाहते हैं.
'' राष्ट्रपति के दौरे के कोई भी राजनीतिक मायने नहीं होते हैं. राष्ट्रपति प्रत्येक प्रदेश में जाती हैं.वहां की संस्कृति और धरोहर पर चर्चाएं होती हैं. उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं होता है.''-बाबूलाल शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस क्यों लगा रही है दबाव का आरोप:जब छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी आरक्षण को अप्रसांगिक मानकर हाईकोर्ट ने खारिज किया था. प्रदेश सरकार ने राज्यपाल से मिलकर नए फॉर्मूले के तहत बिल लाने की बात कही थी. तब राज्यपाल ने बिल पर तुरंत साइन करने का भरोसा दिया. विधानसभा में कांग्रेस आरक्षण संशोधन बिल लाई और इसे साइन करने के लिए तात्कालीन राज्यपाल अनुसूईया उइके के पास भेजा. लेकिन अनुसूईया उइके ने ये कहते हुए साइन नहीं किए कि सिर्फ एससी एसटी वर्ग का आरक्षण बढ़ाने को कहा गया था. मौजूदा बिल में सभी वर्गों का बढ़ाया गया है. राज्यपाल ने इस पर कानूनी विशेषज्ञ की राय लेने की बात कही थी. तब से ये बिल राजभवन में लटका है. इसके बाद से कांग्रेस राज्यपाल पर दबाव में होने का आरोप लगा रही है.
सर्व आदिवासी समाज का चुनाव में कितना असर: आरक्षण बिल को लेकर सर्व आदिवासी समाज का चुनाव लड़ने का फैसला है. उस पर विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि प्रदेश में कई सारे निर्णय बिना आरक्षण के आदिवासियों के लिए लिए गए हैं. जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है. इसलिए आरक्षण बिल को लेकर एकतरफ किसी पार्टी के पक्ष या खिलाफ माहौल बनेगा, ऐसा शायद ही होगा. सारी परिस्थितियों को देखकर आदिवासी समाज भटकेगा, ये मुमकिन नहीं. एक-दो पर्सेंट वोट इधर-उधर हो सकता है, लेकिन इतना नहीं भटकेगा कि कांग्रेस और भाजपा की तरफ सोचेगा ही नहीं.