रायपुर: देश की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और कवयित्री सावित्रीबाई फुले की 188वीं जयंती है. उन्होंने अपना पूरा जीवन महिला शिक्षा और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में लगा दिया. लड़कियों के लिए पहला विद्यालय (पुणे) खोलने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी. उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले.
3 जनवरी साल 1831 में महाराष्ट्र में जन्मी सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ समाज सुधार की दिशा में अग्रणी काम किया. ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत में समाज सुधार आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण नेतृत्वकर्ता के रूप में जाना जाता है. महिला अधिकारों के लिए लड़ रहीं सावित्री बाई फुले को समाज के तानों के साथ-साथ पत्थर और कीचड़ भी सहना पड़ा लेकिन वे नहीं डिगीं और इसमें उनका साथ महात्मा ज्योतिबा फुले ने बखूबी निभाया.
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ किया काम
सावित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा, कन्या भ्रूण हत्या, विधावाओं के मुंडन, सती प्रथा, बाल-विवाह से लेकर समाज में फैली छूआछूत जैसी कुरीतियों के खिलाफ काम किया. इसके लिए सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा को बहुत विरोध झेलना पड़ा.
स्त्री शिक्षा के लिए लड़ीं
19वीं सदी, जब महिलाओं और दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था, तब उन्होंने अपनी जिद से ये वक्त बदलने की ठान ली थी. छोटी सी उम्र में विवाह के बाद जब वे ससुराल आईं तो ज्योतिबा जैसे साथ देने वाले पति मिले. पहले उनकी पढ़ाई घर में हुई और फिर इस लौ ने समाज में शिक्षा का उजियारा कर दिया. जब वे अपने स्कूल में पढ़ाने जातीं तो लोग उनपर कीचड़ और पत्थर फेंकते. सावित्री बाई एक जोड़ी कपड़ा अपने साथ ले जातीं और विद्यालय पहुंचकर बदल लेतीं.
'बाल हत्या प्रतिबंधक गृह' की स्थापना की
विधवा होने पर महिलाओं का मुंडन करा दिया जाता था. विधवा महिलाओं के गर्भवती होने पर न सिर्फ उन पर जुल्म किए जाते बल्कि जन्मे बच्चे का भी कोई भविष्य नहीं होता था. उन्होंने ऐसे 'बाल हत्या प्रतिबंधक गृह' की स्थापना की. उन्होंने दलितों को पानी पीने के लिए अपने घर का कुआं दे दिया था. सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की.
सावित्रीबाई फुले ने कई कविताएं लिखीं.
- काव्यफुले (काव्यसंग्रह)
- सावित्रीबाईंची गाणी
- सुबोध रत्नाकर
- बावनकशी
1897 में पुणे में फैले प्लेग के दौरान सावित्री बाई दिन-रात मरीजों की सेवा में लगी थी. उन्होंने प्लेग से पीड़ित गरीब बच्चों के लिए कैंप लगाया था. मरीजों की सेवा करते-करते इस रोग ने उन्हें भी जकड़ लिया. 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई का देहावसान हो गया. लेकिन उनकी जगाई शिक्षा की अलख समाज को रोशन कर रही है.