रायपुर:छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बीते दिनों 10 दिनों के अंदर 4 जवानों ने जान दे दी. जवानों की आत्महत्या के पीछे तनाव और छुट्टी न मिलना बड़ी वजह जानकार और अधिकारी भी मानते हैं. विशेषज्ञों का मानना हैं कि नक्सल क्षेत्रों में ड्यूटी कर रहे जवानों को मनोचिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिए, ताकि वे अपनी हर बात उनसे शेयर कर सके.
तनाव ले रहा जवानों की जान
छत्तीसगढ़ के 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं. सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, बस्तर, कोंडागांव, कांकेर, नारायणपुर, राजनांदगांव, बालोदए धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद, बलरामपुर और कबीरधाम जिले नक्सलवाद से जूझ रहे हैं. इस क्षेत्रों में सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस और सुरक्षाबलों के जवानों के कंधे पर है. इन इलाकों में तैनात जवानों के सामने मोर्चा लेने के दौरान तमाम परेशानियां सामने आती हैं. इसमें भी सबसे बड़ी वजह है तनाव, जो जवानों की जान ले रहा है.
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आर्मी की तर्ज पर हो काउंसलिंग
जवानों की आत्महत्या को लेकर रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यादव ने कहा कि सरकार को यह समझना होगा कि जवान किस दौर से गुजर रहे हैं. जवानों को 3 तरीके से प्रेशर रहता है. पहला परिवार का प्रेशर रहता है. दूसरा सामाजिक प्रेशर रहता है और तीसरा काम को लेकर प्रेशर रहता है.ETV भारत से बात करते हुए रिटायर्ड ब्रिगेडियर ने कहा कि वे खुद आर्मी से है. इसलिए इस बात को अच्छे से समझते हैं. उन्होंने बताया कि आर्मी में हर महीने जवानों की काउंसिलिंग होती है. कमांडिंग ऑफिसर जवानों के साथ बात कर उनके मन की बात जानते हैं. जो सीधे CO तक पहुंचती है. रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यादव ने बातचीत में कहा कि राज्य सरकार को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत हैं. जवानों को छुट्टी और पैसे भी समय पर मिलते रहे इसका ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है.
'एक साथ कई प्रेशर हैंडल नहीं कर पाने पर जवान उठाते है आत्मघाती कदम'
ETV भारत ने जवानों में बढ़ रहे तनाव और खुदकुशी के मामलों पर मनोचिकित्सक डॉक्टर सुरभि दुबे से बात की. उन्होंने बताया कि नक्सल क्षेत्रों में ड्यूटी पर तैनात जवानों के ऊपर काफी प्रेशर होता है. वे काफी प्रेशर में काम करते है. उनके शिफ्ट की कोई रेगुलेरिटी नहीं रहती, जिससे उनकी नींद अच्छे से पूरी नहीं होती. एक लंबे समय से अपने घर से दूर रहते है, ऐसे में फैमिली का प्रेशर भी उनके ऊपर होता है. डॉ. सुरभि ने बताया कि जवान जब कई अलग-अलग तरह के प्रेशर को हैंडल नहीं कर पाते है तो इस तरीके का कदम उठाते हैं. कई बार यह भी होता है की जवान अल्कोहलिक होते है, ऐसे समय में भी उनका दिमाग स्थिर नहीं होता.
'मनोचिकित्सक के संपर्क में रहे जवान'
मनोचिकित्सक ने बताया कि राज्य सरकार को लगातार जवानों को मनोचिकित्सक के संपर्क में रखने की जरूरत है. न सिर्फ जो मानसिक तनाव से गुजर रहे है बल्कि समय-समय पर सभी को मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए. जवानों के लिए रेग्यूलर बेसिस पर स्पेशल कैंप का आयोजन किया जाना चाहिए.