रायपुर: कोरोना संकट से जहां पूरी दुनिया जूझ रही है, वहीं इस संकट की घड़ी में सबसे ज्यादा सुरक्षित रहने की जरूरत गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को है. गर्भवती महिलाओं की अगर बात करें, तो प्रेगनेंसी पीरियड में उन्हें कई बार हॉस्पिटल के चक्कर काटने पड़ते हैं. इस महामारी के दौर में उनका अस्पताल जाना भी किसी खतरे से खाली नहीं है. उनमें सबसे ज्यादा डर इस बात का है कि अस्पताल जाने से कहीं उन्हें भी कोरोना वायरस का संक्रमण न हो जाए. क्योंकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का शरीर बीमारियों को लेकर सेंसेटिव होता है और ऐसे में प्रेगनेंट महिलाओं को कई तरह की दिक्कतें आती हैं. इस दौरान उनमें किसी भी तरह का संक्रमण जल्दी फैलता है.
गर्भावस्था के दौरान हर महीने कई टेस्ट भी कराने पड़ते हैं और रेगुलर चेकअप कराना भी प्रेगनेंट वुमन के लिए बेहद जरूरी होता है. 9 महीने के दौरान गर्भवती महिला को कई बार सोनोग्राफी के लिए भी जाना पड़ता है. गर्भावस्था के अलावा भी अन्य बीमारियों का पता लगाने के लिए डॉक्टर्स सोनोग्राफी की सलाह देते हैं. ऐसे में सोनोग्राफी कराने आ रही गर्भवती महिलाओं और अन्य पेशेंट्स को लेकर डॉक्टर्स काफी सावधानी बरत रहे हैं.
इन सब पर ETV भारत ने स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आशा जैन से बात की. जिसमें उन्होंने बताया कि सोनोग्राफी सेंटर में आने वाले लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए वे क्या-क्या उपाय कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने डॉक्टर्स फ्रैटर्निटी को गर्भवती महिलाओं और अन्य मरीजों की जांच में क्या दिक्कतें आ रही हैं, इसे भी बताया.
अस्पताल में बरती जा रही सावधानी
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आशा जैन ने बताया कि जैसे ही कोई पेशेंट अस्पताल परिसर में आता है, वहीं से सावधानी बरतने की शुरुआत कर दी जाती है. उन्हें हैंडवॉश कराया जाता है और मास्क पहनने के लिए कहा जाता है. सोनोग्राफी करने के लिए मशीन को पूरी तरह सैनिटाइज किया जाता है. जैसे ही एक पेशेंट की सोनोग्राफी हो जाती है, दूसरे के लिए वापस से मशीन को सैनिटाइज किया जाता है. बेडशीट बदली जाती है, ताकि संक्रमण का खतरा नहीं हो.
केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर किया जा रहा काम
डॉक्टर आशा बताती हैं कि पहले ज्यादा सोनोग्राफी की जाती थी, लेकिन अभी बहुत जरूरी होने पर ही इसे किया जा रहा है, ताकि संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक डॉक्टर्स काम कर रहे हैं. नियमों के हिसाब से किसी भी गर्भवती महिला की भी शुरुआती दो सोनोग्राफी की जा रही है, उसके बाद जब तक बहुत सीरियस ना हो, तब तक इसे नहीं किया जा रहा. इसके बाद गर्भावस्था के 26 या 29 हफ्ते पूरा होने के बाद ही सोनोग्राफी की जा रही है. डॉक्टर बताती हैं कि पहले ऐसा नहीं था. पहले एक समय तय था, जिसके आधार पर सोनोग्राफी की जाती थी. इस दौरान कई बदलाव आए हैं कि ओपीडी में भी जब तक कोई मरीज ज्यादा सीरियस न हो, उसे नहीं देखा जा रहा है.