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भारत के जल दूत जिनके प्रयास से पर्यावरण और जल संरक्षण को मिला बढ़ावा

India water warriors केन्द्र सरकार देश में आजादी के 75वें वर्ष को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है. इस कड़ी में आज आपको भारत के जल दूतों के बारे में बताने जा रहा है. जिन्होंने जल संरक्षण की दिशा में बेहतरीन काम किया है. इनहें इंडिया का वाटर वॉरियर भी कहा जाता है.

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Published : Aug 13, 2022, 11:13 PM IST

indian water warriors
भारत के जल दूत

रायपुर/हैदराबाद: आजादी के अमृत महोत्सव में ईटीवी भारत आज आपको भारत के जल दूत के बारे में बताने जा रहा है. जिन्होंने जल संरक्षण की दिशा में बेहतरीन काम किया है. आजादी के 75 साल में भारत ने कई उतार चढ़ाव देखे. पर्यावरण के स्तर पर भी समस्याएं देखी. लेकिन इसका कुछ लोगों ने डटकर मुकाबला किया और जल संरक्षण की दिशा में कार्य किया. इसलिए इन्हें जल दूत और जल योद्धा के नाम से जाना जाता है.India water warriors

राजेंद्र सिंह:राजेंद्र सिंह ने राजस्थान के लोगों के साथ मिलकर ऐसा काम किया, जिसमें राजस्थान के कई गांवों में पानी नहीं था और जिन गांवों में पानी था उसे लेकर उन गांव में पानी पहुंचाया गया, जहां पानी नहीं पहुंच पा रहा था. लोगों को भी वैसा ही काम करना चाहिए. राजेंद्र सिंह ने आरोप लगाया "सरकार जो रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल लेकर आ रही है, इसमें पानी का मालिकाना हक निजी कंपनियों को दिया जा सकता है. मगर उससे पहले ही 18 गांव में फ्रांस की दो निजी कंपनियों ने पानी का मालिकाना हक लेकर वहां पर पानी का निजीकरण की शुरुआत कर दी है. जो एक तरह से देश के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति है.

कौन हैं राजेंद्र सिंह ?

  1. उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
  2. राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
  3. राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
  4. 1975 में राजस्थान के अलवर से तरुण भारत संघ की स्थापना की.
  5. राजस्थान के 12 सौ गांव में करीब 12000 तालाब का आम लोगों की भागीदारी से निर्माण करवाया.
  6. 2015 में उन्होंने स्टॉक होम वाटर प्राइज जीता
  7. ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.

अमला रुया :इनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्हें जल की माता के रूप में जाना जाता है. वह राजस्थान में 1998 के सूखे के बाद क्षेत्र के लोगों की मदद करती रही हैं. वहां उन्होंने आकार चैरिटेबल ट्रस्ट नाम से एक धर्मार्थ संगठन बनाया. जिसके माध्यम से उन्होंने उन गांवों को पानी की सुविधा प्रदान की, जिन्हें पानी नहीं मिल रहा है. उनकी चैरिटी ने 2006 से 2018 के बीच 317 बांध बनाए हैं. इससे राजस्थान के 182 ग्रामीणों को सीधा लाभ मिल पहा है. यह धर्मार्थ संगठन राजस्थान के लोगों की शिक्षा का खर्च भी वहन कर रही है.

अयप्पा मसाकी : कर्नाटक राज्य के रहने वाले अयप्पा मसाकी एक ऐसे 'जल योद्धा' हैं, जिन्हें 'वाटर गांधी' के नाम से भी जाना जाता है. मसाकी कर्नाटक के कटक जिले की रहने वाली हैं. उन्होंने कहा था कि कर्नाटक में बारिश का आधा पानी समुद्र में चला जाता है. बाद में उन्होंने जल संचयन के उन तरीकों से लोगों के लिए पानी की कमी को दूर करने की कोशिश की, जिनका उन्होंने आविष्कार किया था. इसमें उन्हें सफलता भी मिली है. अयप्पा मसाकी का 'वाटर लिटरेसी फाउंडेशन' चौदह राज्यों में अच्छा काम कर रहा है. इसने देश भर में 4500 से अधिक स्थानों पर जलापूर्ति के लिए कार्य परियोजनाओं को क्रियान्वित किया है.


आबिद सुरती :ड्रॉप डेड फाउंडेशन नाम से एक सदस्यीय एनजीओ चलाते हैं. जो मुंबई में घरों में पानी की बर्बादी का कारण बनने वाली लीक जैसी प्लंबिंग समस्याओं की देखभाल करके कई टन पानी बचा रहे हैं. यह सब 80 वर्षीय स्वयंसेवकों की एक टीम और एक प्लंबर के साथ मुफ़्त में करते हैं. फाउंडेशन के अस्तित्व के पहले वर्ष 2007 में आबिद ने मीरा रोड पर 1666 घरों का दौरा किया और 414 टपकने वाले नलों को निःशुल्क ठीक किया और इसके चलते लगभग 4.14 लाख लीटर पानी की बचत की गई. उनके काम ने अब देश भर के अन्य लोगों को उनका उदाहरण लेने और अपने शहरों में पानी बचाने में मदद करने के लिए प्रेरित किया है.

शिरीष आप्टे : लगभग दो शताब्दी पहले पूर्वी विदर्भ में 'मालगुजार' स्थानीय जमींदार थे. उन्होंने जल संचयन के साथ साथ सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए कई टैंक बनाए हैं. उन्होंने 1950 से पहले इन टैंकों का निर्माण और रखरखाव किया था. लेकिन जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करने के बाद राज्य सरकार ने टैंकों का स्वामित्व ले लिया और टैंक उपयोगकर्ताओं से जल कर वसूलना शुरू कर दिया. मालगुजारों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला दायर किया. जिसके बाद 1000 से अधिक टैंकों को वर्षों तक बिना ध्यान दिए छोड़ दिया गया.

यह तब तक था जब तक कि महाराष्ट्र में भंडारा जिले के लघु सिंचाई विभाग के एक कार्यकारी अभियंता शिरीष आप्टे ने 2008 में प्रवेश नहीं किया और लगभग दो वर्षों के समय में इस तरह के पहले टैंक को बहाल किया. उनके इस कदम ने भूजल स्तर को रिचार्ज किया और क्षेत्र में कृषि उत्पादन व मछली उत्पादन में वृद्धि की. इसने अंत में जिला प्रशासन को भंडारा में लगभग 21 फ्रेट टैंकों को बहाल करने के लिए प्रेरित किया.

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