रायपुर:छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कई इमारतें आज भी अंग्रेजों से जंग की गवाही देती हैं. इन इमारतों पर कभी अंग्रेजों के कामकाज और रहने का ठिकाना हुआ करता था. इनमें रविभवन के केसर-ए-हिंद दरवाजा, जवाहर मार्केट, कलेक्टर परिसर समेत अनेक भवन और इमारतें शामिल हैं. इन्हीं कुछ चुनिंदा जगहों में अंग्रेजों का कामकाज हुआ करता था, जो आज भी राजधानी रायपुर में अंग्रेजों की मौजूदगी की गवाही देते हैं. इन्हीं मे से पुरानी कोतवाली, जहां की दीवारें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की वीरता की गाथा कहती हैं. अंग्रेजों के जुल्म को बयां करती है. आजादी के दीवानों को कोतवाली में ही लाकर रखा जाता था. कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को यहां यातनाएं भी दी जाती थी.
हालांकि स्मार्ट सिटी और नगर निगम ने ट्रैफिक व्यवस्था को सुगम करने के लिए इसे ढहा दिया. नई बिल्डिंग में कोतवाली संचालित कर दी गई है, लेकिन कोतवाली थाना आज भी आजादी के परवानों की यादों को समेट कर रखा हुआ है.
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कचहरी से बना कोतवाली:राजधानी रायपुर के सिटी कोतवाली थाने को लेकर इतिहासकार डॉ रामेंद्र नाथ मिश्रा ने बताया कि "1802 में अंग्रेजों ने कचहरी के तौर पर इस बिल्डिंग को बनाया था. इसके निर्माण के लिए रायपुर के पुराने किले में लगे सफलिश पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था. सिटी कोतवाली ब्रिटिशकालीन कला का बेहतरीन नमूना था. करीब 100 साल बाद 1903 में कचहरी को पुलिस विभाग के सुपुर्द कर दी गई. तब से लेकर अब तक यहां सिटी कोतवाली संचालित हो रही थी. रायपुर अंग्रेजों के समय नागपुर कमिश्नरेट के अंतर्गत आता था. उस दौरान बिंद्रा नवागढ़ और भखारा में भी इसकी दो पुलिस चौकियां थीं.
कोतवाली में आजादी के दीवानों ने सही यातनाएं:इतिहासकारों की माने तो जब देश में आजादी की आग धधकी तो उसकी लपटें राजधानी रायपुर तक भी पहुंची थी. यहां भी लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया. आंदोलन में शामिल कई सेनानियों को पुलिस ने कोतवाली थाने में ही गिरफ्तार कर रखा था. यहां उन्हें यातनाएं भी दी जाती थी. उस दौरान पंडित रविशंकर शुक्ल, वामन राव लाखे, माधवराव सप्रे, सुंदरलाल शर्मा, खूबचंद बघेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी कोतवाली थाने के हवालात में कई दिन गुजारे. बंदियों को रखने के लिए बंदी गृह भी उसी समय बनाया गया, जो आज भी वैसा ही था. असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी यहीं बंद रहे थे. सन 1900 से पहले जब यह कचहरी भवन था, तब 1857 की क्रांति की सुनवाई यहीं होती थी, लेकिन वर्तमान में इस इमारत को ढहा दिया गया है.
पुरानी इमारत को पिछले साल गिराया गया:थाने की पुरानी इमारत को डेढ़ साल पहले ट्रैफिक की समस्या को देखते हुए गिरा दिया गया. अब नई इमारत है. मगर सिटी कोतवाली पुराने जमाने से ही शहर का प्रमुख चौराहा रहा है. नगर में किसी भी प्रकार का धार्मिक, राजनैतिक, श्रमिक, छात्र गतिविधियों के कारण कोई भी जुलूस निकले. इसी चौक से होकर जाता है. पुरानी इमारत के तौर पर 15 अगस्त 1998 से सिटी कोतवाली थाना को पुरातात्विक महत्व का भवन घोषित किया गया था. इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्र नाथ मिश्र ने इस एतिहासिक भवन को तोड़े जाने का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि सरकार को इन धरोहरों को संरक्षित करनी चाहिए. ये हमारे आजादी के परवानों की मुख्य धरोहरों में से एक थी.