रायपुर: पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम (former union minister Arvind Netam) ने कहा है कि जिस तरह पहले भोपाल में बैठे अफसरों को बस्तर काफी दूर लगता था. वही मानसिकता रायपुर में बैठे अधिकारियों ने भी बना ली है. ETV भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा है कि, प्रदेश में बड़ी नक्सली घटना हो जाती है और यहां के गृहमंत्री मौके पर नहीं पहुंच पाते. यह गंभीर विषय है. वहीं धर्मांतरण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि भोले-भाले लोगों को मदद के नाम पर धर्मांतरण कराया जा रहा है वो ठीक नहीं है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम की ETV भारत से खास बातचीत सवाल: सरकार एक तरफ दावा कर रही है कि आदिवासियों के हित में सरकार लगातार फैसले ले रही है. दूसरी तरफ बस्तर में पिछले कुछ दिनों से आदिवासी शासन के कई फैसले के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं.
अरविंद नेताम:देखिए प्रजातंत्र के यही खूबसूरती है कि, दस अच्छे काम हुए और एक काम खराब हुआ तो दस काम की उपलब्धि धुल जाती है. उस बुरे काम के आधार पर ही सरकार के काम काज का पोस्टमार्टम हो जाता है.
सवाल : सरकार का आदिवासी हितैषी होने का दावा सच के कितने करीब है ?
अरविंद नेताम: सरकार को अपनी बात रखने का अधिकार है. इसका सही आंकलन तो जनता करती है. पांच साल में होने वाले चुनाव से ही पता चलता है कि सरकार के काम से जनता खुश है कि नहीं.
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सवाल:धर्मांतरण का मुद्दा इन दिनों काफी चर्चा में है. बस्तर में इसको लेकर प्रशासन स्तर पर चिंता सामने आई है. आपकों क्या लगता है बस्तर में धर्मांतरण क्यों बढ़ रहा है?
अरविंद नेताम: ये चिंता का विषय है, पिछले कुछ सालों से हम लोग भी इस पर आपस में चर्चा कर रहे हैं. इसकी गंभीरता को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इस बारे में सामाज और सरकार दोनों तरफ से पहल की जरूरत है. धर्म की मार्मिकता को क्या लंगोटधारी आदिवासी समझता है ? क्या अच्छे लोग नहीं समझ पाते ? ईसाई मिशनरियों का तो ये कहना है कि आदिवासी अपनी इच्छा से ईसाई धर्म स्वीकार रहे हैं. इस बात को मैं स्वीकार नहीं करता. जो पढ़ा-लिखा आदमी अगर वो करता है तो ठीक है, लेकिन जिस तरह भोले-भाले लोगों को मदद के नाम पर धर्मांतरण कराया जा रहा है वो ठीक नहीं है.
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सवाल:आप एक बार कहे थे कि जिस तरह से भोपाल से बस्तर काफी दूर लगता था, उसी तरह अब रायपुर से भी बस्तर दूर नजर आ रहा है. आपके इस कथन का क्या अर्थ है.
अरविंद नेताम: जब भोपाल में योजनाओं पर वल्लभ भवन में चर्चा होती थी तो अफसरों और मंत्रियों की मानसिकता साफ नजर आती थी. अब रायपुर में भी अगर वही मानसिकता है तो छोटे राज्य का लाभ किसे मिलेगा ? आप देखिए कि पिछले दिनों बस्तर में नक्सली घटनाओं में लोग मारे गए, लेकिन एक भी घटना में गृहमंत्री स्पॉट पर नहीं गए. क्या गृहमंत्री की जिम्मेदारी नहीं है? क्या सरकार की जिम्मेवारी नहीं है? घटनाओं के बाद सरकार की तरफ से किसी न किसी मंत्री को भेजा जाना चाहिए था. इसी को मापदंड मानते हैं कि आप कितने गंभीर हैं. आज इस प्रदेश में सभी जानकारी पुलिस के माध्यम से ही आ रही है.
सवाल: हाल ही में जानकारी मिली है कि कई नक्सली नेता कोरोना से मारे गए हैं. कई बीमार हैं और काफी उम्रदराज हो गए हैं. ऐसे में नक्सल एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगर अभी नक्सली लिडरशिप से बात हो गई तो रास्ता निकल सकता है, नहीं तो हालात काफी बिगड़ सकते हैं. आपका क्या कहना है?
अरविंद नेताम:नक्सल समस्या को लेकर हम शुरुआती दौर से देखते आए हैं. इन सब के बाद मेरा आंकलन है कि इस मामले केंद्र और राज्य सरकार गंभीर नहीं है. ये सामाजिक आर्थिक समस्या है. इसे बंदूक की दम पर या पुलिसिया तरीके से नहीं निपटा जा सकता. ये दुर्भाग्य है कि इस बारे में रणनीति बनाने कभी किसी सरकार ने आदिवासी नेतृत्व से बात नहीं की. ऐसा ही चलता रहा तो समस्या कभी खत्म नहीं होगी. ये समस्या, खासतौर पर भाजपा सरकार में तो संभव ही नहीं है.