रायपुर: विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अब अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. भारत देश को आजादी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है. देश के सैकड़ों सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान का नतीजा है कि हम आज स्वतंत्र हैं. छत्तीसगढ़ अंचल में देश के आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वालों में नाम आता है शहीद वीर नारायण सिंह का. ये छत्तीसगढ़ के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा विद्रोह किया था. अंग्रेजों के गोदाम से अनाज लूटकर गरीबों में बंटवा दिया था. इन्हीं से जुडे़ एक तथ्य को लेकर ETV भारत बड़ा खुलासा करने जा रहा है. इतिहास में उन्हें दी गई जानकारी के मुताबिक उन्हें तोप में जंजीर से बांधकर रायपुर के जयस्तंभ चौक में उड़ाया गया था. जबकि यह जानकारी पूरी तरह गलत है. ETV भारत तमाम दस्तावेजों के साथ ये खुलासा कर रहा है कि उन्हें तोप से नहीं उड़ाया गया था. बल्कि उन्हें फांसी दी गई थी.
शहीद वीर नारायण सिंह काफी बड़ी शख्सियत थे. वे ऐसे बड़े परिवार में जन्मे थे कि यदि वे चाहते तो अंग्रेजों के साथ मिलकर आसानी से जिंदगी गुजार सकते थे. लेकिन जमींदार परिवार से होने के बाद भी उन्होंने आजादी को चुना और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. शहीद वीर नारायण सिंह के विद्रोह को लेकर अंग्रेजों में खासी नाराजगी रही है. अंग्रेज चाहते थे कि ये विद्रोह यहीं खत्म हो जाए और लोगों में भय पैदा हो. यही वजह है कि उन्होंने शहीद वीर नारायण को गिरफ्तार कर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया था. बाद में उन्हें फांसी दी गई.
9 दिसंबर को ब्रिटिश सरकार ने लिखा था पत्र
ETV भारत उस दस्तावेज को दिखाता है जिसमें अंग्रेज सरकार ने वीर नारायण सिंह को फांसी देने की बात लिखी है. 9 दिसंबर 1857 को लिखें इस पत्र में अंग्रेज अफसरों ने वीर नारायण सिंह को 10 दिसंबर को फांसी देने का जिक्र किया है. उन्हें फांसी सेंट्रल जेल के बाहर दी गई थी. जिसका भी जिक्र इस पत्र में किया गया है. इतिहासकार आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ जो विद्रोह किया था, उससे अंग्रेज अफसर परेशान हो गए थे. उन्हें यह डर सताने लगा था कि अंग्रेजों के खिलाफ वीर नारायण सिंह के शुरू किया गया विद्रोह उन्हें भारी ना पड़ जाए.
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दी गई थी फांसी
1857 की क्रांति को लेकर देशभर में अंग्रेजी हुकूमत हिली हुई थी. यही वजह है कि इनके विद्रोह को जल्द से जल्द दबाया गया. रमेंद्रनाथ बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह को तोप से नहीं उड़ाया गया था. बल्कि उन्हें फांसी दी गई थी. पत्र क्रमांक 286 जो कि 10 दिसंबर 1857 को अंग्रेज अफसरों ने लिखा था, इसमें बताया गया है कि 10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह जो सोनाखान का जमींदार था, उसे सभी अधिकारियों और सेना के सामने फांसी पर लटका दिया.
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