रायपुर:कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहे देश के लिए ब्लैक फंगस (Black Fungus) नाम की बीमारी नई चुनौती बन गई है. इस बीमारी का इलाज खर्चीला है और मृत्युदर भी ज्यादा है. ये संक्रमण मुख्य रूप से उन लोगों में पैदा हो रहा है जिन्हें डायबिटीज की बीमारी है या फिर जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है. इस इन्फेक्शन को म्यूकर माइकोसिस कहा जाता है. तेजी से बढ़ती इस बीमारी का असर छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल रहा है. प्रदेश के भिलाई में ब्लैक फंगस के चलते एक युवक की मौत हो गई. वहीं रायपुर एम्स में 15 मरीजों का इलाज किया जा रहा है. ब्लैक फंगस में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां भी महंगी हैं. उपयोग में आने वाले इंजेक्शन की डिमांड भी मार्केट में ज्यादा बढ़ गई है. ETV भारत ने ब्लैक फंगस होने के कारण और दवाइयों के उपयोग को लेकर विशेषज्ञों से चर्चा की. ENT स्पेशलिस्ट डॉक्टर राकेश गुप्ता और रायपुर दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष विनय कृपलानी ने सवालों के जवाब दिए.
सवाल: ब्लैक फंगस क्या है और यह पोस्ट कोविड मरीज में ही ज्यादा देखने को क्यों मिल रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता:ब्लैक फंगस एक विशेष प्रकार का फंगल इंफेक्शन है. ये बीमारी साइनस, आंख के आसपास, आंख के पीछे वाले हिस्से और आंख के रास्ते से ब्रेन में चली जाती है. यह एक विशेष प्रकार का फंगल इंफेक्शन है जो बहुत एग्रेसिव होता है. बहुत तेजी से फैलता है. ब्लैक फंगस उन क्षेत्रों में ज्यादा प्रभावी दिख रहा है जहां बहुत ज्यादा इंसेक्टिसाइड या कीटनाशकों का प्रयोग होता है. जिनको डायबिटीज है, उनमें ये बहुत देखने को आता है. खासकर उत्तर भारत में इसका प्रभाव ज्यादा दिख रहा है. कोरोना की पहली लहर के दौरान पंजाब, हरियाणा में ब्लैक फंगस बहुत तेजी से फैल रहा था. वहीं दूसरी लहर में छत्तीसगढ़ में भी ब्लैक फंगस के मरीज आने लगे हैं. हमें लगता है कि जैसे-जैसे संक्रमित मरीजों की और ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ेगी, उन पर असर दिखाई देगा. जिनको पहले से डायबिटीज था. जो बहुत लंबे समय ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रहे. जिनमें एस्ट्रोराइड का उपयोग बहुतायत में किया गया. एंटीबायोटिक के इंजेक्शन दिए गए. उनमें ब्लैक फंगस मिलने की संभावना ज्यादा है. इसके लक्षणों की पहचान डॉक्टर्स कर रहे हैं. ज्यादातर मरीज जिनमें यह लक्षण दिख रहे हैं, वह जांच के दौरान पॉजिटिव भी आ रहे हैं.
सवाल: क्या यह ब्लैक फंगस पहले भी छत्तीसगढ़ के मरीजों में देखने को मिला है या कोविड बाद यह देखने को मिल रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता:छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस बहुत कम लोगों में देखने को आता था. जैसे बड़े इंस्टीट्यूशंस हैं एम्स, मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल है, वहां पर साल में 5-6 मरीज देखने को मिलते थे. जिनमें साइनस है या डायबिटिक पेशेंट हैं. लंबे समय से एंटीबायोटिक खाते रहे हैं, उनमें ये देखने को ज्यादा मिल रहा है. यह लापरवाही के कारण भी फैलता है. लेकिन अभी तो ऐसा हो रहा है कि अचानक ब्लैक फंगस वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है और यह खतरनाक है.
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सवाल: क्या जिनकी इम्युनिटी कमजोर है ? लंबे समय तक वेंटिलेटर पर हैं. जो ऑक्सीजन पर हैं. उनपर ब्लैक फंगल इंफेक्शन ज्यादा अटैक कर रहा है ?
डॉ. राकेश गुप्ता:लंबे समय तक जो मरीज ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रहे हैं. उनमें इम्युनिटी कमजोर हो गई. ऐसे मरीज जो पहले से डायबिटिक हैं या एंटीबायोटिक लंबे समय से खा रहे हैंं. ह्यूमिडिफायर एयर लंबे समय तक लेते रहे हैं. उन पर असर देखा जा रहा है. नाक के इलाज के साथ या साइनस के इलाज के समय डॉक्टरों ने फेफड़े या नाक की जांच पहले नहीं की. उन लोगों में पहले से कोई इंफेक्शन है. ऐसे लोगों को ब्लैक फंगस होने की संभावना ज्यादा होती है. पहले से मौजूद इंफेक्शन में फंगल ग्रोथ की संभावना ज्यादा रहती है.
सवाल: ब्लैक फंगस के सिम्टम्स क्या हैं ? कैसे पोस्ट कोरोना पेशेंट को पता चलेगा कि इस तरह की बीमारी उन्हें हो रही है ?
डॉ. राकेश गुप्ता:इस बीमारी में शुरुआती दिनों में प्रॉब्लम कान, नाक,गला, दांतों में होती है. ऐसे लोग जिन्हें ब्लैक फंगस या साइनस होता है, उन्हें एक तरफ के जबड़े में, नाक के एक हिस्से में दर्द होता है. आंख के आसपास बहुत तेज सिर दर्द होता है. रात को सोने में दिक्कत होती है. उसी तरह दांतों में दर्द होता है. कुछ का चेहरा धीरे-धीरे काला पड़ने लगता है. ऐसे लोग ज्यादातर डॉक्टर के पास आ रहे हैं. खासकर ऐसे मरीज जिन्हें 1 महीने पहले कोविड हुआ है.
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