छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

'हरिशयनी एकादशी' आज, चार माह के लिए अखंड निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु

दिन बुधवार 1 जुलाई को 'हरिशयनी एकादशी' है. इस दिन से चातुर्मास्य प्रारंभ हो जाएगा. हिंदी के महीने में इस तिथि को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार महीने के लिए अखण्ड निद्रा में चले जातें हैं. पढ़ें पूरी खबर...

harishayani ekadashi
हरिशयनी एकादशी

By

Published : Jul 1, 2020, 8:18 AM IST

गोरखपुर:आज यानी बुधवार 1 जुलाई को 'हरिशयनी एकादशी' है. इस दिन से चातुर्मास्य प्रारंभ हो जाएगा. हिंदी के महीने में इस तिथि को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है, जिसको 'हरिशयनी एकादशी' की संज्ञा प्रदान की गई है. पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार महीने के लिए अखण्ड निद्रा में चले जातें हैं. वाराणसी से प्रकाशित पंचागों के अनुसार इस दिन सूर्योदय 5 बजकर 13 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान सूर्योदय से सायंकाल 4 बजकर 25 मिनट तक है.

हरिशयनी एकादशी

इस दिन विशाखा नक्षत्र और सिद्धि योग भी है. सूर्योदय के समय दाता नामक महा औदायिक योग भी है, इसलिए इस एकादशी के लिए यह मान्य दिवस है. पद्मपुराण में कहा गया है कि 'एकादश्यां तु शुक्लायामाषाढ़े भगवान हरिः भुजंगशयने शेते क्षीरार्णवजले सदा' अर्थात् आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेष शैय्या पर शयन करते हैं. अतः इस एकादशी को हरिशयनी और पद्मा एकादशी भी कहते हैं.

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार मास की अखण्ड निद्रा ग्रहण करते हैं. चार माह के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को निद्रा त्याग करते हैं. जब सूर्य नारायण कर्क राशि में हों, तो तब इस एकादशी के दिन विष्णु भगवान को शयन कराना चाहिए और सूर्य नारायण के तुला राशि में आने पर भगवान को उठाना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की यह एकादशी अवश्य करनी चाहिए.

ढ़ें: कोरबा : इस गांव में भगवान जगन्नाथ का खास है महत्व, 118 साल से निकाली जा रही रथ यात्रा

भगवान विष्णु की प्रतिमा का पूजन
इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा शालिग्राम जी का यथाविधि षोडशोपचार पूजन किया जाता है. नीलाम्बर या तकिये में सुशोभित हिंडोले अथवा छोटे पलंग पल पर उन्हें प्रार्थना पूर्वक सुलाया जाता है. इस एकादशी को फलाहार करना चाहिए. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास्य व्रत का अनुष्ठान किया जाता है, जिसका संकल्प इसी एकादशी को किया जाता है.

ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना लाभदायक
ज्योतिषाचार्य पं. शरद चंद मिश्र ने बताया कि चातुर्मास्य के समय साधु तपस्वी एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं, कहीं आते जाते नहीं. वर्षाकाल के इस चौमासे में पृथ्वी की जलवायु दूषित हो जाती है. इन दिनों में एक स्थान में निवास करके ब्रह्मचर्यादि नियमों का पालन करना अनेक दृष्टि से लाभदायक होता है. एकादशी के दिन व्रत रहकर स्नान ध्यान के अनन्तर सुखद पुष्प शैय्या पर विष्णु प्रतिमा को शयन कराएं और तदनन्तर प्रार्थना करके अपने चार महीने के एकान्तिक निवास का कार्यक्रम बनाएं और फलाहार रखें.

पढ़ें: जगदलपुर में मनाया गया गोंचा पर्व, कोरोना वायरस का दिखा असर

पूजन से प्राप्त होता है विशेष फल
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि द्वादशी के दिन फलाहार के अनन्तर सायंकाल पूजा करें, तब चातुर्मास्य का संकल्प लें. पुष्पादि से भगवान की प्रतिमा का अर्चन-वन्दना करके यह प्रार्थना करें. चातुर्मास्य व्रत में धर्मशास्त्रों में अनेक वस्तुओं के सेवन का निषेध है और इसके विचित्र परिणाम भी बताये गये हैं. चातुर्मास्य में गुड़ न खाने से मधुर स्वर, तेल का प्रयोग न करने से सुन्दरता, ताम्बूल न खाने से भोग की प्राप्ति एवं मधुर कण्ठ, घृत त्यागने से स्निग्ध शरीर, शाक त्यागने से पक्वान्न भोगी, दही, दूध, मट्ठा आदि के त्यागने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. इसमें योगाभ्यास होना चाहिए. भूमि पर कुशा की आसनी या काष्ठासन पर शयन कराना चाहिए. रात-दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक हरिस्मरण, नाम जप, पूजनादि मे तत्पर रहना चाहिए. इससे विशेष फल प्राप्त होता है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details