रायपुर:'नदिया किनारे, किसके सहारे' में जारी है खारून नदी का सफर. भौगोलिक और प्राकृतिक परिस्थिति के साथ ही खारून का सांस्कृतिक इतिहास भी है. राजधानी से 101 किलोमीटर और धमतरी से 24 किलोमीटर दूर स्थित कंकालिन शक्ति पीठ का पौराणिक महत्व है.
कंकालीन माता, राक्षस खर और खारून नदी का क्या संबंध है कंकालीन नदी के नाम पर कंकालीन गांव का भी नाम पड़ा है. खारून नदी के उद्गम और इतिहास में इस कंकालीन शक्तिपीठ का भी पौराणिक महत्व है. घनघोर जंगल के बीच स्थित इस शक्तिपीठ को पूरे अंचल के लोग वनदेवी के रूप में मानते हैं. चलिए आपको खारून नदी की यात्रा में ऐतिहासिक शक्तिपीठ से जुड़ी रोचक कहानियों से आपको रूबरू कराते हैं.
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इस मंदिर से पूरे अंचल के लोगों का लगाव
ETV भारत घने जंगलों के बीच स्थित कंकालीन शक्तिपीठ पहुंचा. शक्तिपीठ के किनारे एक चट्टान से नाला निकलता है, जो कंकालीन नाला के रूप में जाना जाता है. माता का ये मंदिर एक चमत्कारिक शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है. घनघोर जंगल के बीच इस मंदिर से पूरे अंचल के आदिवासियों और अन्य धर्म, समाज के लोगों का बेहद लगाव है.
- यही नाला आगे जाकर जंगलों में और तेज हो बहता है. बताते हैं कि यहां पानी का एक कुंड भी हुआ करता था और कंकालीन माता की पूजा, अर्चना के लिए इस कुंड का ही पानी इस्तेमाल किया जाता है. लोग ये भी बताते हैं कि कंकालीन माता के आशीर्वाद से ही खारून नदी में पानी आता है और यह नदी छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में खुशहाली लाती है.
- लोगों का ये भी कहना है कि इसी मंदिर से खारून नदी का उद्गम होता है. कहते हैं कि खारून नदी कंकालीन देवी के पैर छूकर निकली है इस वजह से यहां के मैदानी इलाके में सदानीरा रहती है.
- वहीं नामकरण को लेकर पुरातत्व को लेकर पिछले 40 सालों से काम कर रहे धमतरी के पुरातत्वविद जियाउल हुसैनी कहते हैं कि खारून नदी के नामकरण के पीछे एक राक्षण खर की कहानी है.
- वे बताते हैं कि जब भगवान श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास मिला था, तो वे इसी क्षेत्र से गुजरे थे. दंडकारण्य में वनवास काटा था और इन्हीं जंगलों से वनगमन किया था. राक्षण खर को जब यह मालूम पड़ा कि उसके परम गुरु रावण की मृत्यु भगवान राम के हाथ से होगी तो उनको रोकने के लिए राक्षस खर यहां आया था.
- कहानी है कि कंकालीन पहाड़ के आस-पास उसने तपस्या और यज्ञ किया. इस दौरान जंगली कीड़े-मकोड़ों ने राक्षस खर के पैरों को काटा था. पैरों को रगड़ते-रगड़ते वहां गड्डा हुआ और कुंड बन गया.
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किस्से मिले, मान्यता मिली
इस तरह से खारून नदी के उद्गम और विस्तार को लेकर यात्रा के दौरान ETV भारत को कई रोचक कहानियां भी मिली. जिसमें नदी के विस्तार और नामकरण को लेकर किस्से मिले तो धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी सुनने को मिला.