रायपुरः मनुष्य वंश की वृद्धि के लिए पुत्र की कामना करने के लिए पुत्रदा एकादशी (putrada ekadashi) व्रत पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ करता आया है. ऐसी मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी के दिन संकल्पवान होकर व्रत करने से जीवन में वंश वृद्धि के लिए सुपुत्र की कामना पूर्ण होती है. इस बार पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त को मनाई जा रही है. यह त्योहार पवित्रा एकादशी झूलन यात्रा प्रारंभ के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन मूल नक्षत्र विष्कुंभ योग और ध्वज योग के शुभ संयोग में पड़ रहा है. इस दिन ववकरण भी है. जबकि चंद्रमा धनु राशि में विराजमान रहेंगे रवि योग और यम योग भी निर्मित हो रहे हैं.
वंश वृद्धि के लिए सुपुत्र की कामना होगी पूर्ण भगवान नारायण की साधना-आराधना का पर्व है पुत्रदा एकादशी इसको योग गुरु विनीत शर्मा ने बताया कि श्री हरि विष्णु अर्थात नारायण भगवान की आराधना साधना उपासना और आरती के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है. इस दिन पीला वस्त्र पहनना शुभ माना गया है. भगवान श्री हरि विष्णु को पीले फल पीले वस्त्र और पीले पदार्थों का भोग लगाना शुभ माना गया है. इस दिन पीली मिठाइयां पीले लड्डू और पीले रंग के नैवैद्य चढ़ाकर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है. इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का अनवरत जाप करना बहुत ही सिद्धिदायक माना गया है. प्रातः काल सुबह उठकर योग प्राणायाम और ध्यान आदि करके इस व्रत को करने का विधान है.
पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं यह व्रत
संपूर्ण सावन मास शिव भक्तों के लिए अनंत उत्साह और आनंद ऊर्जा पैदा करता है. ऐसी मान्यती है कि सौभाग्यवती महिलाएं यह व्रत पूरी श्रद्धा, आस्था, समर्पण और संकल्प के साथ करती हैं तो उन्हें गुणवान धर्म वन संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए. सात्विक विचारों के साथ पूरा दिन व्यतीत करना चाहिए. कोर्ट-कचहरी और लड़ाई-झगड़े आदि से दूर रहना चाहिए. मन को नारायण की ओर महालक्ष्मी माता की स्तुति में लगाया जाना चाहिए. इस दिन श्री सुक्तम, लक्ष्मी सुक्तम, पुरुष सुक्तम पढ़कर विष्णु जी की आरती करनी चाहिए.
राजा सुकेतुमान ने किया था यह व्रत, पुत्र की हुई थी प्राप्ति
पंडित अरुणेश शर्मा ने बताया कि पुत्रदा एकादशी अच्छी संतान की प्राप्ति के लिए मनायी जाती है. भारतीय परंपरा में पितृ ऋण से मुक्ति और वंश वृद्धि के लिए संतान को महत्वपूर्ण माना गया है. कहते हैं कि संतान के बिना व्यक्ति मुक्त नहीं होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा सुकेतुमान की कोई संतान नहीं थी. इससे दुखी होकर वह जंगल चले गये और वहां एक तालाब किनारे बैठकर पुत्र प्राप्ति के उपाय ढूंढ़ने लगे. नजदीक ही वहां ऋषियों का आश्रम था. ऋषियों ने राजा सुकेतुमान को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत के बारे में बताया. यह व्रत करने के 9 महीने के बाद राजा सुकेतुमान को संतान की प्राप्ति हुई. पुत्रदा एकादशी मूलत परिवार में सुख समृद्धि के लिए मनाई जाती है.