क्या है देव दिवाली की पौराणिक मान्यता और महत्व ? - काशी
Dev Diwali 2023 दिवाली का पर्व यूं तो पूरे देश में मनाया जाता है.लेकिन दिवाली के 15 दिन बाद एक और पर्व मनाने की परंपरा है.ये पर्व देवताओं की दिवाली के नाम से जाना जाता है. इसलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है.
रायपुर : छठ पूजा और डोल ग्यारस के बाद देव दिवाली का पर्व आता है. साल 2023 में 26 नवंबर के दिन देव दिवाली का पर्व मनाया जाएगा. देव दिवाली का पर्व हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर आता है. हिंदू धर्म में दीपावली की ही तरह देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है. इस त्यौहार को भी दीपों के त्योहार के नाम से जाना जाता है.
क्यों मनाते हैं देव दिवाली ? :देव दिवाली का पर्व दीपावली के लगभग 15 दिन बाद मनाया जाता है. इस पर्व को मुख्य रूप से काशी में गंगा नदी के तट पर उत्सव की तरह मनाया जाता है.ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता गण धरती पर उतरते हैं. वो पवित्र धरती काशी की मानी जाती है.इसलिए वाराणसी के घाटों को देव दिवाली के दिन दियों से सजाया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.इस दिन दीपदान करने का बड़ा महत्व महत्व माना गया है.
कब मनाया जाता है देव दिवाली का पर्व ? :देव दिवाली का यह पर्व साल 2023 में 26 नवंबर को कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को है. 26 नवंबर की शाम प्रदोष काल में 5:08 से 7:45 तक देव दिवाली मनाने का शुभ मुहूर्त है. इस दिन शाम के समय 11, 21, 51 या फिर 108 आटे के दीये बनाकर उसमें तेल डालकर किसी नदी या तालाब में प्रज्वलित कर दीपदान करने की परंपरा है.
देव दिवाली से जुड़ी पौराणिक मान्यता :पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही शिवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था.वध के बाद सभी देवी देवताओं ने मिलकर खुशियां मनाई. जिसे देव दिवाली के नाम से जाना गया. इस दिन शिव जी के साथ सभी देवी देवता धरती पर आते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं. इसलिए काशी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दिवाली बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाई जाती है. धार्मिक शास्त्रों में देव दिवाली के दिन गंगा स्नान करने के बाद दीपदान करने से मनचाही इच्छा मिलती है.