रायपुर: किसी शायर ने खूब कहा है 'ना पूछो कि मेरी मंजिल कहां है, अभी तो सफर का इरादा किया है ,ना हारूंगा हौसला उम्र भर, यह मैंने किसी से नहीं खुद से वादा किया है'. रायपुर के प्रियंक पटेल (Priyank patel of raipur) ने इन पंक्तियों को असल जीवन में साबित किया है. उन्होंने दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स (Empowerment of divyangjan and transgender) को नौकरी देने की नीयत से एक नुक्कड़ कैफे की शुरुआत की. उनकी इस सोच और जज्बे ने आज ना जाने कितने दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद की है. प्रियंक पटेल को दिव्यांगजन सशक्तिकरण क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. दिव्यांगजन और ट्रांसजेंडर को जॉब देने वाले इनके नुक्कड़ कैफे को बेस्ट एंपलॉयर (Best Employer Award) का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. 3 दिसंबर विश्व दिव्यांगजन दिवस के मौके पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Union Ministry of Social Justice and Empowerment) ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता 2020 के पुरस्कार (Award for Best Employer in Empowerment of Persons with Disabilities) से प्रियंक पटेल को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया (Priyank Patel honored by President Ram Nath Kovind) है. प्रियंक पटेल की सोच और दिव्यांगजनों के कल्याण के लिए किए गए कार्यों को लेकर ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की है.
सवाल- आपको सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता Best empolyer के तौर पर राष्ट्रपति से पुरस्कृत किया गया है कैसा महसूस कर रहे हैं ?
जवाब- मैं इस सम्मान को बहुत बड़ी जिम्मेदारी के तौर पर देखता हूं. राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल करना और 8 सालों के प्रयासों को जो सम्मान मिला है. कहीं ना कहीं यह हमें मजबूत करता है . हमारे प्रयासों की सराहना हो रही है. बहुत अच्छा लग रहा है. उम्मीद थी कि जिस तरह हम काम कर रहे हैं, वह केंद्र सरकार की नजर में जरूर आएगा और जो सम्मान मिला है उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूं.
3 साल में रिकॉर्ड 70 लाख कमाई करने पर बिलासपुर ब्रेल प्रेस को मिला देश का बेस्ट ब्रेल प्रेस अवार्ड
सवाल - आपको इस तरह से काम करने का आइडिया कैसे आया?
जवाब- साल 2013 में मैने नुक्कड़ कैफे (Nukkad Cafe of raipur) की शुरुआत की. मैं एक फेलोशिप का हिस्सा था. अलग-अलग गांव के क्षेत्र में काम करता था. वहां मैंने देखा कि एक समाज का वर्ग जो मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, इसके अलावा जो शहरी वर्ग है जिन तक हर सुविधा की पहुंच रही है. इनके लिए कुछ करना चाहिए. इसके बीच द्वंद्व जैसी चीजें दिखती थी. जिसे दूर करने के लिए मुझे लगा कि एक कम्युनिटी प्लेस होनी चाहिए. जहां दो कम्युनिटी आपस में संवाद स्थापित कर सके. इसी आइडिया को डेवलप करते-करते नुक्कड़ कैफे की शुरूआत की गई. शुरुआती तौर पर हमने मूकबधिर लोगों को शामिल किया. 2013 के इस प्रयोग को सराहना मिली. उसके बाद दिव्यांगजनों के साथ ट्रांसजेंडर और मानसिक रूप से (Job in Nukkad Cafe for transgender and Divyangjan) विक्षिप्त लोगों को भी यहां काम देने की शुरुआत की गई. इसके अलावा जो लोग मानव तस्करी के शिकार थे. उनको भी समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के उदेश्य से यहां काम दिया. अब भी यह कोशिश जारी है.
सवाल- अभी आपके साथ कितने लोग जुड़ कर काम कर रहे हैं?
जवाब- हमारे साथ अलग-अलग कम्युनिटी के 58 लोग जुड़ कर काम कर रहे हैं. जिनमें 75 फ़ीसदी स्पेशल डिसेएबल सेगमेंट से आते हैं. इनमें मूकबधिर, बौने , ट्रांसजेंडर कम्युनिटी (transgender community) मानव तस्करी के शिकार हुए लोग शामिल हैं. हमारा प्रयास है कि हम मल्टीपल कम्युनिटी को एक साथ जुड़कर काम करे. समाज के बीच यह संदेश देने की कोशिश भी कर रहे हैं कि अलग-अलग कम्युनिटी को जोड़कर कार्य किया जा सकता है .
जांजगीर में अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर रक्तदान कैंप का आयोजन
सवाल - आपने पढ़ाई क्या की है और आपका कार्यक्षेत्र पहले क्या था?
जवाब- मैंने 2007 में इलेक्ट्रॉनिक एंड टेलीकम्युनिकेशन से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. उसके बाद मेरी नौकरी दिल्ली में लग गई. तीन-चार साल नौकरी करने के बाद भी मुझे संतुष्टि नहीं मिल रही थी. हर दिन जब शाम को घर लौटता था एक खालीपन महसूस होता था. लेकिन समय निकालकर मैं NGO के साथ भी काम करता था. इसी बीच एक फैलोशिप की जानकारी मिली जिसमें गुजरात और ओडिशा के अलग-अलग एनजीओ के साथ गांव में जाकर काम किया. इन अनुभव ने मुझे प्रेरणा दी की यूथ को क्रिएटिव तरीके के कॉन्सेप्ट से जोड़कर कार्य किया जा सकता है. इसलिए नुक्कड़ कैफे की शुरूआत की गई. साल 2013 से 2021 आते आते हमने 4 स्टोर की स्थापना की और हर स्टोर में हमने अलग-अलग कम्युनिटी को जोड़ने का प्रयास किया है.